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Defamation Case: राहुल ने खटाखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा, हाई कोर्ट ने किया था सजा पर रोक से इनकार

नई दिल्ली। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने गुजरात उच्च न्यायालय के सात जुलाई के आदेश को चुनौती देते हुए शनिवार को उच्चतम न्यायालय का रुख किया ।

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राहुल गांधी के समर्थन में

नई दिल्ली। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने गुजरात उच्च न्यायालय के सात जुलाई के आदेश को चुनौती देते हुए शनिवार को उच्चतम न्यायालय का रुख किया और कहा कि यदि उस आदेश पर रोक नहीं लगाई गई तो इससे ‘‘स्वतंत्र भाषण, स्वतंत्र अभिव्यक्ति, स्वतंत्र विचार और स्वतंत्र वक्तव्य’’ का दम घुट जाएगा। गुजरात उच्च न्यायालय ने ‘‘मोदी उपनाम’’ वाली टिप्पणी को लेकर आपराधिक मानहानि मामले में राहुल गांधी की दोषसिद्धि के फैसले पर रोक लगाने के अनुरोध वाली उनकी याचिका सात जुलाई को खारिज कर दी थी।

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गांधी ने अपनी याचिका में कहा कि यदि उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक नहीं लगाई गई तो यह लोकतांत्रिक संस्थानों को व्यवस्थित तरीके से, बार-बार कमजोर करेगा और इसके परिणामस्वरूप लोकतंत्र का दम घुट जाएगा, जो भारत के राजनीतिक माहौल और भविष्य के लिए गंभीर रूप से हानिकारक होगा। उनकी याचिका में कहा गया है, ‘‘अत्यंत सम्मानपूर्वक यह दलील दी जाती है कि यदि विवादित फैसले पर रोक नहीं लगाई गई, तो इससे स्वतंत्र भाषण, स्वतंत्र अभिव्यक्ति, स्वतंत्र विचार और स्वतंत्र बयान का दम घुट जाएगा।’’

क्या है मामला?

गांधी ने कहा कि उनके बयान के लिए उन्हें दोषी ठहराने और दोषसिद्धि पर रोक लगाने से इनकार करने की गलती तीन बार की गई है तथा यह और भी बड़ा कारण है कि शीर्ष अदालत को जल्द से जल्द हस्तक्षेप करना चाहिए और नुकसान को रोकना चाहिए। गांधी ने ‘एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड’ प्रसन्ना एस. के जरिये अपील दायर की। गुजरात में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक पूर्णेश मोदी द्वारा दायर 2019 के मामले में सूरत की मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अदालत ने 23 मार्च को राहुल गांधी को दोषी ठहराते हुए दो साल जेल की सजा सुनाई थी।

इस फैसले के बाद गांधी को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों के तहत संसद की सदस्यता से 24 मार्च, 2023 को अयोग्य घोषित कर दिया गया था। यदि दोषसिद्धि पर रोक लग जाती, तो इससे राहुल गांधी की संसद सदस्यता बहाल होने का मार्ग प्रशस्त हो जाता। उच्च न्यायालय ने इस मामले में दोषसिद्धि पर रोक संबंधी राहुल गांधी की याचिका खारिज करते हुए सात जुलाई को कहा था कि ‘राजनीति में शुचिता’ अब समय की मांग है। न्यायमूर्ति हेमंत प्रच्छक ने याचिका खारिज करते हुए टिप्पणी की थी, ‘‘जनप्रतिनिधियों को स्वच्छ छवि का व्यक्ति होना चाहिए।’’

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अदालत ने यह भी कहा था कि दोषसिद्धि पर रोक लगाना नियम नहीं, बल्कि अपवाद है, जो विरले मामलों में इस्तेमाल होता है। अदालत ने कहा था कि दोषसिद्धि के फैसले पर रोक लगाने का कोई तर्कसंगत आधार नहीं है। न्यायमूर्ति प्रच्छक ने याचिका खारिज करते हुए 125 पृष्ठ के अपने फैसले में कहा था कि गांधी पहले ही देशभर में 10 मामलों का सामना कर रहे हैं और निचली अदालत का कांग्रेस नेता को उनकी टिप्पणियों के लिए दो साल कारावास की सजा सुनाने का आदेश ‘‘न्यायसंगत, उचित और वैध’’ है। गांधी के खिलाफ मानहानि मामले में शिकायतकर्ता भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी ने भी उच्चतम न्यायालय में एक कैविएट दायर की है। कैविएट में अनुरोध किया गया है कि अगर राहुल गांधी ‘मोदी उपनाम’ टिप्पणी मामले में उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए कोई याचिका दाखिल करते हैं, तो शिकायतकर्ता के पक्ष को भी सुना जाए।

