(रिपोर्ट- दुर्गेश कुमार यादव)
Sambhal Riots: संभल में 1978 मे हुए दंगे में 184 लोगों की मौत हुई थी। मौत के बाद तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार ने गंभीर आठ केस वापस लिए थे। इस दौरान बनवारी लाल गुप्ता सहित 24 लोगों को जिंदा जला दिया था। उस समय पीड़ितों को न्याय नहीं मिला था। अब केस वापस लेने का लेटर सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। अब सरकार से लोगों ने न्याय की उम्मीद जगाई है।
रमेश की आंखों देखी
तत्कालीन प्रत्यक्षदर्शी रमेश ने पूरी आंखों देखी बताई है। रमेश ने बताया कि 1978 दंगे के समय मैं 13 साल का था। उस समय चाय के होटल पर 30 रुपये महीना पर काम करता था। उस समय एक जुलूस निकल रहा था। उस जुलूस में नारेबाजी हो रही थी। उसका विरोध करने वालों को जिंदा जला दिया गया था। दंगे के बाद कर्फ्यू लग गया। मैं डर कर घर भाग गया था।
उस समय न्याय नहीं मिला- रमेश
प्रत्यक्षदर्शी रमेश ने बताया कि उस समय न्याय नहीं मिला था। पीड़ितों के घर वालों को मुआवजा भी कम मिला था। यदि अब भी सरकार केस खोलता है तो अच्छी बात होगी। पीड़ितों को न्याय और सही मुआवजा मिलना चाहिए।
1978 में क्यों हुए दंगे?
साल 1978 में, जब देश मोरारजी देसाई सरकार के नोटबंदी की घोषणा से झटके में था, उसी समय उत्तर प्रदेश के संभल में सांप्रदायिक दंगों का तूफान उठ रहा था। सांप्रदायिक तनाव के रूप में शुरू हुआ विवाद जल्दी ही संभल का सबसे विनाशकारी दंगा बन गया। इसमें 184 लोग मारे गए, जिनमें 180 हिंदू थे। साल 1978 के दंगों से संभल की डेमोग्राफी बदल गई। हिंसा में दंगाइयों पर 16 मुकदमे दर्ज हुए थे। इसमें से आठ मुकदमे तत्कालीन सरकार ने वापस लिये थे।
सोशल मीडिया पर लेटर वायर
23 दिसंबर, 1993 का एक लेटर सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। ये लेटर उत्तर प्रदेश सरकार के न्याय विभाग के विशेष सचिव ने जिला मजिस्ट्रेट को लिखा था। लेटर में न्याय विभाग ने संभल दंगों से जुड़े 8 मुकदमों को वापस लेने का आदेश दिया था। अब इसी लेटर के चलते लोग सरकार से न्याय की गुहार लगा रहे हैं।