नई दिल्ली। आज हम आपको स्टोरी ऑफ द डे में उस अमेरिकी शख्स की कहानी बताने जा रहे हैं। जिन्होंने भारतीयों को सही मायनों में सेब की खेती करना सिखाया। उन्होंने अपना जीवन न केवल भारत में बिताया बल्कि अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया। हम बात कर रहे हैं ‘स्टॉक्स जूनियर’ की। स्टॉक्स अमेरिका के जाने-माने परिवार से ताल्लुक रखते थे। वे स्टॉक्स एंड पैरिश मशीन कंपनी के वारिस थे। वे चाहते तो अमेरिका में अपना जीवन एशो आराम से बिता सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। सैम्युल इवान्स स्टॉक्स जूनियर ने अपना जीवन भारत में कोढ़ से पीड़ित मरीजो की सेवा करते हुए बिताया।
पिता को लगा कि बेटा ट्रिप पर जा रहा है
भारत में उन्हें सत्यानंद के नाम से जाना जाता था। सत्यानंद यानी कि सैम्युल साल 1904 में अमेरिका से भारत आए थे। उनके पिता को लगा कि सैम्युल कुछ समय के लिए भारत ट्रिप पर जा रहा है। लेकिन सैम्युल तो भारत आकर बस ही गए। सबसे पहले उन्होंने शिमला के पास कुष्ठ रोगियों की सेवा शुरू की। उन्हें यहां काम करते हुए काफी समय हो गया था, लेकिन एक दिन उन्हें लगा कि अभी भी यहां के लोग उन्हें बाहरी समझते हैं। ऐसे में उन्होंने भारतीय कपड़े पहनना शुरू किया। इतना ही नहीं उन्होंने पहाड़ी बोलना भी सीखा। उनका ये तरीका काम कर गया। धीरे-धीरे लोग उन्हें अपना मानने लगे और समझ गए कि सैम्युल उनकी सेवा के लिए यहां रह रहे हैं।
सैम्युल के कारण ही आप सेब खा रहे हैं
सैम्युल को भारत में रहते हुए और कुष्ठ रोगियों की सेवा करते हुए काफी समय बीत चुका था। उन्हें अब हिमालय के मौसम और मिट्टी के बारे में काफी जानकारी हो गई थी। ऐसे में उन्होंने सोचा कि इस मौसम और मिट्टी में अमेरिका में उगाये जाने वाले एक सेब की प्रजाति को उगाया जा सकता है। फिर क्या था उन्होंने पहाड़ी लोगों को सेब की खेती करने के लिए जागरूक किया ताकि उन्हें रोजगार मिल सके। जब लोगों ने खेती शुरू की तो उन्होंने अपने संपर्क से इन किसानों के लिए दिल्ली के बाजार के रास्ते भी खुलवाए। बतादें कि सैम्युल के इस योगदान के लिए उन्हें ‘हिमालय का जोहनी एप्पलसीड’ भी कहा जाता है। मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो अगर आज आप भारत में सेब खा रहे हैं तो वह सत्यानंद उर्फ सैम्युल की ही देन है।
खुद को मानते थे 100% भारतीय
सैम्युल ने भारतीयों पर ब्रिटिश राज का हमेशा विरोध किया था। उन्होंने कई बार ब्रिटिश सरकार को नोटिस जारी कर भारतीय पुरूषों से जबरदस्ती श्रम कराने को लेकर आगाह किया था। खास बात यह है कि उन्होंने जितनी बार ब्रिटिश सरकार को पत्र लिखे, उसमें उन्होंने भारतीय मजदूरों के बारे में ‘उन्हें’ कहने के बजाय ‘हम’ कह कर संबोधित किया था। सैम्युल पूरी तरह से अपने आप को भारतीय मानते थे।
जेल भी गए
जालियांवाला बाग हत्याकांड के बाद सैम्युल ने अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल होने का फैसला किया। वह पंजाब में काफी सक्रिय हो गए और पंजाब प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य बन गए। साल 1920 में वे भारतीय कांग्रेस कमेटी के नागपुर सत्र में भाग लेने वाले एकमात्र गैर-भारतीय थे। साल 1921 में उन्होंने प्रिंस ऑफ वेल्स, एडवर्ड VIII की भारत यात्रा का विरोध किया। जिसके बाद उन्हें अंग्रेजों ने राजद्रोह के आरोप में वाघा में गिरफ्तार कर लिया। उन्हें लगभग 6 महीने जेल में रहना पड़ा था।
हिंदू धर्म अपनाया
सैम्युल और उनकी पत्नी ने अपना धर्म परिवर्तन कर लिया था और हिंदू बन गए थे। उन्होंने सैम्युल स्टॉक्स से अपना नाम बदल कर सत्यानंद रख लिया था। दोनों पति-पत्नी ने अपने बच्चों को भारतीयों की तरह ही पाला।