Ramcharitmanas: प्राचीन रामचरितमानस की पांडुलिपियों, पंचतंत्र और सहृदयलोक-लोकन को ‘यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड एशिया-पैसिफिक रीजनल रजिस्टर’ में रजिस्टर किया गया है।
अब यूनेस्को की तरफ से भी गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस और पंचतंत्र की कथाओं को मंजूरी मिल गई है। अधिकारियों की तरफ से सोमवार को कहा गया था कि यह फैसला एशिया और प्रशांत के लिए विश्व समिति की स्मृति (एमओडब्ल्यूसीएपी) की 10वीं आम बैठक में लिया गया।
The Ramcharitmanas, Panchatantra, and Sahṛdayāloka-Locana enter ‘UNESCO's Memory of the World Asia-Pacific Regional Register’ pic.twitter.com/SVvnsTv9Vb
— ANI (@ANI) May 15, 2024
बता दें कि ये बैठक 7 और 8 मई को मंगोलिया की राजधानी उलानबटार में आयोजित की गई थी। यूनेस्को ने रामचरितमानस (Ram Charit Manas) की सचित्र पांडुलिपियां और पंचतंत्र दंतकथाओं की 15वीं शताब्दी की पांडुलिपि और 2024 के संस्करण में एशिया पैसिफिक की 20 धरोहरों को शामिल किया है।
राम मंदिर के बाद आया फैसला
यूनेस्को में रामचरित मामस, पंचतंत्र और सहृदयालोक-लोकन की पांडुलिपि शामिल होना हर भारतीय के लिए गौरव का क्षण है। यूनेस्को की तरफ से ये फैसला उस समय लिया गया, जब अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बना है।
यहां पर रोजाना लाखों भक्त भगवान राम के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। वहीं, अब यूनेस्को ने भी भारत की समृद्ध साहित्यिक विरासत और सांस्कृतिक विरासत पर अपनी मुहर लगा दी है।
MOWCAP की 10वीं बैठक में लिया फैसला
बता दें कि 7 और 8 मई को मंगोलिया की राजधानी उलानबटार में मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड कमेटी फॉर एशिया एंड द पैसिफिक की 10वीं बैठक को आयोजित किया गया था, जिसमें यह फैसला लिया गया।
बता दें कि यूनेस्को की मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड एशिया पैसिफिक कमेटी इन विश्व धरोहरों में अन्य श्रेणियों के अलावा, जीनोलॉजी, साहित्य और विज्ञान में एशिया-प्रशांत की उपलब्धियों को मान्यता देने का कार्य करती है।
16वीं शताब्दी में लिखी गई रामचरित मानस
रामचरित मानस को तुलसीदास ने 16वीं शताब्दी में लिखा था। इसको अवधी बोली में लिखा गया था। वहीं, रामचरित मानस को चौपाई रूप में लिखा गया था, जो ग्रंथ और रामायण से भिन्न है। जबकि रामायण को ऋषि वाल्मिकी ने संस्कृत भाषा में लिखा था।
वहीं, पंचतंत्र को दुनिया की दंतकथाओं के सबसे पुराने संग्रहों में एक माना जाता है। पंचतंत्र को विष्णु शर्मा ने संस्कृत भाषा में लिखा था। बता दें कि विष्णु शर्मा महिलारोप्य के राजा अमर शक्ति के दरबारी विद्वान थे।
ये भी कहा जाता है कि इसकी रचना 300 ईसा पूर्व के आसपास की गई थी। इसके अलावा ‘सहृदयालोक-लोकन’ की रचना आचार्य आनंदवर्धन ने संस्कृत में 10वीं शताब्दी के आखिरी और 11वीं शताब्दी के शुरुआती वर्षों में की थी। कहा जाता है कि वह कश्मीर में रहा करते थे।
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