Sakat Chauth 2025: संतान की दीर्घायु के लिए सकट चौथ का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को करने से भगवान गणेश जी (Lord Ganesh) की कृपा प्राप्त होती है।
इस बार अगर आप भी बच्चे की दीर्घायु का व्रत रख रही हैं कि तो चलिए हम आपके साथ शेयर कर हैं सकट चौथ की व्रत कथा (sakat Chauth Vrat katha)।
इस व्रत को संकटा के गणेश (Sankata ke Ganesh) भी कहते हैं।
सकट चौथ व्रत कथा (1)
बहुत पहले की बात हैं एक बार भगवान गणेश बाल रूप में पृथ्वी लोक के भ्रमण पर निकले थे। इस दौरान वे चुटकी भर चावल और एक चम्मच दूध लेकर चले थे। वे सबसे यह कहते घूम रहे थे, कोई मेरी खीर बना दे, कोई मेरी खीर बना दे।
पर इस दौरान उनकी बात पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। तभी एक गरीब वृद्ध महिला उनकी खीर बनाने के लिए तैयार हो गई।
इस पर गणेशजी ने घर का सबसे बड़ा बर्तन चूल्हे पर चढ़ाने के लिए कहा। बुढ़िया ने बाल लीला समझते हुए घर का सबसे बड़ा भगौना उस पर चढ़ा दिया।
भगवान गणेश के दिए चावल और दूध भगौने में डालते ही भगौना भर गया। इसी बीच भगवान गणेश वहां से चले गए और बोले अम्मा जब खीर बन जाए तो बुला लेना।
पीछे से बुढ़िया के बेटे की बहू ने एक कटोरी खीर चुराकर खा ली और एक कटोरी खीर छिपाकर अपने पास रख ली।
अब जब खीर तैयार हो गई, तो बुढ़िया माई ने आवाज लगाई- आजा रे गणेशा खीर खा ले।
तभी भगवान गणेश वहां पहुंच गए और बोले, कि मैंने तो खीर पहले ही खा ली। तब बुढ़िया ने पूछा कि कब खाई, तो वे बोले कि जब तेरी बहू ने खाई तभी मेरा पेट भर गया। बुढ़िया ने इस पर माफी मांगी।
इसके बाद जब बुढ़िया ने बाकी बची खीर का क्या करें, इस बारे में पूछा तो गणेश जी ने उसे नगर में बांटने को कहा और जो बचें उसे अपने घर की जमीन गड्ढा करके दबा दें।
अगले दिन जब बुढ़िया उठी तो उसे अपनी झोपड़ी महल में बदली हुई और खीर के बर्तन सोने- जवाहरातों से भरे मिले। गणेश जी की कृपा से बुढ़िया का घर धन दौलत से भर गया। हे गणेशजी भगवान जैसे बुढ़िया को सुखी किया वैसे सबको खुश रखें।
सकट चौथ व्रत कथा (2)
एक नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार जब उसने बर्तन बनाकर आंवा लगाया तो आंवा नहीं पका। हारकर वह राजा के पास जाकर प्रार्थना करने लगा कि आंवां पक ही नहीं रहा है। राजा ने पंडित को बुलाकर कारण पूछा तो राज पंडित ने कहा कि हर बार आंवां लगाते समय बच्चे की बलि देने से आंवां पक जाएगा। राजा का आदेश हो गया। बलि आरंभ हुई। जिस परिवार की बारी होती वह परिवार अपने बच्चों में से एक बच्चा बलि के लिए भेज देता।
इसी तरह कुछ दिनों बाद सकट के दिन एक बुढ़िया के लड़के की बारी आई। बुढ़िया के लिए वही जीवन का सहारा था। लेकिन राजआज्ञा के आगे किसी की नहीं चलती। दुःखी बुढ़िया सोच रही थी कि मेरा तो एक ही बेटा है, वह भी सकट के दिन मुझसे जुदा हो जाएगा। बुढ़िया ने लड़के को सकट की सुपारी और दूब का बीड़ा देकर कहा, ‘भगवान् का नाम लेकर आंवां में बैठ जाना। सकट माता रक्षा करेंगी।’
बालक को आंवा में बैठा दिया गया और बुढ़िया सकट माता के सामने बैठकर पूजा करने लगी। पहले तो आंवा पकने में कई दिन लग जाते थे, पर इस बार सकट माता की कृपा से एक ही रात में आंवां पक गया था। सवेरे कुम्हार ने देखा तो हैरान रह गया। आंवां पक गया था। बुढ़िया का बेटा भी सुरक्षित था और अन्य बालक भी जीवित हो गए थे। नगरवासियों ने सकट की महिमा स्वीकार की तथा लड़के को भी धन्य माना। तब से आज तक सकट की विधि विधान से पूजा की जाती है।
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