पैरेंटल बर्नआउट एक मेंटल और इमोशनल कंडीशन होती है. जिसमें माता-पिता अपने बच्चों की देखभाल और पालन-पोषण के दौरान थकान और तनाव का अनुभव करते हैं. यह स्थिति आमतौर पर तब होती है जब माता-पिता अपने बच्चों की जिम्मेदारियों और अपेक्षाओं के बीच संतुलन नहीं बना पाते हैं, और उन्हें पर्याप्त आराम और सपोर्ट नहीं मिल पाता है.
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जिससे पैरेंट को शारीरिक और मानसिक रूप से टूटने लगते हैं, जिससे उनकी कार्यक्षमता और पारिवारिक संबंध प्रभावित होते हैं. पैरेंटल बर्नआउट के लक्षणों में अत्यधिक थकान, चिड़चिड़ापन, हताशा, बच्चों से दूरी महसूस करना, और अपनी भूमिका के प्रति असंतोष शामिल हो सकते हैं.
इस स्थिति को संभालने के लिए जरूरी है कि माता-पिता अपने लिए भी समय निकालें, आत्म-देखभाल पर ध्यान दें, और आवश्यकता पड़ने पर समर्थन मांगें.
पैरेंटल बर्नआउट के लक्षण
पैरेंटल बर्नआउट की स्तिथि में आप के कई बदलावों के साथ कुछ लक्षण दिख सकते हैं.
पैरेंटल बर्नआउट के लक्षण शारीरिक या भावनात्मक थकावट का अनुभव करना.
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अपनी पैरेंटिंग को लेकर शर्मिंदगी महसूस करना या यह सोचना कि हम उतने अच्छे माता-पिता नहीं हैं या दूसरे हमसे बेहतर अभिभावक हैं.
माता-पिता होने की भूमिका से परेशान होना.
अपने बच्चों से भावनात्मक रूप से अलग महसूस करना.
बच्चों से रिश्ते की बॉन्डिंग या मजबूती में कमी आना.
कैसे बचे पैरेंटल बर्नआउट से
खुद के लिए समय निकालें
बच्चों की परवरिश में ख़ुद को न भुला दें. थोड़ा समय अपने लिए जरूर निकालें. अपनी सेहत को प्राथमिकता दें. ऐसा करने को स्वार्थी होना ना समझें. एक किशोरवय बच्चे की मां ने तो अपने लिए तीन नियम बनाकर, फ्रिज पर नोट की तरह चिपका दिया है, ताकि रोज करना याद रहे.
पहला, बिस्किट या मैदे की कोई वस्तु खाने के बजाय बादाम खाना. दूसरा, नजर उठाकर आसमान की तरह देखना. तीसरा, रोज कोई एक काम ऐसा करना, जिसे करने में ख़ुशी मिलती हो, जैसे गार्डनिंग, संगीत सुनना आदि. मी टाइम ख़ुद को रिचार्ज करने के लिए बहुत जरूरी है.
मदद मांगने से न हिचकिचाएं.
यदि आप कामकाजी हैं, तो घर और बच्चों की जिम्मेदारियों के बीच यदि आपको किसी की मदद मिल जाए तो काम आसान हो जाते हैं. सुपरमॉम बनने की कोशिश न करें. इसके लिए यदि आपको किसी की मदद मांगनी पड़ रही है, तो इससे हिचकिचाएं नहीं.
ज़िम्मेदारियों को बाटें
परवरिश की ज़िम्मेदारी अकेले मां की नहीं होती है, इस बात को घर के लोगों और आपके पार्टनर को समझना जरूरी है. बेशक मां की जिम्मेदारी थोड़ी ज्यादा हो सकती है.
लेकिन अगर आप पैरेंटल बर्नआउट का शिकार नहीं होना चाहतीं, तो जिम्मेदारियों को आधा-आधा बांट लें. इससे आप थकान से दूर रह पाएंगी और जिंदगी काफ़ी आसान हो जाएगी.
लोगों से मिले-जुलें
खुश रहने के लिए अपने जीवन को बच्चे तक सीमित न कर लें. उन लोगों से मिले-जुलें जिनसे मिलकर, बात करके आपको खुशी मिलती है या सुकून का अहसास होता है.
सपनों का बोझ न डालें
हर पैरेंट की कोशिश होती है अपने बच्चे को परफेक्ट बनाने की. इसके लिए वे अपने सपनों का बोझ बच्चों पर डालने की गलती कर बैठते हैं और जब बच्चे उस पर खरे नहीं उतरते तो दोनों को निराशा हाथ लगती है. यह दोहरा नुक़सान है. इससे बचकर रहना ही बेहतर है.