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नई दिल्ली। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ करीब दो महीने से किसान दिल्ली के बॉडर पर डटे हुए हैं। लेकिन गणतंत्र दिवस के दिन किसानों द्वारा निकाली गई ट्रैक्टर रैली में हुई हिंसा से अब ये आंदोलन थोड़ा कमजोर पड़ने लगा है। इस आंदोलन में शामिल कई किसान संगठनों ने पीछे हटने का मन बना लिया है। तो कई संगठन खुद को इस आंदोलन से अलग भी कर चुके हैं। गुरूवार शाम तक ऐसा लग रहा था कि अब आंदोलन खत्म हो जाएगा और किसान अपने-अपने घर को चले जाएंगे। लेकिन देर शाम एक वीडियो वायरल हुआ। उस वीडियों में किसान नेता राकेश टिकैत ने रोते हुए कहा कि पहले हमने आंदोलन को खत्म करने का मन बना लिया था, लेकिन अब घर नहीं जाएंगे। इसके पीछे उन्होंने हवाला दिया कि उन्हें कुछ बीजेपी के नेता प्रदर्शन स्थल पर आ कर परेशान कर रहे हैं। इसके बाद से फिर एक बार किसान वापस गाजियाबाद बॉडर पर पहुंचने लगे हैं। ऐसे में ये जानना जरूरी हो जाता है कि कौन हैं राकेश टिकैत (Rakesh Tikait), जिन्होंने खत्म हो चुके आंदोलन को फिर से एक बार खड़ा कर दिया है।
महेंद्र टिकैत के बेटे हैं राकेश टिकैत
मालूम हो कि कुछ साल पहले तक देश में तीन बड़े किसान नेताओं के रूप में लोग चौधरी चरण सिंह, चौधरी देवीलाल और महेंद्र टिकैत को जानते थे। जिसमें से महेंद्र टिकैत (Mahendra Tikait) एक ऐसे किसान नेता थे जिनका किसी राजनीतिक दल से संबंध नहीं था। उन्होंने एक किसान यूनियन को बनाया था। जिसका नाम है भारतीय किसान यूनियन। अब आप सोच रहे होगें कि बात यहां राकेश टिकैत की होनी थी। लेकिन बताया जा रहा है महेंद्र टिकैत के बारे में। ऐसा हम इसलिए कर रहे हैं क्योकि राकेश की पहचान महेंद्र टिकैत से जुड़ी हुई है।
आंदोलन के लिए पुलिस की नौकरी छोड़ दी
राकेश टिकैत ममेंद्र टिकैत के छोटे बेटे हैं और उनके बड़े भाई का नाम नरेश टिकैत (Naresh Tikait) है। राकेश का जन्म उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में हआ था। वे इस वक्त भारतीय किसान यूनियन (Bharatiya Kisan Union) के राष्ट्रिय प्रवक्ता हैं। उन्होंने दो बार चुनाव भी लड़ा है। लेकिन उन्हें यहां हार मिली, लेकिन उन्होंने किसानों के मसले पर कभी हार नहीं मानी है। इस किसान आंदोलन को खड़ा करने में भी उनकी अहम भूमिका रही है। राकेश एक पढ़े लिखे किसान नेता हैं। उन्होंने LLB की पढ़ाई की हुई है। साथ ही वो पहले दिल्ली पुलिस में भी थे। उस दौरान उनके पिता किसानों के समर्थन में लाल किला पर आंदोलन कर रहे थे। तब तत्कालीन सरकार ने राकेश से कहा था कि अगर उन्हें नौकरी में रहना है तो अपने पिता को कहें कि वो इस आंदोलन को खत्म कर दें। लेकिन राकेश ने सरकार की बातों को अनसूना करते हुए खुद ही नौकरी को छोड़ दिया और अपने पिता के साथ आंदोलन में शामिल हो गए।
BKU का सारा काम राकेश ही देखते हैं
पिता की मौत के बार भारतीय किसान यूनियन का सारा काम काज राकेश ही देखते हैं। लेकिन वे यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि वे जिस बालियान खाप पंचायत से आते हैं उसके नियमों के अनुसार यूनियन का उतराधिकारी बड़ा बेटा होता है। यही कारण है कि BKU के राष्ट्रीय अध्यक्ष राकेश के भाई नरेश टिकैत हैं। लेकिन संगठन का सारा काम राकेश टिकैत ही देखते हैं। राकेश अब तक 44 बार जेल जा चुके हैं। हालांकि सबसे ज्यादा उन्हें मध्यप्रदेश में एक बार भूमि अधिग्रहण कानून के खिलाफ आंदोलन करने पर 39 दिनों तक जेल में रहना पड़ा था।
राजनीति में नहीं मिली सफलता
राकेश टिकैत ने किसान आंदोलन के साथ-साथ राजनीति में भी हाथ आजमाया। लेकिन उन्हें यहां सफता नहीं मिली। उन्होंने सबसे पहले 2007 में मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया, लेकिन वे हार गए। इसके बाद एक बार फिर उन्होंने साल 2014 में राष्ट्रीय लोक दल की सीट पर अमरोहा से लोकसभा का चुनाव लड़ा। इस बार भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा।