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World Tribal Day 2024: जल-जंगल-जमीन के इर्द-गिर्द घूमता ट्राइब्‍स का जीवन, जानें क्‍यों खास है उनकी संस्‍कृति

World Tribal Day 2024: जल-जंगल-जमीन के इर्द-गिर्द घूमता ट्राइब्‍स का जीवन, जानें क्‍यों खास है उनकी संस्‍कृति

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Sanjeet Kumar
World Tribal Day 2024: जल-जंगल-जमीन के इर्द-गिर्द घूमता ट्राइब्‍स का जीवन, जानें क्‍यों खास है उनकी संस्‍कृति

World Tribal Day 2024: विश्‍व आदिवासी दिवस हर साल 9 अगस्‍त को मनाया जाता है। यह दिवस मनाने का उद्देश्‍य आदिवासी संस्‍कृति, रीति-रिवाज और परंपराओं के संरक्षण के लिए इसकी घोषणा 1994 को संयुक्‍त संघ ने 9 अगस्‍त को विश्‍व आदिवासी दिवस मनाने की घोषणा की।

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इसी आदिवासी दिवस के मौके पर हम आपको इस समुदाय की संस्‍कृति और रीति-रिवाज जो उसके जीवन से जुड़े हुए हैं। वह कैसे प्रकृति को अपनाकर अपने जीवन में जल, जंगल, जमीन को कितना महत्‍वपूर्ण मानता है, इन सबके बारे में इस विशेष लेख में आपको जानकारी दे रहे हैं आदिवासी समुदाय में जन्‍में सहायक प्राध्‍यापक डॉ. हुकुम सिंह मंडलोई। इनका जन्‍म ग्राम कुनेडी पोस्‍ट कोंगसरी तहसील कुक्षी जिला धार मप्र में हुआ है। आदिवासी समुदाय से जुड़े रीति-रिवाजों के बारे में विस्‍तार से जानते हैं-

   संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ की रिपोर्ट में खुलासा

Special on Tribal Day, Dr. Hukum Singh Mandloi

भारत देश को आजाद हुए 75 वर्ष हो गए हैं, उसके बाद भी आदिवासियों (World Tribal Day 2024) के जीवन स्‍तर में बहुत ज्यादा बदलाव देखने को नहीं मिला है। आज भी आदिवासी अभावग्रस्त जीवन जीने को मजबूर हैं। आदिवासियों के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए राज्य सरकार एवं केन्द्र सरकार ने कुछ योजनाएं शुरू की है, वे पर्याप्त नहीं है।

संयुक्‍त राष्ट्र संघ ने आदिवासियों के जीवन स्तर में कितना सुधार हुआ है, उसकी जानकारी के लिए एक समिति का गठन किया था। उस समिति ने संयुक्त राष्ट्र संघ को जो रिपोर्टसौंपी, उसमें बहुत सी समस्याओं का उल्लेख किया गया। समाज की मुख्यधारा से कटे होने के कारण आदिवासी समाज आज भी पिछड़े हुए हैं।

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यही वजह है कि भारत समेत तमाम देशों (World Tribal Day 2024) में इनके उत्थान के लिए, इन्हें बढ़ावा देने के लिए और इनके अधिकारों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए 9 अगस्‍त को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा और आदिवासी समुदाय की उपलब्धियों को सम्मानित करना और उनके अधिकारों  की रक्षा के लिए जागरुकता लाना इसका मुख्‍य उद्देश्‍य है।

संयुक्त राष्‍ट्र संघ ने 1994 को विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त को हर साल मानाए जाने का निर्णय लिया। आदिवासी (World Tribal Day 2024) समुदाय की अपनी संस्कृति वेश-भूषा, बोली रहन सहन, पूजा पद्धति आदि के कारण अपनी एक अलग पहचान रखते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पूरे विश्‍व में 37 करोड़ आदिवासी निवास करते हैं। आज दुनिया में करीब 10 से ज्‍यादा देशों में आदिवासी निवास करते हैं।

