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Sakat Chauth 2025 Vrat Katha: संतान की दीर्घायु के लिए किया जाने वाला सकट चौथ का व्रत इस साल 17 जनवरी 2025 को रखा जाएगा। जनवरी में मकर संक्रांति के बाद माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है। हिन्दू पंचांग (Hindu Panchang) के अनुसार सकट चौथ को सकट, तिलकुटा चौथ, तिलकुट, वक्र-तुण्डि चतुर्थी और माघी चौथ के नाम से भी जाना जाता है।
अगर आप भी शुक्रवार को ये व्रत रखने वाली हैं तो आपको पूजा में कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है। चलिए जानते हैं ज्योतिषाचार्य से सकट चौथ पूजा के नियम क्या हैं। इस पूजा में भगवान को कौन सा फूल नहीं चढ़ाना चाहिए।
सकट चौथ पर कौन से फूल नहीं चढ़ाना चाहिए
ऐसा माना जाता है कि सकट चौथ के दिन भगवान गणेश की पूजा में विशेष ध्यान रखना चाहिए। जानकारों की मानें तो सकट चौथ पर गणेश पूजा में फूल अर्पित करते समय आपको ध्यान रखना है कि आप केतकी के फूल भूलकर भी न चढ़ाएं। साथ ही आपको इस दौरान तुलसी के पत्तों का भी इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। यदि आप ऐसा करते हैं तो आपको दोष लगेगा।
जानिए सकट चौथ व्रत रखने के नियम
सकट चौथ के दिन भगवान गणेश को तिलकुट का भोग लगाना न भूलें। इस दिन तिल से बनी चीजों, तिल के लड्डू या तिल से बनी मिठाई का भोग लगाया जा सकता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन व्रत निर्जला रखा जाता है। जानकारी के अनुसार चंद्रमा को जल अर्घ्य देने के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है। सकट चौथ के दिन भगवान गणेश को उनके हरे रंग के ही कपड़े पहनाना चाहिए।
सकट चौथ पर भूलकर भी न करें ये कम
ऐसा माना जाता है सकट चौथ का व्रत रखने वाली महिलाओं और माताओं को भूलकर भी काले रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिए। काला रंग अशुभता का प्रतीक माना जाता है। महिलाएं इस दिन चंद्रमा को जल अर्पित करने के बाद ही व्रत का पारायण करती हैं। व्रती महिलाएं को इस बात का ध्यान रखना है कि चंद्रमा को अर्घ्य देते समय जल के छींटे पैरों पर न पड़ें।
जल के छींटे पैरों पर गिरना अशुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि सकट चौथ के दिन गणपति जी को मोदक का भोग लगाने से सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। ऐसा भी कहा जाता है कि सकट चौथ व्रत के दिन भगवान गणेश की पूजा करते समय केतकी के फूल और तुलसी का उपयोग भूलकर भी न करें। इनका उपयोग पूजन में अशुभ हो सकता है। सकट चौथ की पूजा में गणेश जी की खंडित मूर्ति भूलकर भी न उपयोग करें। ऐसा करना शुभ नहीं माना जाता है। अगर आप गणेशजी की नई मूर्ति घर लाना चाहते हैं तो इस दिन ला सकते हैं।
सकट चौथ व्रत की सही तिथि
हिन्दू पंचांग के अनुसार, सकट चौथ का व्रत हर साल माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को आता है। इस साल 2025 में सकट चौथ का व्रत 17 जनवरी को रखा जाएगा।
सकट चौथ व्रत का महत्व
हिन्दू पंचांग के अनुसार सकट चौथ को सकट, तिलकुटा चौथ, तिलकुट, वक्र-तुण्डि चतुर्थी और माघी चौथ के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि सकट चौथ व्रत में गौरी पुत्र गणेश और सकट माता की आराधना करने से संतान की दीर्घायु की कामना की जाती है। इससे संतान को सुखी जीवन का आशीर्वाद मिलता है।
सकट चौथ व्रत कथा
माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को सकट चौथ का व्रत किया जाता है। यह व्रत भगवान गणेश को समर्पित है। इसमें माताएं अपनी संतान के लिए व्रत करती हैं। इस साल यह व्रत 17 जनवरी 2025 को रखा जाएगा। इस व्रत में माताएं निर्जला व्रत करती हैं। शाम को चंद्रमा को देखकर व्रत खोलती हैं।
