Tantya Bhil: मध्यप्रदेश के जननायक टंट्या भील मामा देश की आजादी के आंदोलन में उन महान नायकों में शामिल हैं, जिन्होंने अपनी आखिरी सांस तक अंग्रेजों की नाक में दम करके रखा था। टंट्या भील आदिवासियों के रॉबिनहुड कहलाते थे।
आपको बता दें कि टंट्या मामा की कर्म स्थली इंदौर से करीब 25 किलोमीटर दूर पातालपानी है। ये वही जगह है, जहां टंट्या मामा अपने तीर-कमानों की दम पर अंग्रेजों की ट्रेन रोक कर उनमें भरा धन लूट कर गरीबों में बांट दिया करते थे।
टंट्या भील देवी के मंदिर में उनकी आराधना करते थे और अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर आस-पास के जंगलों में रहते थे। उनकी ऊंचाई 7 फीट 10 इंच थी। वे इतने शक्तिशाली थे कि अंग्रेजों को थका लेते थे।
ट्रेन देती है सलामी
आज भी वो मंदिर मौजूद है, जहां टंट्या मामा आया करते थे। मंदिर में टंट्या मामा की प्रतिमा और तस्वीर लगी हुई है। महू अकोला रेल लाइन पर बने इस स्थान पर ट्रेन ड्राइवर आज भी रेलगाड़ियों को रोकते हैं और मामा को सलामी दिया करते हैं।
हालांकि लोग इसका एक वैज्ञानिक कारण भी बताते हैं कि घाट सेक्शन उतरने के लिए ट्रेन के ब्रेक चेक करने के लिए यहां रोका जाता है, जबकि मान्यता ये है कि टंट्या मामा को सलामी देने के लिए ट्रेने रुकती हैं।
यहां हुआ टंट्या मामा का जन्म
टंट्या भील मामा का जन्म मध्य प्रदेश के खंडवा जिले की पंधाना तहसील के गांव बड़दा में 1842 में हुआ था। टंट्या मामा आदिवासियों के नायक तो थे ही, लेकिन सबसे अहम बात ये है कि वे लोगों के लिए एक बड़ी मिसाल भी थे।
आज भी उनके सामाजिक योगदान को याद किया जाता है। टंट्या माम सन् 1878 से 1889 के बीच भारत में एक्टिव एक जननायक की भूमिका में थे।
इसलिए कहा जाता है आदिवासियों का रॉबिनहुड
टंट्या मामा अंग्रजों के राज में फल-फूल रहे जमाखोरों से लूटे माल को गरीबों में बांट दिया करते थे। वे शोषितों और आदिवासियों के बड़े ही चहेते थे। यही वजह है कि वे आदिवासियों के रॉबिनहुड कहलाते थे।
ऐसे पड़ा टंट्या मामा नाम
टंट्या एक आदिवासी भील समुदाय के सदस्य थे। उनका वास्तविक नाम टंड्रा था। आपको बता दें कि टंड्रा से सरकारी अधिकारी और पैसे वाले लोग काफी डरते थे। आम जनमानस इन्हें तांतिया मामा कहकर बुलाते थे।
दिलचस्प बात ये है कि टंट्या ने कई बहन-बेटियों का विवाह कराया। इसी वजह से उनका नाम टंट्या मामा प्रचलित हुआ। तब से लेकर आज तक वे टंट्या मामा के नाम से जाने जाते हैं।
इस वजह हुई थी टंट्या मामा की गिरफ्तारी
टंट्या मामा की पहली गिरफ्तारी साल 1874 में हुई थी, जो कि गलत तरीके से अजीविका चलाने की वजह से हुई थी। गिरफ्तारी के बाद उन्होंने 1 साल तक जेल में सजा काटी। उनकी इस गिरफ्तारी का कारण जुर्म, चोरी और अपहरण करना था।
टंट्या मामा को ऐसे हुई फांसी
आपको बता दें कि टंट्या मामा को छल करके फांसी दी गई थी। उन्हें एक सेना के अफसर ने माफी देने का वादा किया और उनके साथ छल करके जबलपुर ले गया। इसके बाद उनपर मुकदमा चलाया गया। टंट्या मामा को 4 दिसंबर सन् 1889 को फांसी दे दी गई थी।
आज भी टंट्या मामा देश के गरीबों के दिल में बसते हैं। उनका गरीब आदिवासियों के प्रति समर्पण और देश के प्रति योगदान कभी भी नहीं भुलाया जा सकता।
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