MP High Court: मध्य प्रदेश के 10 वकीलों पर एक महीने के प्रतिबंध वाले हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Order) ने रोक लगा दी है।
हाईकोर्ट जबलपुर ने 20 मार्च को अपने एक आदेश में इन वकीलों पर न्यायालय में एक माह तक पैरवी के लिए उपस्थित होने पर रोक लगा दी थी।
पहले मामला जान लीजिए
सिवनी के जिला एवं सत्र न्यायालय (Seoni District Court) को नागपुर रोड बीज निगम की भूमि पर स्थानांतरित करने का प्रस्ताव मंजूर हुआ।
सिवनी के अधिवक्ताओं का मत था कि कलेक्ट्रेट और जिला न्यायालय पास-पास होना चाहिए। अगर जिला न्यायालय नागपुर रोड जा रहा था तो नवीन कलेक्ट्रेट को भी वहीं शिफ्ट करना चाहिए।
इसी मांग को लेकर जिला अधिवक्ता संघ के पदाधिकारियों ने जिला न्यायालय के स्थान परिवर्तन के विरोध में हड़ताल (Protest of lawyers Seoni District Court) कर दी थी।
आदेश के बाद भी हड़ताल पर डटे हुए थे
एमपी हाईकोर्ट (MP High Court) ने इस मामले में एक जनहित याचिका के बाद सिवनी जिले में वकीलों की हड़ताल को असंवैधानिक करार दे दिया था।
जबलपुर हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी लगभग 95 अधिवक्ताओं ने आवेदन देकर हड़ताल जारी रखने का निर्णय लिया।
जिसके बाद जबलपुर उच्च न्यायालय (High Court Jabalpur) ने 65 अधिवक्ताओं को न्यायालय की अवमानना का नोटिस जारी कर समक्ष उपस्थित होने का आदेश दे दिया।
इन अधिवक्ताओं पर लगाया था प्रतिबंध
हाईकोर्ट (MP High Court) के चीफ जस्टिस रवि विजय कुमार मलिमथ तथा जस्टिस विशाल मिश्रा की युगलपीठ ने याचिका की सुनवाई के बाद सिवनी बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रवि कुमार गोल्हानी, उपाध्यक्ष शिशुपाल यादव, उपाध्यक्ष सचिव रितेश आहूजा, संयुक्त सचिव मनोज हरनिखेड़े, कोषाध्यक्ष नवल किशोर सोनी, कार्यकारी सदस्य ऋषभ जैन, सत्येन्द्र ठाकुर, असरफ खान, विपुल बघेल और प्रवीण सिंह चौहान के खिलाफ प्रतिबंधात्मक आदेश जारी कर दिए।
पहली बार हुई इतनी बड़ी कार्रवाई
मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में 65 अधिवक्ताओं को हाई कोर्ट (MP High Court) की अवमानना का नोटिस दिया गया। इसी के साथ सिवनी जिला भारत संगठन की निर्वाचित कार्यकारिणी भंग कर दी गई।
10 वकीलों पर न्यायालय में एक माह तक पैरवी के लिए उपस्थित होने पर रोक लगा दी गई। मध्य प्रदेश के इतिहास में अधिवक्ताओं के खिलाफ इतनी बड़ी और कड़ी कार्रवाई, इससे पहले शायद नहीं हुई होगी।
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सुप्रीम कोर्ट के सामने ये दी दलील
1. प्रतिबंधित वकीलों की ओर से पैरवी कर रहे सीनियर एडवोकेट यतिन ओझा ने दलील दी कि हाईकोर्ट ने संबंधित सदस्यों को सुनवाई का मौका दिए बिना आदेश पारित किया था।
2. जिला बार एसोसिएशन को विश्वास में लिए बिना जिला कोर्ट परिसर के लिए एक नई साइट आवंटित करने का राज्य सरकार ने कथित एकतरफा फैसला लिया
3. सिवनी के अत्याधिक सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र के बीच नई साइट है। जहां कभी-कभी दंगे होते रहते हैं और पुलिस प्रशासन द्वारा धारा 144 के तहत अक्सर कर्फ्यू के आदेश लगाए जाते हैं।
4. असुरक्षित साइट पूरी तरह से अनुपयुक्त है, जो न केवल वकीलों के जीवन और स्वतंत्रता के लिए बल्कि वहां काम करने वाले जिला न्यायाधीशों और न्यायालय के कर्मचारियों के लिए भी खतरा है।
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सुप्रीम कोर्ट ने ये कहा
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Order) में दलीलें सुनने के बाद चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने एमपी हाईकोर्ट के आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी।
साथ ही खंडपीठ ने कहा कि वकीलों और पदाधिकारियों को हड़ताल की घोषणा करने के बजाय जिम्मेदारी से काम करना चाहिए।