इस व्रत में चंद्रमा की पूजा का भी विशेष महत्व है। इस व्रत में गणपति को तिल से बने तिलकूट का भोग लगाया जाता है, इसलिए इसे तिलकुटा चौथ भी कहते हैं। पढ़ें इस व्रत में पढ़ी जाने वाली सकट माता और गणेश जी से जुड़ी यह कथा
एक शहर में देवरानी-जेठानी रहती थी। देवरानी बहुत ही गरीब थी, बड़ी मुश्किल से उसका गुजारा चलता था। वहीं जेठानी अमीर थी। देवरानी हमेशा गणेश जी का पूजन और व्रत करती थी। देवरानी का पति जंगल से लकड़ी काट कर बेचता था। देवरानी घर का खर्च चलाने के लिए जेठानी के घर काम करती थी और शाम को जो भी बचा हुआ खाना होता था , वह जेठानी उसे दे देती थी।
इस तरह उसके घर का खर्च चल रहा था। माघ महीने में गणेश जी का व्रत सकट चौथ देवरानी ने रखा, उसके पास पैसे नहीं थे। इसलिए उसने तिल व गुड़ लाकर तिलकुट्टा बनाया। पूजा करके तिल चौथ की कथा सुनी और जेठानी के यहां काम करने चली गई, सोचा शाम को चंद्र को अर्घ्य देकर जेठानी के यहां से कुछ खाना मिलेगा, तो खा लेगी।
शाम को जब जेठानी के घर खाना बनाया तो, उसके जेठानी का व्रत होने के कारण सभी ने खाना खाने से मना कर दिया। अब देवरानी ने जेठानी से बोला, आप मुझे खाना दे दो, जिससे मैं घर जाऊं। इस पर जेठानी ने कहा कि आज तो किसी ने भी अभी तक खाना नहीं खाया, तुम्हें कैसे दे दूं? तुम सवेरे ही बचा हुआ खाना ले जाना।
ऐसे में देवरानी बहुत दुखी हुई और भूखी ही घर चली गई। बच्चे भी घर पर भूखे थे। देवरानी का पति , बच्चे सब आस लगाए बैठे थे की आज तो त्यौहार हैं इसलिए कुछ पकवान आदि खाने को मिलेगा, लेकिन जब बच्चो को पता चला कि आज तो रोटी भी नहीं मिलेगी तो बच्चे रोने लगे। उसका पति भी बहुत क्रोधित हो गया और कहने लगा कि दिन भर काम करने के बाद भी वह दो रोटियां नहीं ला सकती। देवरानी बेचारी गणेश जी को याद करती हुई रोते रोते पानी पीकर सो गई। उस दिन सकट माता बुढ़िया का रुप धारण करके देवरानी के सपने में आईं । सपने में उन्होंने देवरानी से पूछा कि सो रही है या जाग रही है।
वह बोली, कुछ सो रहे हैं, कुछ जाग रहे हैं। बुढ़िया माई ने कहा, भूख लगी हैं , खाने के लिए कुछ दे। इस पर देवरानी ने कहा कि क्या दूं , मेरे घर में तो अन्न का एक दाना भी नहीं हैं, जेठानी बचा हुआ खाना देती थी आज वो भी नहीं मिला। पूजा का बचा हुआ तिलकुटा छींके में पड़ा हैं, वही खा लो। सकट माता ने तिलकुट खाया और उसके बाद कहने लगी निमटाई लगी है। इस पर देवरानी ने कहा, बुढ़िया माई बाहर कहां जाओगी, कोई जानवर काट लेगा, यह खाली झोंपड़ी है आप कहीं भी जा सकती हो, जहां इच्छा हो वहां निमट लो। इसके बाद सकट माता बोलीं कि अब कहां पोंछूष इस पर देवरानी ने कहा कि मेरी साड़ी से पोछ लो।
देवरानी जब सुबह उठी तो यह देखकर हैरान रह गई कि पूरा घर हीरों और मोतियों से जगमगा उठा था।उस दिन देवरानी जेठानी के काम करने नहीं गई।जेठानी ने कुछ देर तो राह देखी फिर बच्चो को देवरानी को बुलाने भेज दिया। जेठानी ने सोचा कल खाना नहीं दिया था इसीलिए शायद देवरानी बुरा मान गई होगी। बच्चे बुलाने गए, देवरानी ने कहा कि बेटा बहुत दिन तेरी मां के यहां काम कर लिया। बच्चो ने घर जाकर मां से कहा कि चाची का पूरा घर हीरों और मोतियों से जगमगा उठा है।
जेठानी दौड़कर देवरानी के पास आई और पूछा कि यह सब कैसे हो गया? देवरानी ने उसके साथ जो हुआ वो सब कह डाला। उसने भी वैसा ही करने की सोची। उसने भी सकट चौथ के दिन तिलकुटा बनाया। रात को सकट माता उसके भी सपने में आईं और बोली भूख लगी है, मैं क्या खाऊं, ,जेठानी ने कहा कि आपके लिए छींके में रखा हैं, फल और मेवे भी रखे है जो चाहें खा लो। उसके बाद कहने लगी निमटाई लगी है। जेठानी बोली मेरे इस महल में कहीं भी निपट लो, फिर उन्होंने बोला कि अब पोंछू कहां, जेठानी बोली -कहीं भी पोछ लो। सुबह जब जेठानी उठी, तो घर में बदबू, गंदगी के अलावा कुछ नहीं थी।
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