Statue of Equality: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को हैदराबाद में रहेंगे। इस दौरान वह 11वीं सदी के संत रामानुजाचार्य की स्मृति में 216 फीट ऊंची ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वेलिटी’ का अनावरण करेंगे। आइए विस्तार से जानते हैं इस प्रतिमा के बारे में।
पंच धातु से बनी है प्रतिमा
संत रामानुजाचार्य को आस्था, जाति और वर्ग समेत जीवन के सभी पहलुओं में समानता को महत्व देने के लिए जाना जाता है। ऐसे में इस प्रतिमा को पंचलोहा यानी पांच धातु, स्वर्ण, चांदी, तांबा, पीतल और जस्ता से मिलाकर बनाया गया है। बैठी हुई मुद्रा में यह दुनिया में धातु की सबसे लंबी प्रतिमा है। 56 फीट उंचे भद्र वेदी पर इस प्रतिमा को बिठाया गया है।
दान के जरिए जुटाई गई है लागत
मंदिर परिसर में वैदिक डिजिटल पुस्तकालय, अनुसंधान केंद्र, एक थियेटर और रामानुजाचार्य के कामों का विवरण देने वाली एक शैक्षणिक गैलरी भी बनाई गई है। इसकी परिकल्पना रामानुजाचार्य आश्रम के चिन्ना जीयर स्वामी ने तैयार किया है। बता दें कि प्रतिमा के चारो तरफ 108 दिव्य देशम बनाया गया है। हैदराबाद से करीब 40 किमी दूर रामनगर में इस प्रतिमा को स्थापित किया गया है। मंदिर निर्माण की पूरी लागत दुनियाभर से दान के जरिए जुटाई गई है।
किसी भी संत का अब तक इतना भव्य मंदिर नहीं बना है
मालूम हो कि सनातन परंपरा के किसी भी संत के लिए अभी तक इतना भव्य मंदिर नहीं बना है। रामानुजाचार्य स्वामी पहले ऐसे संत है, जिनकी इतनी बड़ी प्रतिमा स्थापित की गई है। इस मंदिर का निर्माण साल 2014 में शुरू हुआ था। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार रामानुजाचार्य स्वामी धरती पर 120 वर्ष तक रहे थे। इसलिए, इस प्रतिमा में 120 किलो सोने का इस्तेमाल किया गया है और इस प्रतीमा की लागत करीब 400 करोड़ रूपए है।
45 एकड़ जमीन पर बना है मंदिर
स्टैच्यू ऑफ इक्वलिटी और रामानुजाचार्य टेंपल 45 एकड़ जमीन पर बना है। मंदिर का मूल भवन करीब 1.5 लाख स्क्वेयर फीट क्षेत्र में बना है। मंदिर परिसर में करीब 25 करोड़ की लागत से म्यूजिकल फाउंटेन का निर्माण कराया गया है। इनके जिरए स्वामी रामानुजाचार्य की गाथा सुनाई जाएगी। स्टैच्यू ऑफ इक्वलिटी का डिजाइन, आर्किटेक्ट और दक्षिण भारतीय फिल्मों के आर्ट डायरेक्टर आनंद साईं ने बनाया है। ये मंदिर अपनी खूबियों के कारण दुनिया के सबसे सुंदर और दुर्लभ मंदिरों में से एक होगा।
कौन थे संत रामानुजाचार्य?
वैष्णव संत रामानुजाचार्य का जन्म सन 1017 में हुआ था। वे विशिष्टाद्वैत वेदांत के प्रवर्तक थे। उनका जन्म तमिलनाडु में ही हुआ था और कांची में उन्होंने अलवार यमुनाचारर्य जी से दीक्षा ली थी। पूरे भारत में रामानुजाचार्य ने घूम-घूमकर वेदांत और वैष्णव धर्म का प्रचार किया। उन्होंने कई संस्कृत ग्रंथों की भी रचना की। उनमें से श्रीभाष्यम् और वेदांत संग्र उनके सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ है। रामानुजाचार्य ने 120 वर्ष की आयु में 1137 में अपना देहत्याग दिया था।