   प्रकृति से जुड़े आदिवासियों के त्‍यौहार

Tribal worship for good harvest

भारत में हजारों सालों से जंगलों और पहाड़ी (World Tribal Day 2024) इलाकों में रहने वाले आदिवासियों की अपनी संस्कृति, रीति-रिवाज, रहन-सहन के कारण वे अपनी अलग ही पहचान रखते हैं। इस समुदाय की अलग ही विशेषताएं रही है। आदिवासी प्रकृति प्रेमी होता है। उसका जीवन यापन भी जल, जंगल, जमीन के इर्द-गिर्द ही घूमता है।

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आदिवासियों के त्यौहार (World Tribal Day 2024) भी प्रकृति से जुड़े हुए ही दिखाई देते हैं। वर्षा ऋतु की शुरुआत में ही प्रकृति एवं पशुधन की पूजा आदिवासी करते हैं। बरसाती फसल की बोवनी से पहले पशुओं के देवता, जिसे आदिवाती लोग बेल बाबा के नाम से पुकारते हैं। जिसकी पूजा के लिए दूर-दूर के गांवों से लोग आते हैं।

अपने घर से खाली लोटा एवं एक बेत या छड़ी लेकर जाते हैं। जो पशु देवता को अर्पण करते हैं। यहां से थोड़ा सा पानी बचाकर लाते हैं, जिसे घर के चारों तरफ एवं खेतों पर छिड़‌काव करते हैं। कई बार देखने में आया है कि जिस दिन पशु देवता की पूजा की, उसी दिन अच्छी बरसात भी होती है। ये देव स्थान धार जिले की कुक्षी के गांव बरखेड़ा के पहाड़ी पर स्थित है।

   पूरे गांव से दूध करते हैं एकत्रित

Bhujariya Parv

इसी तरह से आदिवासियों (World Tribal Day 2024) का प्रकृति से लगाव के त्यौहार की शुरुआत हरियाली अमावस्या के दिन से विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तरीके से हो जाती है। जहां बड़ा देव, बूढ़ादेव, बापदेव, दिवाला आदि के नाम से प्रचलित त्यौहार बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है। ये त्‍यौहार भी सीधे प्रकृति से लगाव को इंगित करता है। इस त्यौहार पर गांव के प्रमुख हो या उनके द्वारा नियुक्त व्यक्ति द्वारा पूरे गांव से गाय का दूध एकत्रित किया जाता है।

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कुछ मात्रा में अनाज भी मांगकर  यानि भिक्षा (World Tribal Day 2024) के रूप में लिया जाता है। जो भीलट बाबा की पूजा-अर्चन में काम आता है। उसके पश्चात वहां एकत्रित आम जनता को प्रसादी के रूप में वितरित किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस प्रसाद के खाने से कोई व्‍यक्ति रोग ग्रस्त नहीं होता है। जो रोगग्रस्त है वह ठीक हो जाता है।

पशुधन की भीलट बाबा रक्षा करता है तथा आदिवासियों (World Tribal Day 2024) की मान्यता है कि फसल को भी कोई नुकसान नहीं होता है। अच्छी फसल आने की खुशी में नारियल चढ़ाने की परंपरा भी देखी जाती है। कई अवसर पर आदिवासी पशु नली यानि मुरार्ण बकरे की बली चढ़ाते हैं, लेकिन उसमें भी विधान से पूजन किया जाता है। आदिवासी प्रकृति प्रेमी होने के कारण भोजन प्रसादी भी पलाश या सागवान (सागौन) के पत्तों पर ग्रहण करते हैं।

   आदिवासियों की अनूठी परंपरा

आदिवासियों (World Tribal Day 2024) में ये एक अनुठी परंपरा है कि किसी भी त्यौहार पर महुआ के फूल की शराब का ज्यादा ही महत्व है। उसके बिना तो सारे त्‍यौहार अधूरे हैं। दारू की धार डालने के प्राकृतिक पात्र छोटी लोकी, जिसे आदिवासी भाषा में तुमड़ी बोला जाता है, उसका आदिवासियों के जीवन में अलग ही महत्व है। हर छोटे बड़े कार्यक्रम में उसी पात्र का उपयोग किया जाता है।

