- हाईलाइट्स
- कांग्रेस के पैनल पर राहुल गांधी की टिप्पणी
- गुना से दिग्गी, जबलपुर से नाथ लड़ेंगे चुनाव!
- कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दिया सुझाव
- ‘राजा vs महाराजा’ के बीच होगी जंग!
- जबलपुर में कमलनाथ ठोकेंगे चुनावी ताल
जब से मध्यप्रदेश में बीजेपी की पहली लिस्ट घोषित हुई तब से ही कांग्रेस भी उम्मीदवारों के पैनल को फाइनल करने में जुट गई है।
कांग्रेस ने एमपी की हर लोकसभा सीट पर एक पैनल बनाया है, जिसमें तीन-तीन दावेदारों के नाम हैं।
हाल ही में जब ये पैनल दिल्ली गया और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने इसपर नजर दौड़ाई तो उन्होंने इसे सिरे से नकार दिया।
सियासी गलियारों की मानें तो इस पैनल पर टिप्पणी करते हुए राहुल ने साफ कहा है कि जो बड़े नेता लीडरशिप की बात करते हैं वो चुनाव लड़ने का चैलेंज भी लें।
राहुल का इशारा कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, जीतू पटवारी और उमंग सिंघार पर था।
अगर राहुल गांधी की इस टिप्पणी को अमलीजामा पहनाया गया तो जबलपुर से कमलनाथ और गुना से दिग्विजय सिंह चुनाव लड़ते नजर आ सकते हैं।
‘राजा vs महाराजा’ के बीच होगी जंग!
राघोगढ़ विधानसभा सीट गुना लोकसभा में आती है, राघौगढ़ दिग्विजय सिंह की परंपरागत सीट है।
जाहिर है कांग्रेस इस समीकरण का फायदा उठा सकती है।
इसके अलावा सिंधिया रियासत में आने वाली गुना शिवपुरी सीट में ज्योतिरादित्य सिंधिया को महाराज नाम से जाना जाता है तो वहीं, इलाके के लोग दिग्विजय को दिग्गी राजा कहते हैं।
अगर दिग्विजय सिंह इस चुनाव में मैदान में उतरे तो गुना में राजा बनाम महाराज का मुकाबला देखना दिलचस्प होगा।
जबलपुर में कमलनाथ ठोकेंगे चुनावी ताल
कमलनाथ का गढ़ छिंदवाड़ा महाकौशल संभाग में आता है।
एमपी कांग्रेस की राजनीति पर नजर डालें तो महाकौशल की राजनीति में कमलनाथ का एकछत्र राज चलता है।. इसके चलते ही राहुल गांधी ने कमलनाथ को जबलपुर से चुनाव लड़ने का सुझाव दिया है।
बीजेपी ने इस सीट पर आशीष दुबे को चुनावी मैदान पर उतारा है।
दुबे पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं कमलनाथ 9 बार के सांसद रह चुके हैं।
अगर कमलनाथ इस सीट से चुनाव लड़ते हैं तो यकीनन बीजेपी के लिए जबलपुर में झंडे गाड़ना आसान नहीं रहेगा।
बहरहाल 11 मार्च यानी कल दिल्ली में सीईसी यानी कांग्रेस इलेक्शन कमेटी की बैठक होनी है माना जा रहा है कि इस बैठक में 29 सीटों में से 20 के नाम फाइनल कर दिए जाएंगे।
अब ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या कांग्रेस के बड़े नेता चुनाव लड़ने का चैलेंज स्वीकार करेंगे या फिर डर कर सत्ता का दामन छोड़ देंगे, सियासत के भीरतखाने क्या कहानी रहेंगी ये तो आने वाला लोकसभा चुनाव ही बताएगा।