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Rabindranath Tagore Jayanti 2024: गुरुवार 9 मई को हम देश को पहला नोबेल प्राइज दिलाने वाले गुरुदेव र​बीन्द्रनाथ टैगोर की जयंती मना कर उन्हें याद करेंगे।
पर उन्हें याद करने के साथ ही सभी के मन में एक सवाल ये भी उठता है कि आखिर भारत ही नहीं एशिया को पहला नोबेल प्राइज (Nobel Prize kahan hain) दिलाने वाले गुरु रबीन्द्र टैगोर की सबसे बड़ी पहचान आखिर कहाँ गायब है।
जी हां हम बात कर रहे हैं उनके चोरी हुए नोबेल प्राइज (Nobel Prize) की। जिसके चोरी होने के 20 साल बाद आज भी पुलिस उसे ढूंढ नहीं पाई है।
इस पर नोबेल चोर (Nobel Chore) नाम से बंगाली भाषा में मिथुन चक्रवर्ती (Mithun Chakravarti) अभिनीत फिल्म बन चुकी है।
9 मई गुरुवार को रबीन्द्र नाथ टैगोर की जयंती (Rabindranath Tagore 2024) मनाई जाएगी। ऐसे में हर कोई जानना चाहता है कि आखिर रबीन्द्र नाथ टैगोर की असली पहचान कहां है।
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देश के महान साहित्यकार गीतांजलि (Geetanjali) के लिए नोबल प्राइज प्राप्त रबीन्द्रनाथ टैगोर की जयंती (Ravindranath Tagour Jayanti 2024) की डेट को लेकर यदि आप भी कंफ्यूज हैं। आपके मन में भी ये सवाल आ रहा है कि आखिर रबीन्द्रनाथ टैगोर की जयंती कब है 7 मई या 9 मई, तो आपको बता दें उनकी जयंती दोनों ही दिन मनाई जाती है।
पर आखिर 7 मई या 9 मई दो दिन क्यों मनाई जाती है। जानते हैं इसके पीछे का रोचक तत्थ क्या है। आज गुरुवार को उनकी 163 वीं जयंती मनाई जाएगी।
देश के महान साहित्यकार रबीन्द्र नाथ टैगौर की कुछ खास पंक्तिंयां हैं, जो व्यक्ति को जीवन जीने और प्रेम करने के लिए प्रेरित करती हैं। वे हैं 'इस दुनिया में जीने का तभी फायदा है जब आप इससे प्रेम करते हों'।
रबीन्द्र नाथ टैगौर न केवल एक साहित्यकार थे बल्कि एक महान कवि, नाटककार, संगीतकार, समाज सुधारक और चित्रकार भी रहे हैं।
नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले भारतीय थे रबीन्द्र नाथ टैगोर
अगर आपको नहीं पता है तो बता दें कि रबीन्द्र नाथ टैगोर को नोबेल प्राइज (Nobel Prize) उनकी किताब गीतांजलि के लिए वर्ष 1913 में मिला था। इस पुरस्कार को जीतने वाले वह पहले भारतीय थे।
दो देशों के लिए लिखा था राष्ट्रीय गान
शायद बहुत ही कम लोग जानते हैं कि रबीन्द्रनाथ टैगोर दुनिया के पहले ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने एक नहीं बल्कि दो देश के लिए राष्ट्रीय गान लिखा है। जी हां उन्होंने भारत के साथ-साथ बांग्लादेश के लिए भी रचना की थी।
इसलिए मनाते हैं रबीन्द्र नाथ टैगोर जयंती
हर किसी की याद में उसकी जयंती मनाई जाती है। इसी तरह रबीन्द्र नाथ टैगोर के नाम के महान कामों को याद करने के लिए और उनके प्रति सम्मान जाहिर करते हुए हर साल रबीन्द्रनाथ टैगोर जयंती मनाई जाती है।
दो दिन क्यों मनाते हैं रबीन्द्र नाथ टैगोर जयंती
अगर आपको नहीं पता है कि रबीन्द्रनाथ टैगोर की जयंती दो दिन क्यों मनाई जाती है तो हम आपका कंफ्यूजन दूर कर देते हैं। दरअसल कुछ लोग इसे 7 मई (Rabindranath Tagore Jayanti date) को मनाते हैं तो कुछ इस जयंती को 9 मई को मनाते हैं।
इसके पीछे का मुख्य कारण दो कैलेंडर हैं। दरअसल ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म (Rabindranath Tagore Birth Date) 7 मई 1861 में हुआ था।
तो वहीं बंगाली कैलेंडर की गणनाओं के आधार पर इनका जन्म बंगाली बोइशाख महीने के 25वें दिन हुआ था। यही कारण है कि उनकी जयंती दो दिन मनाई जाती है।
बैरिस्टर बनना चाहथे थे टैगोर
शायद बहुत कम ही लोगों को पता हो कि रवींद्रनाथ टैगोर पहले बैरिस्टर बनना चाहते थे। सन 1878 में उन्होंने अपनी इसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए इंग्लैंड के ब्रिजस्टोन पब्लिक स्कूल में एडमिशन लिया था। लेकिन बाद में वह कानून की पढ़ाई के लिए लंदन कॉलेज यूनिवर्सिटी भी गए, लेकिन वहां पढ़ाई पूरी किए बिना ही 1880 में वे वापस लौट आए।