   प्रकृति के इर्द-गिर्द ट्राइब्‍स का जीवन

Hariyali Amawasya

हमारे देश में आज भी आदिवासी (World Tribal Day 2024) समाज जल, जंगल, जमीन आदि को बचाने के लिए प्रयासरत हैं। क्योंकि इनका सम्पूर्ण जीवन इनके इद-गिर्द ही घुमता है। आदिवासी समाज में शिक्षा के स्तर में थोड़ा बहुत सुधार हुआ है। कुछ सरकारी सेवा में तो कुछ निजी व्यवसाय में आए हैं। वहीं धार जिला जो कि मध्‍य प्रदेश में आता है। यह जिला आदिवासी बाहुल है।

यह पहले बहुत ही पिछड़ा हुआ जिला था, लेकिन अब शिक्षा के कारण काफी सुधार हुआ है, जिसके चलते कुछ गांवों में हर परिवार में सरकारी नौकरी पर काम कर रहे हैं। यहां जिले के सबसे ज्‍यादा सरकारी नौकरी वाले गांव जिनमें पड़ियाल, डोई, आसपुर, निमथल, कुनेड़ी, ये सब गांव सुदूर अंचल में होने के बाद भी शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़े हैं।

   अपनी परंपराओं का मनाते हैं जश्‍न

विश्‍व आदिवासी दिवस (World Tribal Day 2024) के मौके पर 9 अगस्‍त को पूरे प्रदेश और देशभर में आदिवासी समुदाय कार्यक्रम आयोजित करेंगे। इस दिन सभी अपनी संस्कृति को बचाने पारंपरिक वेश-भूषा में दिखाई देंगे। अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए हाथ में पोस्टर, बैनर, लेकर चलते हैं। साथ ही अपनी परंपरा से सभी को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। साथ पारंपरिक वाद्ययंत्रों, ढोल मांदल ताशे बांसुरी, की धुन पर थिरकते हुए रैली के रूप में निकलते है,  तो निश्चित ही एक झलक पाने के लिए लोग लालाईत हो जाते हैं।

   नौकरी-पैसा वाले आदिवासी भी प्रकृति से जुड़े

आदिवासी पर्यावरण रक्षक समुदाय होने से ऐसे अवसरों पर पर्यावरण संरक्षण के लिए बड़ी मात्रा में पौधारोपण (World Tribal Day 2024) भी करते हैं। उनकी सुरक्षा के लिए सभी शपथ लेते हैं। आदिवासी समाज के लोग नौकरी-पैसा और विद्यार्थी जीवन में भले ही शहरों में रहते हैं, लेकिन इनके त्यौहार प्रकृति पर आधारित ही रहते हैं। ये अपने त्‍यौहारों को मनाने के लिए अपने परिवार के साथ गांव जाते हैं।

   अब नवाखाई का समय नजदीक

Navakhai festival

इसी समय में दिवासा, बुढ़ादेव के बाद नवाखाई का समय भी नजदीक ही आ जाता है। जैसा कि नाम से ही मालूम (World Tribal Day 2024) होता है कि जब नई फसल आ जाती है तो पारंपरिक रूप से अपने देवी-देवताओ की पूजा-अर्चना के बाद ही नई फसल को भोजन बनाकर खाते हैं।

इसकी शुरुआत सावन माह के अंत से भुजरिया पर्व से हो जाती है। ये सब एक आदिवासी के प्रकृति प्रेम का अनूठा उदहारण है। यह त्यौहार अपने रिश्तेदारों गांव वालों के साथ मिलकर मनाया जाता है, जिससे कि आपसी भाईचारा के साथ मधुर संबंध स्‍थापित रहें।

(लेखक- डॉ. हुकुम सिंह मंडलोई)

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