Salt Workers : जब भी हम अपने घर में खाना बनाते है तो उसमे हमे नमक की आवश्यकता जरूर होती है। क्योंकि नमक ही एक ऐसा जो हमारे खाने के स्वाद को बैलेंस करके रखता है। नमके के बिना खाना अधूरा माना जाता है। नमक हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग बन चुका है, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी है जिनके लिए नमक नासूर है। नमक मे स्वाद का सुख भी है और दुख भी है। ये दुख जिनको नसीब है वो गुजरात के 50 हजार से अधिक नमक बनाने वाले मजदूरों की। हम बात कर रहे है नमक बनाने वालों की, जिनके लिए नमक बनाना तो एक धंधा है लेकिन उकने शरीर के लिए किसी पीढ़ा से कम नहीं है।
मारने के बाद भी नहीं जलते पैर
नमक बनाने मजदूरों को अगरिया कहा जाता है। मानसून खत्म होते ही इन अगरिया मजदूरों का पलायन शुरू हो जाता है। अगर ये पलायन नहीं होता तो आपकी थाली में नमक नहीं होता। नमक बनाने वालों का कहना है कि हम पीढ़ियों से नमक बनाते आ रहे है, लेकिन हम नहीं चाहते की बच्चों के बच्चे अब यही काम करें, हम नहीं चाहते कि हमारे बच्चों के हाथों में फावड़ा हो। नमक बनाने का काम करने वाले मजदूरों का कहना है कि नमक बनाना हमारी मजबूरी है क्योंकि यही एक मात्र रोजगार है। मजदूरों की माने तो उनके जूते एक साल चलते है। अगर हम बिना जूतों के काम करे तो हमारे पांव जल नहीं सकते, भले ही हम मर जाएं मरने के बाद भी हमारे पांव नहीं जलते। हमे पैरों को नमक में डाल के गड्डे में डालना पड़ता है। मजदूरों का कहना है कि नमक बनाने का काम करने से उनके पैरों में सूजन आती है, आंखों में जलन होती है।
गुजरात में 5 हजार करोड़ का कारोबार
गुजरात में नमक बनाने का कारोबार करीब 5 हजार करोड़ का है। लेकिन नमक सरकार की प्राथमिकता में नहीं है। नमक को कृषि नहीं बल्कि इंड्रस्ट्री माना जाता है। पहले मशीने नहीं होती थी तो नमक बनाने का काम सब कुछ काम हाथों से होता था। नमक हाथों से उठाते थे तो हाथों में छाले पड़ जाते थे। छालों में पानी भर जाता और फिर फावड़ा चलाते तो जलन होती थी। महिला मजदूरों का कहना है कि पूरा देश हमारा नमक खाता है, हम पढ़े नहीं इसलिए हम नमक बनाने लगे। मन नहीं होता की अब बच्चों के बच्चे भी यही काम करें। बच्चे पढ़ लिख जाएंगे तो कुछ बन जाएंगे। हम नहीं चाहते की हमारे बच्चों के हाथों में भी फावड़ा आए।
इनका दर्द महसूस जरूरी
हजारों अगरिया मजदूरों की जिंदगी को अगर पास से देखा जाए तो महसूस होता है, कि देश ने जिसका नमक खाया तो आखिर उसने क्या पाया। सरकारों इन मजदूरों की पीढ़ा समझना होगा। इन मजदूरों की देखभाल के लिए जरूरी सुविधाएं मुहैया करानी होगी। अगर ऐसा नहीं हुआ तो इन मजदूरों के बच्चे भी नमक के इस दलदल में फंस के रह जाएंगे।