‘कैविएट’ किसी वादी के द्वारा अपीलीय अदालत में दाखिल की जाती है और उसमें निचली अदालत के फैसले अथवा आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर कोई आदेश पारित किए जाने से पहले उसके पक्ष के सुने जाने का अनुरोध किया जाता है। राहुल गांधी ने 13 अप्रैल, 2019 को कर्नाटक के कोलार में एक चुनावी रैली के दौरान टिप्पणी की थी कि ‘‘सभी चोरों का समान उपनाम मोदी ही क्यों होता है?’’ इस टिप्पणी को लेकर विधायक ने गांधी के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मामला दर्ज कराया था।

उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रच्छक ने कहा था कि मौजूदा शिकायत दर्ज कराने के बाद हिंदुत्ववादी विचारक वी. डी सावरकर के पोते ने राहुल गांधी के 'कैम्ब्रिज में वीर सावरकर के खिलाफ अपमानजनक बयान' के लिए पुणे की एक अदालत में एक और शिकायत दर्ज करायी थी। साथ ही लखनऊ की एक अदालत में भी उनके खिलाफ एक अलग शिकायत दायर की गई थी। न्यायाधीश ने कहा था कि इस परिप्रेक्ष्य में दोषसिद्धि पर रोक लगाने से इनकार करना किसी भी प्रकार से आवेदक के साथ अन्याय नहीं कहलाता। उच्च न्यायालय ने कहा था, ‘‘अपीलीय अदालत (सूरत) द्वारा पारित किया गया आदेश न्यायसंगत, उचित और कानून-सम्मत है, और इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। हालांकि, संबंधित जिला न्यायाधीश से अनुरोध किया जाता है कि वह अपनी योग्यता के आधार पर तथा कानून के दायरे में यथाशीघ्र आपराधिक अपील पर निर्णय लें।’’

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न्यायमूर्ति प्रच्छक ने अपराध गंभीर न होने की गांधी की दलील पर कहा था, ‘‘अभियुक्त सांसद थे, वह राष्ट्रीय स्तर पर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के अध्यक्ष थे तथा उस पार्टी के अध्यक्ष थे, जिसने 50 साल से अधिक समय तक देश में शासन किया था। वह हजारों लोगों के सामने भाषा दे रहे थे और उन्होंने चुनाव परिणाम प्रभावित करने के इरादे से चुनाव में गलतबयानी की थी।’’ उन्होंने कहा था कि राहुल उस वक्त एक रैली को संबोधित कर रहे थे और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नाम लेकर खलबली पैदा करना चाहते थे। अदालत ने कहा था कि मौजूदा मानहानि मामला गंभीर प्रकृति का है। उसने अपने आदेश में कहा था, ‘‘आरोपी वहीं नहीं रुके, बल्कि यह भी कहा कि ‘सारे चोरों के (उप)नाम मोदी ही क्यों है।

इस प्रकार मौजूदा मामला निश्चित तौर पर गंभीर अपराध की श्रेणी में आएगा।’’ इस मामले में सूरत की मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अदालत ने 23 मार्च को राहुल गांधी को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं 499 और 500 (आपराधिक मानहानि) के तहत दोषी ठहराते हुए दो साल जेल की सजा सुनाई थी। फैसले के बाद गांधी को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों के तहत संसद की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। राहुल गांधी 2019 में केरल के वायनाड से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे।

इसके बाद गांधी ने दोषसिद्धि पर रोक लगाने का अनुरोध करते हुए एक अर्जी के साथ सूरत की एक सत्र अदालत में आदेश को चुनौती दी थी। सत्र अदालत ने 20 अप्रैल को गांधी की जमानत मंजूर कर ली थी, लेकिन दोषसिद्धि के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। इसके बाद उन्होंने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।

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