बाबूलाल गौर के मुख्यमंत्री बनने की कहानी, जिन्हें उमा भारती ने पद छोड़ने से पहले 21 देवी-देवताओं की कसम खिलाई थी

भोपाल। आज हम स्टोरी ऑफ द डे में बात करने वाले हैं बाबूलाल गौर (Babulal Gaur) के मुख्यमंत्री बनने की। साल 2003 में भाजपा मप्र में दो-तिहाई सीटें जीतकर सत्ता में आई थी। रामजन्मभूमि आंदोलन की फायरब्रांड नेता, उमा भारती (Uma Bharti) को प्रदेश की कमान सौंपी गई। बाबूलाल गौर को उमा भारती सरकार में गृह मंत्री बनाया गया था। लेकिन एक साल के अंदर परिस्थिती कुछ ऐसी बनी कि बाबुलाल गौर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ गए और ऐसे बैठे कि फिर उमा भारती, प्रदेश की सत्ता में लौट नहीं सकीं।
उमा भारती ने ही बनाया था गौर को मुख्यमंत्री
कहा जाता है कि बाबूलाल गौर को उमा भारती की कृपा से ही मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली थी। लेकिन बाबूलाल गौर की कृपा ऐसी रही कि उमा भारती फिर से मुख्यमंत्री नहीं बन पाईं और प्रदेश से उनकी सियासी जमीन तक खिसक गई।
गिरफ्तारी से पहले दिया था इस्तीफा
दरअसल, साल 2004 में कर्नाटक के हुबली की एक अदालत ने दंगा भड़काने के जुर्म में उमा भारती के खिलाफ वारंट जारी कर दिया था। जिसके बाद कर्नाटक पुलिस आईपीएस डी रूपा के नेतृत्व में भोपाल पहुंच गई थी और वो तत्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती को गिरफ्तार करना चाहती थी। गिरफ्तारी की लटकती तलवार को देखकर बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने उमा भारती पर नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने का दबाव बना दिया। उमा को पद छोड़ना पड़ा। लेकिन उन्होंने पद छोड़ने से पहले केंद्रीय नेतृत्व के सामने अपनी एक शर्त रख दी। शर्त ये थी कि वो जिसे चाहेंगी, मुख्यमंत्री वही बनेगा।
उमा ने कुर्सी छोड़ने के लिए देवताओं की कसम खिलाई थी
उमा भारती ने कुर्सी छोड़ने से पहले राज्य के तत्कालीन गृहमंत्री बाबूलाल गौर का नाम आगे बढ़ाया। दरअसल, उमा को गौर पर इतना भरोसा था कि वो जब भी कुर्सी खाली करने को कहेंगी, गौर तुरंत कुर्सी खाली कर देंगे। लेकिन गौर भी मंझे हुए खिलाड़ी थे। उमा के वापस आने और उनके कहने के बावजूद गौर ने कुर्सी खाली नहीं की।
जबकि कहा जाता है कि कुर्सी सौंपने से पहले उमा भारती ने बाबूलाल गौर को 21 देवी-देवताओं की कसम खिलाई थी।
बीजेपी से बागी हो गई थी उमा भारती
इस घटना ने उमा भारती को अंदर से तोड़ कर रख दिया था और दोबारा मुख्यमंत्री की कुर्सी न मिलने पर वो बीजेपी से बागी हो गईं। हालांकि बाबूलाल गौर भी ज्यादा दिन तक मप्र में सीएम की कुर्सी पर बैठ नहीं सके। उनके खिलाफ पार्टी नेतृत्व को तमाम तरह की शिकायतें मिलने लगी थीं। जिसके बाद पार्टी ने उन्हें हटाकर शिवराज सिंह चौहान को मुख्यंमंत्री बना दिया। तब शिवराज पार्टी के महासचिव हुआ करते थे।
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