भोपाल। शरद यादव इनदिनों मीडिया की सुर्खियों से गायब हैं। राजनीतिक रूप से वे हाशिए पर चल रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार वे काफी बीमार भी रहते हैं। लेकिन कभी उन्हें यूपी और बिहार में बड़े नेता के तौर पर जाना जाता था। छात्र राजनीति से लेकर केंद्रीय मंत्री बनने तक का इनका सफर काफी रोचक है। राजनीति के चक्कर में पहले इन्होंने अपना शहर बदला और फिर प्रदेश बदलकर बड़ा कद हासिल कर लिया।
यहां से आई राजनीति में दिलचस्पी
आपको बता दें कि शरद यादव मुख्य रूप से मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में स्थित बाबई गांव के रहने वाले हैं। उनका जन्म 1 जुलाई 1947 को एक किसान परिवार में हुआ था। जब वे 1971 में जबलपुर में इंजिनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे तभी उनकी दिलचस्पी राजनीति में आई। यहां वे छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए। छात्र संघ अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने राजनीति में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
लोहिया से काफी प्रभावित थे
शरद यादव छात्र राजनीति करने के साथ-साथ पढ़ाई लिखाई में भी काफी अव्वल थे। उन्होंने बीई ‘सिविल’ में गोल्ड मेडल जीता था। वे राजनीति में राम मनोहर लोहिया के विचारों से काफी प्रभावित थे। इस कारण से वे अक्सर लोहिया के आंदोलनों में हिस्सा लिया करते थे। इस दौरान उन्हें ‘मिसा’ (misa) के तहत कई बार गिरफ्तार किया गया और उन्हें 1970,72 और 75 में जेल जाना पड़ा। शरद यादव ने मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू कराने में भी अहम भूमिका निभाई।
शरद यादव का राजनीतिक करियर
उनका राजनीतिक करियर तो छात्र राजनीति से ही शुरू हो गया था। लेकिन सक्रिय राजनीति में उन्होंने साल 1974 में पहली बार जबलपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा। ये समय था जेपी आंदोलन का। जेपी ने उन्हें हल्दर किसान के रूप में जबलपुर से अपना पहला उम्मीदवार बनाया था। शरद इस सीट को जितने में कामयाब रहे और पहली बार संसद भवन पहुंचे। इसके बाद साल 1977 में भी वे इसी सीट से सांसद चुने गए। उन्हें युवा जनता दल का अध्यक्ष भी बनाया गया। इसके बाद वे साल 1986 में राज्यसभा के लिए चुने गए।
तीन राज्यों से लोकसभा पहुंचे
शरद यादव भारत के संभवत: पहले ऐसे नेता हैं जो तीन राज्यों से लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं। राज्यसभा जाने के तीन साल बाद 1989 में उन्होंने उत्तरप्रेदश की बदाऊं लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीता भी। यादव 1989-90 तक केंद्रीय मंत्री रहे। उन्हें टेक्सटाइल और फूड प्रोसेसिंग मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया था। यूपी के बाद उनकी एंट्री बिहार में होती है। 1991 में वे बिहार के मधेपुरा लोकसभा सीट से सांसद बनते हैं। इसके बाद उन्हें 1995 में जनता दल का कार्यकारी अध्यक्ष चुना जाता है और साल 1996 में वे 5वीं बार सांसद बनते हैं। 1997 में उन्हें जनता दल का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना जाता है। इसके बाद 1999 में उन्हें नागरिक उड्डयन मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया और एक जुलाई 2001 को वह केंद्रीय श्रम मंत्रालय में कैबिनेट मंत्री चुने गए। 2004 में वे दूसरी बार राज्यसभा सांसद बने। 2009 में वे सातवीं बार सांसद बने। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें मधेपुरा सीट से हार का सामना करना पड़ा।
नीतीश कुमार के राजनीतिक गुरू
बतादें कि शरद यादव को राजनीतिक गठजोड़ में माहिर खिलाड़ी माना जाता है। इसके अलावा उन्हें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राजनीतिक गुरू भी माना जाता है।