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संत सियाराम बाबा पंचतत्व में हुए विलीन: लाखों श्रद्धालुओं ने नम आंखों से दी विदाई, सीएम मोहन यादव भी हुए शामिल

Sant Siyaram Baba Death Funeral: निमाड़ के प्रसिद्ध संत सियाराम बाबा पंचतत्व में विलीन हो गए। उनका अंतिम संस्कार खरगोन जिले के कसरावद स्थित तेली भट्यान गांव में नर्मदा नदी के किनारे किया गया, जहां साधु-संतों ने उन्हें मुखाग्नि दी।

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Rohit Sahu
संत सियाराम बाबा पंचतत्व में हुए विलीन: लाखों श्रद्धालुओं ने नम आंखों से दी विदाई, सीएम मोहन यादव भी हुए शामिल

Sant Siyaram Baba Death Funeral: निमाड़ के प्रसिद्ध संत सियाराम बाबा पंचतत्व में विलीन हो गए। उनका अंतिम संस्कार खरगोन जिले के कसरावद स्थित तेली भट्यान गांव में नर्मदा नदी के किनारे किया गया, जहां साधु-संतों ने उन्हें मुखाग्नि दी। इस अवसर पर लाखों श्रद्धालुओं ने नम आंखों से बाबा को विदाई दी। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी इस अंतिम संस्कार में उपस्थित रहे। इसके पहले, सियाराम बाबा की उनके आश्रम से नर्मदा घाट तक अंतिम यात्रा निकाली गई, जिसमें श्रद्धालुओं ने "जय सियाराम" के नारे लगाए। अंतिम यात्रा में लगभग 3 लाख लोगों ने बाबा के अंतिम दर्शन करने पहुंचे।

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सुसज्जित डोले में निकाली गई अंतिम यात्रा

संत सियाराम बाबा का अंतिम संस्कार नर्मदा घाट पर किया गया। उनको सुसज्जित डोले में विराजमान कर अंतिम यात्रा निकाली गई, जो हनुमान मंदिर के पास से शुरू हुई। इस दौरान भक्तों ने "जय जय सियाराम" के जयकारे लगाए। बाबा का अंतिम संस्कार हनुमान मंदिर से नीचे की ओर नर्मदा घाट पर किया गया।

सीएम मोहन यादव ने दी श्रद्धांजलि 

https://twitter.com/DrMohanYadav51/status/1866807774002209012

दोपहर करीब 3 बजे मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सियाराम बाबा के आश्रम पहुंचकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने बाबा की समाधि और क्षेत्र को पवित्र स्थल के रूप में विकसित करने और उसे एक पर्यटन स्थल बनाने का ऐलान किया। यह जानकारी दी गई कि प्रसिद्ध संत सियाराम बाबा का 110 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने बुधवार को मोक्षदा एकादशी के दिन सुबह 6:10 बजे अंतिम सांस ली। बाबा पिछले 10 दिनों से निमोनिया से ग्रस्त थे।

कौन थे संत सीयाराम बाबा

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संत सियाराम के अनुयायियों के अनुसार, बाबा का असली नाम किसी को भी नहीं मालूम। वे 1933 से नर्मदा किनारे रहकर तपस्या कर रहे थे और 10 साल तक खड़े रहकर मौन तपस्या की। वे लगभग 70 सालों से रामचरित मानस का पाठ भी करते आ रहे थे। अपने तप और त्याग के जरिए उन्होंने लोगों के दिलों में एक खास स्थान बना लिया। जब उन्होंने पहली बार मुंह से "सियाराम" का उच्चारण किया, तभी से लोग उन्हें संत सियाराम बाबा के नाम से पुकारने लगे।

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