Saal ki Aakhiri Somvati Amavasya 2024 Tulsi ke Upay: हिन्दू पंचांग के अनुसार साल 2024 की आखिरी अमावस्या इस बार 30 दिसंबर को आएगी। अगर आप भी पितरों को प्रसन्न करने और सुख समृद्धि पाना चाहते हैं तो आपको साल की आखिरी सोमवती अमावस्या पर ये उपाय जरूर करना चाहिए।
चलिए जानते हैं सोमवती अमावस्या पर किए जाने वाले उपाय क्या (somvati amavasya upay) हैं, साथ ही जानेंगे सोमवती अमावस्या पर तुलसे से जुड़े उपाय क्या हैं।
सोमवती अमावस्या तिथि और समय (Somvati Amavasya Date And Time)
हिंदू पंचांग के अनुसार, पौष माह की अमावस्या तिथि 30 दिसंबर को सुबह 04:01 मिनट पर आएगी। जिसकी समाप्ति अगले दिन यानी 31 दिसंबर को देर रात 03:56 मिनट पर होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि का महत्व है। यानी उदया तिथि 30 दिसंबर को आने के कारण सोमवती अमावस्या 30 दिसंबर को ही (Somvati Amavasya 2024) मनाई जाएगी।
क्या होती है सोमवती अमावस्या
वैसे तो अमावस्या हर महीने आती है। लेकिन जब अमावस्या तिथि सोमवार के दिन आती है तो उसे सोमवती अमावस्या कहते हैं।
सोमवती अमवास्या पर तुलसी पूजन
ज्योतिष में सोमवती अमावस्या के दिन तुलसी की पूजा का विधान है। इस दिन सुख सौभाग्य की प्राप्ति के लिए महिलाएं तुलसी की पूजा करती हैं।
सोमवती अमावस्या पर तुलसी के उपाय
हिन्दू धर्म में तुलसी पूजन का विशेष महत्व है। इस दिन तुलसी मंत्र के साथ तुलसी जी की 11, 21 परिक्रमा करने से लाभ होता है।
अमावस्या के उपाय (Amavasya Do These 4 Things)
सोमवती अमावस्या को पितरों का तर्पण –
पितरों के लिए बेहद खास माना जाता है। इस दिन इस दिन अपने पूर्वजों का एक जानकार पुजारी तर्पण और दान कराना चाहिए। ऐसा करने से जीवन में खुशहाली आती है। ऐसा माना जाता है इससे पितृ दोष भी समाप्त होता है।
सोमवती अमावस्या पर पिंडदान
अमावस्या तिथि पूर्वजों के लिए समर्पित मानी जाती है। इस दिन पूर्वजों का पिंडदान करने का सबसे सही दिन है। जिन लोगों को अपने पूर्वजों की तिथि पता नहीं होती वे अमावस्या तिथि के दिन पूर्वजों के नाम पिंडदान कर सकते हैं।
।लिंगाष्टकम स्तोत्र (Shiv Lingastakam Stotra)।।
ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं निर्मलभासितशोभितलिङ्गम् ।
जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥१॥
देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं कामदहं करुणाकरलिङ्गम् ।
रावणदर्पविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥२॥
सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम् ।
सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥३॥
कनकमहामणिभूषितलिङ्गं फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम् ।
दक्षसुयज्ञविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥४॥
कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गं पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम् ।
सञ्चितपापविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥५॥
देवगणार्चितसेवितलिङ्गं भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम् ।
दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥६॥
अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गं सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम् ।
अष्टदरिद्रविनाशितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥७॥
सुरगुरुसुरवरपूजितलिङ्गं सुरवनपुष्पसदार्चितलिङ्गम् ।
परात्परं परमात्मकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥८॥
लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