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Tansen Music Ceremony: शिवालय में साधना से सिद्ध हुए तानसेन, शतायु होती तानसेन संगीत परम्परा को नमन

Bansal news by Bansal news
November 14, 2024
in ग्वालियर, मध्यप्रदेश
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Tansen Music Ceremony: यूनेस्को ने ग्वालियर को ‘सिटी आफ म्यूजिक’ का सम्मान इसी साल दिया है, किन्तु ग्वालियर शताब्दियों से संगीत का शहर है, शहर क्या तीर्थ है। आज भी ग्वालियर की शिराओं में संगीत का प्रवाह बना हुआ है।

इसी शहर ने संगीत की साधना से जिसे सम्राट बनाया उसे दुनिया तानसेन के नाम से जानती है। उन्हीं संगीत सम्राट तानसेन की समाधि पर इस वर्ष भी 24 दिसंबर को पांच दिवसीय महफ़िल सजने वाली है।

पर्यटकों के लिए भी आकर्षण है संगीत समारोह

राजनीति के प्रदूषण से घिरे देश में ऐसे समारोहों की चर्चा कम ही हो पाती है। हालांकि ऐसे समारोह आज भी राज्याश्रय के मोहताज हैं। समाज इन्हें आत्मनिर्भर नहीं बना पाया है । तानसेन की भव्यता साल-दर-साल बढ़ती ही जा रही है ।इसका स्वरूप भी लगातार बदल रहा है ।

पहली बार तानसेन समारोह की पूर्व संध्या पर ग्वालियर शहर के 15 स्थानों पर संगीत सभाएं आयोजित की गयी । इन सभाओं में ग्वालियर घराने के साथ ही दूसरे  शास्त्रीय गायकों-वादकों ने अपनी कलाओं का शानदार प्रदर्शन किया।ये समारोह संगीत प्रेमियों के साथ ही पर्यटकों   के लिए भी एक बड़ा आकर्षण है।

तानसेन कैसे बने नवरत्न

तानसेन कैसे तत्कालीन मुग़ल सम्राट अकबर के दरबार के नवरत्न बने, इसे लेकर अनेक किस्से हैं। लेकिन हकीकत ये है कि तानसेन थे और संगीत की दुनिया में उन्होंने अपनी साधना से एक अलग मुकाम बनाया था।

तानसेन को लेकर किवंदितयां ज्यादा है ,प्रमाण कम। तानसेन ब्राम्हण थे या बघेल ये विवाद है। कोई उन्हें मकरंद बघेल की संतान मानता है तो कोई मकरंद पांडे की । लेकिन एक मान्यता अविवादित है कि वे ग्वालियर से 45 किमी दूर बसे गांव बेहट के बेटे थे।

Legends, stories and folklore about Tansen from his birthplace, Behat, near Gwalior, Madhya Pradesh - YouTube
कहा जाता है कि बचपन में इसी शिवालय में नियमित साधना करते थे तानसेन

किस्सा है कि वे बचपन में स्पष्ट बोल नहीं पाते थे किन्तु एक शिवालय में नियमित साधना से उन्हें स्वर सिद्ध हुए और वे गाने लगे। उनकी तानों से शिवालय टेढ़ा हो गया।ये शिवालय आज भी है, लेकिन मुझे इसके टेढ़े होने की वजह संगीत नहीं वो वटवृक्ष लगता है जो विशालकाय है।

राजा मानसिंह तोमर की देखरेख में सीखा संगीत

तानसेन पंद्रहवीं सदी के अंत और सोलहवीं सदी के बीच जन्मे जब उस दौर में ग्वालियर में तोमर शासकों का राज था । राजा मानसिंह तोमर संगीत के अनन्य साधक थे । उनके शासन काल में संगीत को खूब संरक्षण मिला और इसका लाभ तानसेन और उनके समकालीन बैजूबावरा, कर्ण और महमूद जैसे अनेक संगीतज्ञों को मिला।

ऐसी लोक मान्यता है कि राजा मानसिंह तोमर ने संगीत की ध्रुपद गायकी का आविष्कार और प्रचार किया था। तानसेन की संगीत शिक्षा भी उनकी देखरेख में हुई। राजा मानसिंह तोमर की मृत्यु होने और विक्रमाजीत से ग्वालियर का राज्याधिकार छिन जाने के बाद तानसेन एक श्रेष्ठ गुरु की तलाश में वृन्दावन चले गये और वहां उन्होनें स्वामी हरिदास जी से संगीत की उच्च शिक्षा प्राप्त की।

संगीत में निष्णात होने कि बाद तानसेन की ख्याति में चार चांद लग गए । उन्हें शेरशाह सूरी के पुत्र दौलत ख़ाँ ने अपने आश्रय में ले लिया।

तानसेन के जीवन पर बनीं हैं फिल्में

दौलत खान के बाद तानसेन बांधवगढ़ (रीवा) के राजा रामचन्द्र के दरबारी गायक नियुक्त हुए। मुग़ल सम्राट अकबर ने उनके गायन की प्रशंसा सुनकर उन्हें अपने दरबार में बुला लिया और अपने नवरत्नों में स्थान दिया। तानसेन के जीवन का ये सबसे महत्वपूर्ण समय माना जाता है।

