नई दिल्ली। आपने भगवान और उनकी Shri Radhavallabhji Temple पत्नि रूकमणी के मंदिर तो बहुत देखे होंगे। लेकिन राधाष्टमी के मौके पर हम आपको राधारानी के एक ऐसे मंदिर के दर्शन करानें जा रहे हैं जहां कृष्ण की प्रिया राधा मूर्ति नहीं बल्कि मुकुट के रूप में विराजमान हैं।
यहां हम बात कर रहे हैं श्री राधावल्लभ लाल मंदिर वृंदावन मंदिर की जहां श्रृद्धालु वर्षों से राधारानी को मुकुट के रूप में पूजते आ रहे हैं। कहते हैं इस मंदिर का निर्माण संवत 1585 में अकबर बादशाह के खजांची सुन्दरदास भटनागर ने करवाया था।
ये हैं मंदिर की विशेषता
जानकारी के मुताबिक मंदिर में मुगल बादशाह अकबर Shri Radhavallabhji Temple ने वृंदावन के सात प्राचीन मंदिरों को उनके महत्व को देखते हुए 180 बीघा जमीन आवंटित की थी। जिसमें से 120 बीघा अकेले श्री राधा वल्लभ मंदिर को ही मिली थी। मंदिर में लाल पत्थर लगे हुए हैं। कहते हैं मन्दिर के ऊपर शिखर भी था जिसे औरंगजेब द्वारा तुड़वा दिया गया था।
मंदिर में एक दिन में आठ प्रहर की सेवाएं दी जाती हैं। 3 घंटे को 1 प्रहर के रूप में गिना जाता है। अत: 24 घंटे के हिसाब से 8 प्रहर हो जाते हैं। इस हिसाब से एक दिन की ये आठ सेवाएं इस प्रकार से हैं।
1 — मंगला आरती
2 — हरिवंश मंगला आरती
3 — धूप श्रृंगार आरती
4 — श्रृंगार आरती
5 — राजभोग आरती
6 — धूप संध्या आरती
7 — संध्या आरती
8 — शयन आरती
ये है सेवा पद्धति
इस मंदिर में 7 आरती एवं पाँच भोग वाली सेवा पद्धति का प्रचलन है। जिसमें भोग, सेवा-पूजा श्री हरिवंश गोस्वामी के वंशजों द्वारा सुचारू रूप से की जा रही है। वृंदावन के मंदिरों में से एक मात्र श्री राधा वल्लभ मंदिर ही ऐसा है जिसमें नित्य रात्रि को अति सुंदर मधुर समाज गान की परंपरा शुरू से ही चल रही है। मन्दिर में व्याहुला उत्सव एवं खिचड़ी महोत्सव विशेष इस मंदिर की विशेषता है।