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रिसर्च में खुलासा, कॉटन के कपड़ों में इतने दिन तक जिंदा रहता है कोरोना वायरस

रिसर्च में खुलासा, कॉटन के कपड़ों में इतने दिन तक जिंदा रहता है कोरोना वायरस

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News Bansal
रिसर्च में खुलासा, कॉटन के कपड़ों में इतने दिन तक जिंदा रहता है कोरोना वायरस

Coronavirus: कोरोना वायरस दुनिया भर में अपने पैर पसार चुका है। लेकिन अब तक वैज्ञानिक इसके बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं निकाल पाए हैं। हालांकि इसके कई तरह से शोध अब भी इसे लेकर किए जा रहे हैं। जिनमें कई तरह की जानकारियां निकलकर सामने आ रही हैं। ऐसी ही एक जानकारी एक बार फिर से सामने आ रही है कि कोरोना वायरस किन कपड़ों में कितने समय तक जिंदा रहता है। इसको लेकर कई तरह के शोध हो चुके हैं और एक बार फिर से नया शोध हुआ है जिसेक अनुसार कोविड-19 वायरस सामान्य रूप से पहने जाने वाले कपड़ों पर तीन दिनों तक जीवित रह सकता है।

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दरअसल, वैज्ञानिकों ने यह अध्ययन कोरोना वायरस स्वास्थ्य सेवा से जुड़े उद्योग में आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले तीन तरह के कपड़ों पर कैसा व्यवहार करता है। यह अध्ययन ब्रिटेन के लीसेस्टर शहर में स्थित डी मोंटफोर्ट विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने किया है।

वायरस के संचरण का होता है जोखिम

अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं के मुताबिक हेल्थकेयर यूनिफॉर्म में इस्तेमाल होने वाली सामग्रियों में वायरस के संचरण का जोखिम होता है। नतीजों से पता चला है कि पॉलिएस्टर ने उच्चतम संचरण जोखिम उत्पनन पैदा किया, उसमें वायरस तीन दिनों के बात तक संचरण कर रहे थे। वहीं अध्ययन के मुताबिक, 100 फीसदी कॉटन पर वायरस 24 घंटे तक रहता है।

पॉलीकॉटन पर सिर्फ 6 घंटे तक जीवित वायरस

शोध के मुताबिक पॉलीकॉटन पर वायरस सिर्फ 6 घंटे तक ही जीवित रहा। दर्सल, वैज्ञानिकों ने 72 घंटों तक हर सामग्री पर वायरस का संचरण होते हुए देखा।

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सूती कपड़ों से जल्दी हट जाता है वायरस

शोध में पाया गया कि सूती कपड़ों से 100 फीसदी वायरस को हटाने के लिए सबसे विश्वसनीय वॉश विधि को भी देखा जा सकता है। इस दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि जब डिटर्जेंट का इस्तेमाल किया गया तो तापमान में 67 डिग्री सेल्सियस से ऊपर बढ़ गया और वायरस खत्म हो गया।

क्रॉस कन्टेमिनेशन पर कोई खतरा नहीं

अध्ययन में पाया गया है कि साफ-सुथरी वस्तुओं को धोए जाने पर क्रॉस-कन्टेमिनेशन का कोई खतरा नहीं था, जिन चीजों पर वायरस मौजूद थे उनके साथ ही स्वच्छ वस्तुओं को धोने पर भी वायरस के मौजूद होने का कोई खतरा नहीं था।

नोटः (इस शोध के बारे में डी मोंटफोर्ट विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर प्रकाशित हुई जानकारी पर आधारित है, यह लेख इसी वेबसाइट से लिया गया है।)

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