Santana Saptami 2021 : संतान की लंबी आयु के लिए होगा संतान सप्तमी व्रत

नई दिल्ली। भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की Santana Saptami 2021 सप्तमी को संतान सप्तमी के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष यह 13 सितंबर यानि सोमवार को किया जाएगा। इसे माता—पिता अपनी संतान के सुख समृद्धि व रक्षा के लिए रखते हैं।
ये है मुहूर्त एवं विधि
मुहूर्त :
संतान तिथि 12 सितंबर 2021 दिन रविवार को शाम 5:20 बजे से शुरू हो रही है जो 13 सितंबर 2021 दिन सोमवार को दोपहर 3:10 पर समाप्त होगी।
पूजा का शुभ मुहूर्त :
पूजन का मुहूर्त 13 सितंबर 2021 को सुबह 12:00 बजे से दोपहर में 3:10 तक रहेगा।
संतान सप्तमी की पूजन सामग्री
शिव जी की परिवार प्रतिमा अवश्य होना चाहिए। इसके अलावा लकड़ी की चौकी, कलश, अक्षत, रोली, मौली, केले का पत्ता, श्वेत वस्त्र, फल, फूल ,आम का पल्लव, भोग लगाने के लिए सात-सात पूआ या मीठी पूड़ी, कपूर, लौंग, सुपारी, सुहाग का सामान, चांदी का कड़ा या रेशम का धागा आवश्यक रूप से इसमें शामिल होना चाहिए।
ये रही पूजन विधि
ब्रहृम मुहूर्त में उठकर स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनें। इसके बाद शिव जी व विष्णु जी की पूजा करें। तत्पश्चात संतान सप्तमी व्रत तथा पूजन का संकल्प लें। निराहार रहते हुए शुद्धता से पूजन का सामान तैयार करें। इस पूजन में गुड़ से बने सात पुआ, खीर। फिर गंगाजल से छिड़ककर पूजन स्थल को शुद्ध करें। इसके बाद लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं।
जिस पर शिव परिवार की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें। इसके सामने कलश की स्थापना करें। कलश में जल, सुपारी, अक्षत,1 रुपए का सिक्का, डालकर उस पर आम का पल्लव लगाएं। जिसके ऊपर एक प्लेट में चावल रखकर एक दीपक उसके ऊपर जला दें। फिर भगवान को चढ़ाने वाले आटे और गुड़ के 7-7 पुए जिसे महाप्रसाद कहते हैं, इन्हें केले के पत्ते में बांधकर वहां पर रख दें।
इसके बाद फल—फूल, धूप दीप से विधिवत पूजन करते हुए पूजा की शुरूआत करें। यदि चांदी की नया कड़ा बनवाया है तो ठीक है, यदि पुराना उपयोग कर रहे हैं तो पहले चांदी के कड़े को शिव परिवार के सामने रखकर दूध व जल से शुद्ध करके टीका लगाकर भगवान का आशीर्वाद ले लें। इसके बाद चांदी के कड़े को अपने दाहिने हाथ में पहने। इसके बाद संतान सप्तमी व्रत कथा सुने।
दोपहर 12:00 बजे के बाद करें पूजा
पूजन के साथ व्रत कथा सुनने के बाद पूजा के लिए बनाए गए सात-सात पुओं को भगवान को चढ़ाएं। उसमें से सात पूयें ब्राह्मण को दें। इसके बाद 7 पूयें स्वयं प्रसाद के रूप में ग्रहण करें। इस भोग के साथ ही अपना व्रत तोड़ें।