MP Satna Maihar Maa Sharda Mandir: आज से शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navrarti 2024) शुरू हो गई हैं। मध्यप्रदेश में कई ऐसे शक्तिपीठ हैं जो देश-दुनिया में प्रसद्धि हैं। इन्हीं शक्तिपीठों में से एक की बात आज हम करने जा रहे हैं।
यहां की पूजा आज भी रहस्य बनी हुई है। यहां जैसे ही पुजारी मंदिर के पट बंद करते हैं वैसे ही मंदिर में अजीब सी आवाजें आने लगती हैं, जब पट खोले जाते हैं तो पूजा हो चुकी होती है। मध्यप्रदेश का ये 900 साल पुराना मंदिर आज भी रहस्य बना हुआ है।
आज हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh Maa Durga Temple) के सतना जिले (Satna News) के मैहर (Maihar) तहसील के पास त्रिकूट पर्वत पर स्थित माता का मैहर देवी मंदिर। इसे मां का शक्तिपीठ भी कहा जाता है।
मैहर में मैया का कौन सा अंग गिरा था
ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान शिव मृत देवी माँ का शरीर ले जा रहे थे, उस समय उनका हार इस जगह पर गिर गया और इसलिए इस स्थान का नाम मैहर (मैहर = माई का हार ) पड़ गया। एक कहानी यह भी है, कि भगवती सती का उर्ध्व ओष्ठ यहां गिरा था।
900 साल पुराना है मैहर देवी मंदिर
मध्यप्रदेश के सतना में मैहर तहसील में स्थित इस मैहर माता मंदिर को लेकर कहा जाता है कि ये करीब 900 साल पुराना है। ये मंदिर त्रिकूट पर्वत पर स्थित है।
ऐसे पड़ा मैहर नाम
मैहर का मतलब है मां का हार। माना जाता है कि यहां मां सती का हार यहां गिरा था, इसीलिए इसकी गणना शक्तिपीठों में की जाती है। यहां करीब 1,063 सीढ़ियां चढ़ने के बाद माता के दर्शन होते हैं। ऐसी मान्यता है कि पूरे भारत देश में सतना का मैहर मंदिर माता शारदा का एकमात्र मंदिर है।
बंद कपाट में बिना पुजारी हो जाती है पूजा, ऐसी है इस मंदिर की महिमा
ऐसी मान्यता है कि जब शाम की आरती होने के बाद मंदिर के कपाट बंद करके सभी पुजारी नीचे आ जाते हैं तब यहां मंदिर के अंदर से घंटी और पूजा करने की आवाजें आने लगती हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि मां के परम भक्त आल्हा अभी भी पूजा करने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि सुबह की आरती यही आल्हा ऊदल ही करते हैं।
कौन करता है मां शारदा का पहला श्रृंगार
यहां मंदिर को लेकर कई तरह की किवदंतिया हैं। ऐसा कहा जाता है कि यहां पर अभी भी मां शारदा का पहला श्रृंगार आल्हा ही करते हैं और जब ब्रह्म मुहूर्त में शारदा मंदिर के पट खोले जाते हैं तो पूजा हो चुकी होती है।
आल्हा ऊदल कौन थे
मान्यता अनुसार आल्हा और ऊदल दो भाई थे। जो बुन्देलखण्ड के महोबा के वीर योद्धा और परमार के सामंत रहे। इतिहासकारों की मानें तो कालिंजर के राजा परमार के दरबार में जगनिक नाम के एक कवि ने आल्हा खण्ड नामक एक काव्य की रचना की थी। जिसमें इन वीरों की गाथा वर्णित की गई है।
इसमें दों वीरों की 52 लड़ाइयों का रोमांचकारी वर्णन है। आखरी लड़ाई उन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ लड़ी थी। इस युद्ध में चौहान हार गए थे।
कहते हैं कि इस युद्ध में उनका भाई वीरगति को प्राप्त हो गया था। गुरु गोरखनाथ के आदेश से आल्हा ने पृथ्वीराज को जीवनदान दे दिया था। पृथ्वीराज चौहान के साथ उनकी यह आखरी लड़ाई थी।
आल्हा को मां का आशीर्वाद था प्राप्त
ऐसी मान्यता है कि भक्त आल्हा को मां शारदा का आशीर्वाद प्राप्त था, यही कारण था कि पृथ्वीराज चौहान की सेना को पीछे हटना पड़ा था।
आल्हा के हथियार को क्यों नहीं कर पाया कोई सीधी
मां के आदेश पर आल्हा ने शारदा मंदिर पर अपनी साग (हथियार) चढ़ाकर उसकी नोक टेढ़ी कर दी थी, जिसे आज तक कोई सीधा नहीं कर पाया है।
यहां के लोग कहते हैं कि दोनों भाइयों ने ही सबसे पहले जंगलों के बीच शारदादेवी के इस मंदिर की खोज की थी।
आल्हा ने यहां 12 वर्षों तक माता की तपस्या की थी। आल्हा माता को शारदा माई कहकर पुकारा करते थे, इसीलिए उनका नाम शारदा माई प्रचलन में आ गया। इसके अलावा, ऐसी भी मान्यता है, कि यहां पर सबसे पहले आदिगुरु शंकराचार्य ने 9वीं-10वीं शताब्दी में पूजा-अर्चना की थी। माता शारदा की मूर्ति की स्थापना विक्रम संवत 559 में की गई थी।
नवरात्रि में बढ़ जाती है भीड़
नवरात्रि पर मैहर देवी में दर्शनों के लिए रोजाना डेढ़ से दो लाख श्रद्धालु पहुंचते हैं। पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 1063 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। हालांकि यहां पर रोपवे की भी सुविधा उपलब्ध है।
कैसे पहुंचा जा सकता है मैहर मंदिर
यदि आप चाहें तो मैहर मंदिर के लिए सड़क और ट्रेन के जरिए भी सीधे मां शारदा धाम पहुंचा जा सकता है। यदि आप फ्लाइट से आ रहे हैं, तो जबलपुर, खजुराहो अथवा प्रयागराज एयरपोर्ट उतरकर ट्रेन या सड़क मार्ग से मैहर पहुंच सकते हैं।