Supreme Court Completion Certificate Rules: सुप्रीम कोर्ट ने अनधिकृत निर्माण और प्रॉपर्टी पर अंकुश लगाने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने कहा कि अनधिकृत निर्माण को फलने-फूलने नहीं दिया जा सकता।
बेंच ने निर्देश दिया कि निर्माण की अवधि के दौरान बिल्डर के लिए स्वीकृत योजना को प्रदर्शित करना अनिवार्य होगा और कोई भी भवन पूर्णता प्रमाण पत्र यानी कंप्लीशन सर्टिफिकेट तब तक जारी नहीं किया जाएगा जब तक कि भवन का निरीक्षण करने वाला अधिकारी संतुष्ट न हो जाए कि भवन का निर्माण भवन नियोजन अनुमति के अनुसार किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने ये कहा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि अधिकारी इस न्यायालय द्वारा जारी किए गए पहले के निर्देशों और आज पारित किए जा रहे निर्देशों का सख्ती से पालन करते हैं, तो उनका निवारक प्रभाव पड़ेगा और घर/भवन निर्माण से संबंधित ट्रिब्यूनल/न्यायालयों के समक्ष मुकदमेबाजी की मात्रा में भारी कमी आएगी।
इसलिए सभी राज्य/संघ राज्य क्षेत्र सरकारों द्वारा परिपत्र के रूप में सभी संबंधितों को इस चेतावनी के साथ आवश्यक अनुदेश जारी किए जाने चाहिए कि सभी निर्देशों का निष्ठापूर्वक पालन किया जाना चाहिए और ऐसा न करने पर गंभीरता से विचार किया जाएगा और दोषी अधिकारियों के विरुद्ध कानून के अनुसार विभागीय कार्रवाई शुरू की जाएगी।
जनहित में सुप्रीम कोर्ट ये जारी किये दिशा निर्देश
(i) बिल्डिंग प्लानिंग परमिशन जारी करते समय, बिल्डर/आवेदक से, जैसा भी मामला हो, इस आशय का एक वचन प्राप्त लिया जाएगा कि भवन का कब्जा संबंधित अधिकारियों से पूर्णता/कब्जा प्रमाण पत्र प्राप्त करने के बाद ही मालिकों/लाभार्थियों को सौंपा जाएगा।
(ii) बिल्डर/डेवलपर/मालिक निर्माण स्थल पर निर्माण की पूरी अवधि के दौरान एप्रूव्ड योजना की एक प्रति प्रदर्शित करवाएगा और संबंधित अधिकारी समय-समय पर परिसर का निरीक्षण करेंगे और अपने सरकारी अभिलेखों में ऐसे निरीक्षण का रिकार्ड रखेंगे।
(iii) व्यक्तिगत निरीक्षण करने और इस बात से संतुष्ट होने पर कि भवन का निर्माण बिल्डिंग परमिशन शाखा की दी गई अनुमति के अनुसार किया गया है और किसी भी तरह से ऐसे निर्माण में कोई विचलन नहीं है, रिहायशी/वाणिज्यिक भवन के संबंध में पूर्णता/कब्जा प्रमाण पत्र संबंधित प्राधिकरण द्वारा संबंधित पक्षकारों को बिना अनुचित विलंब किए जारी किया जाएगा।
(iv) यदि कोई विचलन ध्यान में आता है तो अधिनियम के अनुसार कार्रवाई की जानी चाहिए और पूर्णता/कब्जा प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया को तब तक आस्थगित रखा जाना चाहिए जब तक कि उल्लिखित विचलनों को पूरी तरह से ठीक नहीं कर लिया जाता।
(v) सभी आवश्यक कनेक्शन जैसे बिजली, पानी की आपूर्ति, सीवरेज कनेक्शन आदि भवनों को पूर्णता/कब्जा प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने के बाद ही सेवा प्रदाता/बोर्ड द्वारा दिए जाएंगे।
(vi) पूर्णता प्रमाणपत्र जारी किए जाने के बाद भी, यदि कोई विचलन/उल्लंघन योजना अनुमति के विपरीत हो, तो प्राधिकरण के ध्यान में लाया जाता है, बिल्डर/मालिक/दखलदार के विरुद्ध संबंधित प्राधिकारी द्वारा कानून के अनुसार तत्काल कार्रवाई की जाएगी; और गलत तरीके से पूरा करने/कब्जा प्रमाण पत्र जारी करने के लिए जिम्मेदार अधिकारी के विरुद्ध विभागीय कार्रवाई तत्काल की जाएगी।
(vii) राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के स्थानीय निकायों सहित किसी भी प्राधिकरण द्वारा किसी अनधिकृत भवन में कोई भी कारोबार/व्यापार करने की अनुमति/लाइसेंस नहीं दिया जाना चाहिए, चाहे वह आवासीय भवन हो या कमर्शियल भवन।
(viii) विकास जोनल योजना और उपयोग के अनुरूप होना चाहिए। ऐसी जोनल योजना और उपयोग में कोई भी संशोधन नियमों का सख्ती से पालन करते हुए और व्यापक जनहित और पर्यावरण पर प्रभाव को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए।
(ix) जब कभी योजना विभाग/स्थानीय निकाय के अंतर्गत संबंधित प्राधिकरण द्वारा किसी अनधिकृत निर्माण के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए किसी अन्य विभाग से सहयोग के लिए कोई अनुरोध किया जाता है तो दूसरा विभाग तत्काल सहायता और सहयोग देगा तथा किसी प्रकार के विलंब या लापरवाही को गंभीरता से लिया जाएगा।
(x) बैंक/वित्तीय संस्थाएं प्रतिभूति के रूप में किसी भवन के एवज में ऋण तभी मंजूर करेंगी जब संबंधित पक्षकारों द्वारा भवन के उत्पादन पर उसे जारी किए गए पूर्णता/कब्जा प्रमाण-पत्र का सत्यापन कर लिया गया हो। किसी भी निदेश के उल्लंघन से संबंधित कानूनों के अंतर्गत अभियोजन के अलावा अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाएगी।
ये है पूरा मामला
सुप्रीम कोर्ट ने ये गाइडलाइन अपीलकर्ताओं द्वारा खरीदी गई एक इमारत को ध्वस्त करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई करने के दौरान दी है।
यूपी हाउसिंग एंड डेवलपमेंट बोर्ड द्वारा आवंटित भूमि पर दुकानों और वाणिज्यिक स्थानों का अवैध रूप से निर्माण किया गया था, बिना आवश्यक अनुमोदन प्राप्त किए। अपीलकर्ता ने लंबे समय से कब्जा करने और अपीलकर्ता को पूर्व नोटिस नहीं भेजने में अधिकारियों द्वारा कथित चूक के आधार पर विध्वंस आदेश को चुनौती दी।
हाईकोर्ट के फैसले की पुष्टि करते हुए, जस्टिस महादेवन द्वारा लिखे गए फैसले में जोर दिया गया कि अनिवार्य कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए अवैध निर्माणों को पनपने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
बेंच ने आगे कहा कि लंबे समय तक अधिभोग, वित्तीय निवेश और प्राधिकरण की निष्क्रियता अनधिकृत संरचनाओं को वैध नहीं बनाती है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि निर्णय को सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को परिचालित किया जाए।
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