Supreme Court On Patanjali: सुप्रीम कोर्ट में पतंजलि मामले में मंगलवार (7 मई) को सुनवाई हुई. कोर्ट ने पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन को लेकर सेलिब्रिटी, सोशल मीडिया इंंफ्सूएंसर्स को भी जिम्मेदार ठहराया है. मामले में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा ‘अगर लोगों को प्रभावित करने वाले विज्ञापन भ्रामक पाए जाते हैं तो सेलिब्रिटीज और सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर्स भी बराबर जिम्मेदार हैं. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने सुनवाई की.
ब्रॉडकास्टर्स को भरना होगा सेल्फ डिक्लेरेशन फॉर्म
अदालत ने कहा ब्रॉडकास्टर्स को कोई भी विज्ञापन दिखाने से पहले एक सेल्फ डिक्लेरेशन फॉर्म भरना होगा. जिसमें स्पष्ट किया जाएगा कि विज्ञापन नियमों का अनुपालन करते हैं. टीवी ब्रॉडकास्टर्स ब्रॉडकास्ट सर्विस पोर्टल पर घोषणा अपलोड कर सकते हैं और आदेश दिया कि प्रिंट मीडिया के लिए चार हफ्ते के भीतर एक पोर्टल बनाया जाए.
कोर्ट ने भ्रामक विज्ञापनों से जुड़ी 2022 की गाइडलाइन का जिक्र किया. इसमें कहा गया है कि किसी व्यक्ति को उस प्रोडक्ट या सर्विस के बारे में पूरी जानकारी और अनुभव होना चाहिए जिसे वो एंडोर्स कर रहा है. विज्ञापन करने वाले व्यक्ति को यह तय करना चाहिए की यह भ्रामक विज्ञापन नहीं है. बेंच ने उपभोक्ता की शिकायत दर्ज करने के लिए प्रोसेस बनाने की जरूरत बताई.
केंद्र को लगाई फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को भी इस मामले में फटकार लगाई है. कोर्ट ने कहा कि केंद्र ने इस मामले में राज्यों को भ्रामक विज्ञापन पर कार्रवाई करने से क्यों रोका है. राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में आयुष अधिकारियों को भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ ड्रग एंड कॉस्मेटिक रूल, 1945 के रूल 170 के तहत कोई कार्रवाई नहीं करने के लिए केंद्र के निर्देश क्यों? दरअसल कोर्ट ने ये टिप्पणी केंद्र सरकार की ओर से 2023 में जारी एक पत्र पर थी. जिसमें रूल 170 के कार्यान्वयन पर प्रभावी रूप से रोक लगा दी गई थी.
क्या कहता है रूल 170
याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि रूल 170 राज्यों को भ्रामक विज्ञापनों से निपटने का अधिकार देता है. इसके अनुसार आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी दवाएं जिस राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में मैन्युफैक्चर हो रही हैं वहां के लाइसेंसिंग अथॉरिटी के अप्रूवल के बिना विज्ञापन नहीं दिया जा सकेगा. रूल 170 को कई उच्च न्यायालयों में चुनौती दी गई है. नियम पर अभी पुनर्विचार किया जाना बाकी है. इसलिए केंद्र सरकार ने राज्यों से कहा है कि वे भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ इसे लागू करने से बचें.
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बिना निर्णय के कानून पर रोक क्यों: HC
अब इसी बात को लेकर जस्टिस अमानुल्लाह ने पूछा कि बिना निर्णय लिए क्यों कह रहे हैं कि नियम 170 के तहत कार्रवाई न करें? हाई कोर्ट ने आपको निर्णय लेने का निर्देश दिया था. फिलहाल तो कानून वही है. बिना निर्णय लिए आपने यह क्यों कहा कि नियम 170 के तहत कदम न उठाएं? इसपर केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करते हुए, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने अदालत को आश्वासन दिया कि रूल 170 पर अंतिम निर्णय जल्द से जल्द लिया जाएगा.