Mughal History: बड़े चतुर निकले तानसेन, मुगलों की परंपरा भी तोड़ी और अकबर की इच्छा भी पूरी दी | Mughal Story of tansen who fulfilled emperor akbar demand and broke the traditions |
मुग़ल सम्राट अकबर ने तानसेन के गायन की प्रशंसा सुनकर उन्हें अपने नवरत्नों में स्थान दिया था।

तानसेन के संगीत की विशेषताओं से जुड़े असंख्य किस्से हैं। कालांतर में उनके जीवन पर फ़िल्में  भी बनाई गयीं । लेकिन जो हकीकत है, वो ये है कि तानसेन की समाधि ग्वालियर के हजीरा क्षेत्र में बनी हुई है ।

मोहम्मद गौस के मकबरे के निकट स्थित तानसेन की समाधि पर राजतंत्र के समय से स्थानीय वैश्याएं उर्स मनाती थीं । जिसे बाद में सिंधिया शासकों ने राज सहायता देकर सालाना संगीत समारोह में बदल दिया।

तानसेन समारोह में मूर्धन्य संगीतज्ञ होते हैं उपस्थित

सरकारी और निजी आंकड़ों में अन्यत्र होने के बावजूद इस आयोजन का ये 99वां साल है । पिछले 50 साल से इस समारोह में नियमित हाजिर होने वाले लोगों में मैं भी शामिल हूँ। मेरे जैसे सैकड़ों लोग मिल जायेंगे जो अपना तमाम कामकाज छोड़कर ठिठुरते हुए इस समारोह में एक श्रोता की हैसियत से शामिल होते हैं।

इस समारोह में पिछले सौ साल में पैदा हुए देश के सभी मूर्धन्य संगीतज्ञों ने अपनी हाजिरी दी है, फिर चाहे वे पंडित रविशंकर हों, गंगू बाई हंगल हों, मल्लिकार्जुन मंसूर हों , शहनाई सम्राट उस्ताद बिस्मिल्लाह खान हों। पंडित कृष्ण राव शंकर पंडित हों या पंडित भीमसेन जोशी हों या डागर बंधु हों उस्ताद अमजद अली खान हों या असगरी बाई हों या और कोई।

हर संगीतज्ञ तानसेन की समाधि पर सजदा करना अपना सौभाग्य मानता आया है। मैंने यहां शाम से शुरू होने वाली संगीत सभाओं को ब्रम्ह मुहूर्त तक चलते देखा है । इस समारोह में संगीत की नयी पौध से लेकर वटवृक्ष तक शामिल होते हैं।

तानसेन समारोह 2023 - तिथियाँ, स्थान, प्रमुख आकर्षण | एडोट्रिप
तानसेन समारोह में मूर्धन्य संगीतज्ञ होते हैं उपस्थित

संस्कृति विभाग देता है तानसेन अलंकरण

पिछले कुछ वर्षों से सरकार के संस्कृति विभाग में इस पारंपरिक समारोह को वैश्विक संगीत समारोह बनाने की कोशिश की है । इसमें तमाम विदेशी संगीतज्ञों को शामिल किया है । इसका विरोध भी हुआ और समर्थन भी मिला। कुल मिलकर तानसेन और संगीत शास्त्रीय संगीत के पर्याय बने हुए है। तानसेन ध्रुपद के प्रतीक माने जाते  हैं।

पहले तानसेन के नाम से कोई सम्मान नहीं दिया जाता था लेकिन 1977 में तानसेन के नाम पर पांच हजार रूपये का अलंकरण देना शुरू किया गया जो आज पांच लाख तक का हो गया है । अब तानसेन अलंकरण के अलावा संगीत के क्षेत्र में ही नहीं बल्कि नाटक के क्षेत्र में काम करने वाली संस्स्थाओं को भी सम्मानित किया जाता है।

एक बार तानसेन समारोह में हों अवश्य शामिल

यदि आपकी संगीत में रूचि है तो आपको एक बार तानसेन समारोह में अवश्य शामिल होना चाहिए। ग्वालियर तक आने कि लिए दिल्ली से वायुयान,रेलें उपलब्ध है। शहर में धर्मशालाओं से लेकर पांच सितारा होटल हैं। आप ग्वालियर आएं तो सर्दी से बचने के उपाय अवश्य करके आएं।

तानसेन समारोह के बहाने आप ग्वालियर दुर्ग,रानी लक्ष्मी बाई की समाधि ,जय विलास संग्रहालय, बटेश्वर  और मितावली के शताब्दियों पुराने मंदिरों की श्रृंखला भी देख सकते हैं। तानसेन की जन्मस्थली बेहट में होने वाली ग्राम्यांचल की संगीत सभा का आनंद भी ले सकते हैं ,वो भी निशुल्क ,बस एक अदद वाहन आपके पास होना चाहिए।


——-
राकेश अचल एक मूर्धन्य लेखक, वरिष्ठ पत्रकार और कला समीक्षक हैं।
[email protected]

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