Rajiv Gandhi Death Anniversary : राजीव गांधी की हत्या की पूरी कहानी, जानिए कैसे लिट्टे ने रची थी साजिश

नई दिल्ली। 21 मई। यानी कि आतंकवादी विरोध दिवस। इस दिन 21 मई 1991 में भारत के सातवें प्रधानमंत्री राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) की एक आतंकवादी घटना में हत्या कर दी गई थी। इसके बाद से ही भारत में इस दिन को आंतवादी विरोध दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। इस दिन को मनाने के पीछे का उद्देश्य युवाओं को आतंकवाद और हिंसा से दूर रखना है और लोगों की पीड़ा को दिखाना है कि कैसे आतंकवाद राष्ट्रीय हित के लिए खतरनाक है।
तमिलों को प्रताड़ित किया जा रहा था
मालूम हो कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के पीछे श्रीलंका में सक्रिय आतंकी संगठन लिट्टे का हाथ था। दरअसल, श्रीलंका की आजादी के समय से ही वहां तमिल भाषी लोगों को बहुसंख्या बौद्ध धर्म को मानने वाले सिंहला समुदाय की उपेक्षा झेलनी पड़ी थी। इसके बाद धीरे-धीरे करके हर क्षेत्र में तमिल लोग हाशिये पर धकेल दिए गए। इसी भेदभाव के कारण तमिलों ने हथियार उठा लिए और वेलुपिल्लई प्रभाकरण ने (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम) यानी लिट्टे नाम का एक आतंकवादी संगठन बना लिया।
भारतीय तमिल इस चीज से दुखी थे
80 के दशक में लिट्टे सबसे मजबूत, अनुशासित और बड़ा तमिल आतंकवादी संगठन बन गया। अब आप सोच रहे होंगे कि तमिल संगठन श्रीलंका में बना तो इसका भारत से क्या कनेक्शन है। दरअसल, उस समय भारत के तमिल श्रीलंका के तमिल से सहानुभूति रखते थे और उनपर हो रहे अत्याचार से काफी दुखी थे। इस कारण से भारतीय तमिल श्रीलंकाई तमिलों का सहयोग करने लगे थे। इस बीच जुलाई 1983 में श्रीलंका में 13 सैनिकों की हत्या के बाद दंगे भड़क गए जिसमें तमिलों को बड़ी संख्या में मारे गए और गृहयुद्ध की स्थिति बन गई।
भारत – श्रीलंका के बीच शांति समझौता हुआ था
इसके बाद साल 1987 में भारत और श्रीलंका के बीच शांति समझौता हुआ। इस समझौते पर भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने हस्ताक्षर किए थे। समझौते के तहत भारत को श्रीलंका में इंडियन पीस कीपिंग फोर्स नाम का एक सैन्य दल भेजना था। ताकि लिट्टे को आत्मसमर्ण कराया जाए। बतादें कि शुरू में लिट्टे आत्मसमर्पण को तैयार था और कई सामूहिक आत्मसमर्पण भी हुए। लेकिन तीन हफ्ते बाद ही यह समर्पण बंद हो गया। क्योंकि समझौते को लेकर बाद में लिट्टे में नाराजगी हो गई थी।
लिट्टी के कई लोगों को लगने लगा था कि समर्पन के बाद उनके हथियारों को लिट्टे विरोधियो को दिया जा रहा है। साथ ही तमिलों को बसाने को लेकर भी उनके अंदर असंतोष था।
लिट्टे को डर सताने लगा था
आत्मसमर्पण के बाद, श्रीलंकाई सेना द्वारा गिरफ्तार किए गए लिट्टे समर्थकों में से 12 लोगों ने आत्महत्या कर ली। इस आत्महत्या कांड ने मामले को और गंभीर बना दिया। एक समय में लग रहा था कि अब श्रीलंका में सबकुछ ठीक हो जाएगा। लेकिन इस कांड ने लिट्टे और आईपीकेएफ को आमने सामने लाकर खड़ा कर दिया। वहीं भारत में राजनैतिक दल आईपीकेएफ को वापस बुलाने की मांग करने लगे। बतादें कि तब भारत में बदलती राजनीति का दौर था। 1989 में सत्ता परिवर्तन के साथ वीपी सिंह सरकार में आ गए थे। उन्होंने श्रीलंका से आईपीकेएफ को वापस बुला लिया। इसके बाद साल 1990 में राजीव गांधी ने भारत श्रीलंका समझौते पर एक बार फिर पक्ष लिया और अखंड श्रीलंका की बात की। राजीव गांधी के इस बात ने लिट्टे समर्थक नाराज हो गए। उन्हें लगने लगा कि अगर राजीव दोबारा प्रधानमंत्री बने तो आईपीकेएफ को वापस श्रीलंका भेज दिया जाएगा। इसलिए लिट्टे ने उसकी हत्या की साजिश रचनी शुरू कर दी।
शरणार्थी बनकर आतंकी आए थे भारत
इस साजिश को लिट्टे प्रमुख प्रभाकरण, लिट्टे की खुफिया ईकाई के प्रमुख पोट्टू ओम्मान, महिला दल के प्रमुक अकीला और सिवरासन ने रचा था, जिसमें सिवरासन इस प्लान का मास्टरमाइंड था। राजीव गांधी का इंटरव्यू प्रकाशित होने के एक महीने बाद लिट्टे के आतंकियों की पहली टुकड़ी शरणार्थी बनकर भारत आई। इसके बाद सात दलों ने भारत में अलग अलग जगहों पर अपने ठिकाने बनाए जहां से संदेशों का आदान प्रदान होता रहा। राजीव गांधी की हत्या से पहले मई 1991 में लिट्टे के आतंकियों, मानव बम धनु और सुबा सहित नौ लोगों को मद्रास में वीपी सिंह की सभा में वीवीआईपी सुरक्षा घेरा तोड़ने का अभ्यास कराया गया। इस अभ्यास में धनु और सूबा वीपी सिंह को माला पहनाने में सफल रहे। इसके बाद 19 मई 1991 को शिवरासन को समाचार पत्रों के माध्यम से सूचना मिली कि राजीव गांधी 21 मई को श्रीपेरंबदूर की यात्रा करने वाले हैं। आतंकी अपनी योजना के अनुसार पहले इस सभा में पहुंचे उसके बाद राजीव गांधी के पास पहुंचे, फिर उन्हें माला पहनाई और धमाके को अंजाम दे दिया।