भारतीय कविता जगत के एक अनमोल सितारे, पद्मश्री हास्य कवि डॉ. सुरेन्द्र दुबे अब हमारे बीच नहीं रहे। गुरुवार को उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उन्होंने अंतिम सांस ली। जीवनभर शब्दों से हंसी और चेतना बिखेरने वाले इस कवि का अंतिम संस्कार रथयात्रा के दिन रायपुर के मारवाड़ी श्मशान घाट में किया जाएगा।
उनकी अंतिम यात्रा उनके निवास स्थान अशोका प्लेटिनम, बंगला नंबर 25 से निकलेगी। देशभर से कई कवि और साहित्यकार उन्हें अंतिम विदाई देने पहुंच रहे हैं। कवि कुमार विश्वास भी इस अंतिम यात्रा में शामिल होंगे।
कविता के मंच से अमेरिका तक का सफर
छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जैसे छोटे से कस्बे से निकलकर अमेरिका तक कविता पाठ करने वाले सुरेन्द्र दुबे ने अपनी हास्य शैली में गंभीर विषयों को गहराई से छूने की क्षमता विकसित की थी। डॉक्टर से कवि बनने की उनकी यात्रा न सिर्फ प्रेरणादायक रही, बल्कि उन्होंने अपनी भाषा, शैली और विचार से कविता को आमजन के दिल तक पहुंचाया। उन्होंने 11 देशों में कविता पाठ किया और अपनी अलग पहचान बनाई।
अभिनंदन ग्रंथ अधूरा रह गया
डॉ. सुरेन्द्र दुबे के जीवन और साहित्य पर आधारित एक विशेष ‘अभिनंदन ग्रंथ’ तैयार किया जा रहा था, जो उनके जीवन के संघर्ष, लेखन, पारिवारिक संस्मरण और दुर्लभ रचनाओं का संग्रह था। इसमें उनके पिता गर्जन सिंह दुबे, पुत्र डॉ. अभिषेक दुबे और खुद सुरेन्द्र दुबे की लिखी रचनाएं, पत्र और तस्वीरें शामिल थीं।
प्रकाशक सुधीर शर्मा के अनुसार, पिछले चार महीनों से यह कार्य प्रगति पर था, और जुलाई में इस पुस्तक का विमोचन प्रस्तावित था। लेकिन दुर्भाग्यवश, किताब के पूरा होने से पहले ही यह शब्दों का जादूगर दुनिया को अलविदा कह गया।
“बहुत कर लिया… अब ज्यादा कुछ नहीं करना”: आखिरी मुलाकात की स्मृति
प्रसिद्ध कवि मीर अली मीर ने डॉ. दुबे के साथ हुई अंतिम मुलाकात को याद करते हुए एक मार्मिक किस्सा साझा किया। उन्होंने बताया कि कुछ दिन पहले रायपुर में हुए एक काव्य कुंभ के दौरान वे दोनों मिले थे। सुरेन्द्र दुबे ने मीर से उनकी उम्र पूछी, और जब मीर ने बताया तो मुस्कराते हुए बोले, “आप तो मुझसे पांच महीने बड़े निकले… अब आपको ज़्यादा सम्मान देना होगा।”
इसके बाद दोनों ने बिना शक्कर की चाय पी। बातचीत के दौरान सुरेन्द्र दुबे ने मीर से कहा, “अब ज्यादा कार्यक्रम नहीं करता… इसलिए रेट भी ज्यादा बताता हूं, ताकि आयोजक सोच लें। बहुत कर लिया ज़िंदगी में… अब ज्यादा कुछ नहीं करना।” मीर बताते हैं कि यह बात उन्होंने गहरे ठहराव के साथ कही और उनके चेहरे पर एक अलग सी शांति थी।
“बोरा मंगवाइए… नारियल और गमछे भरकर ले जाएंगे”: हंसी के पीछे का विनम्र दिल
मीर अली मीर ने एक और घटना साझा की, जब वे दोनों खौली और भानसोज गांव में कविता पाठ के लिए गए थे। वहां गांववालों ने सुरेन्द्र दुबे का भव्य स्वागत किया। मंच पर उन्हें लगातार छत्तीसगढ़ी गमछे और नारियल दिए जाने लगे। देखते ही देखते मंच पर 150 से अधिक गमछे और नारियल जमा हो गए।
सुरेन्द्र दुबे ने वहां भी अपनी हास्य शैली में माहौल को हल्का कर दिया “कोई एक बोरा मंगवाइए, सारे गमछे-नारियल उसी में भरकर ले जाएंगे।” लोग हस पड़े, लेकिन कार्यक्रम के बाद उन्होंने सारे गमछे और नारियल गांववालों में बांट दिए। ये उनका बड़प्पन था सम्मान को अपने पास रखने के बजाय समाज को लौटाने का भाव।
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