8 साल में लिखी पहली कविता
बहुमुखी प्रतिभा के धनी रवींद्रनाथ टैगोर ने आठ वर्ष की उम्र में कविता लिखना शुरू कर दिया था, बल्कि जब वह 16 साल के थे तब उन्होंने छद्म नाम 'भानुसिंह' के तहत कविताओं का अपना पहला संग्रह जारी किया।
वो भारत ही नहीं एशिया के पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें साहित्य के लिए 1913 में अपनी रचना गीतांजलि के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। आज भी रवींद्र संगीत बांगला संस्कृति का अभिन्न अंग माना जाता है।
टैगोर ने लिखे 3 देशों के राष्ट्रगान
रवींद्रनाथ टैगोर एक प्रतिष्ठित कवि, संगीतकार, नाटककार, निबंधकार समेत साहित्य की कई विधाओं में निपुण थे. टैगोर दुनिया के संभवत: एकमात्र ऐसे कवि हैं जिनकी रचनाओं को दो देशों ने अपना राष्ट्रगान बनाया, भारत का राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ (Jan Gan Man) और बांग्लादेश का राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ टैगोर की ही रचनाएं हैं। कहा जाता है कि श्रीलंका के राष्ट्रगान का एक हिस्सा भी उनकी कविता से प्रेरित है।
रवींद्रनाथ टैगोर के नोबल पुरस्कार की कहानी
टैगोर पहले गैर यूरोपीय थे, जिन्हें साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था। हालांकि टैगोर ने इस नोबेल पुरस्कार को सीधे स्वीकार नहीं किया, बल्कि उनकी जगह पर ब्रिटेन के एक राजदूत ने पुरस्कार लिया था।
टैगोर को ब्रिटिश सरकार ने ‘नाइट हुड’ यानी 'सर' की उपाधि से भी नवाजा था लेकिन 1919 में हुए जलियांवाला बाग कांड के बाद टैगोर ने इस उपाधि को लौटा दिया।
नाइटहुड की उपाधि को क्यों लौटाया वापस
रबीन्द्रनाथ टैगोर को 1915 में नाइट हुड की उपाधि से सम्मानित किया गया था। लेकिन उन्होंने वर्ष 1919 में अमृतसर (जलियांवाला बाग) नरसंहार के विरोध में ये सम्मान अंग्रेजों को वापस लौटाया दिया था।
रबीन्द्रनाथ टैगोर बंगाल के बेहद अच्छे घराने से आते थे। उनका जंम कोलकाता में जाने माने समाज सुधारक देवेन्द्रनाथ टैगोर के यहां हुआ था। उनका माता का नाम सारदा देवीवास था।
गुरुदेव का मानना था कि अध्ययन के लिए प्रकृति का सानिध्य ही सबसे बेहतर है।
उनकी यही सोच 1901 में उन्हें शांति निकेतन ले आई। उन्होंने खुले वातावरण में पेड़ों के नीचे शिक्षा देनी शुरू की। रबीन्द्रनाथ टैगोर के पिता ने 1863 में एक आश्रम की स्थापना की थी, जिसे बाद रबीन्द्रनाथ टैगोर ने शांतिनिकेतन (Shanti Niketan) में बदला।
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कैसे चोरी हुआ था र​बीन्द्र नाथ टैगोर का नोबेल पुरस्कार
25 मार्च 2004 को, टैगोर का नोबेल पुरस्कार, उनके कई अन्य सामानों के साथ, विश्वभारती विश्वविद्यालय की सुरक्षा तिजोरी से चोरी हो गया था।
7 दिसंबर 2004 को, स्वीडिश अकादमी ने टैगोर के नोबेल पुरस्कार की दो प्रतिकृतियां, एक सोने से बनी और दूसरी कांस्य से बनी, विश्वभारती विश्वविद्यालय को प्रस्तुत करने का निर्णय लिया। इसने काल्पनिक फिल्म नोबेल चोर को प्रेरित किया।
2016 में चोरों को शरण देने के आरोपी प्रदीप बाउरी नाम के बाउल गायक को गिरफ्तार किया गया था।
BFI लंदन फिल्म फेस्टिवल में चुनी गई थी नोबेल चोर मूवी
नोबेल चोर (Nobel Chor) एक बंगाली भाषा की मूवी है। जिसे नोबेल थीफ (Nobel Thief) से अनुवाद किया गया। इसका निर्देशन सुमन घोष ने किया।
वर्ष 2012 की बंगाली भाषा की भारतीय फिल्म है। जिसमें मिथुन चक्रवर्ती, सौमित्र चटर्जी, रूपा गांगुली और शाश्वत चटर्जी ने अभिनय किया है। फिल्म को आधिकारिक तौर पर बीएफआई लंदन फिल्म फेस्टिवल (BFI London Film Festival) के लिए चुना गया था।
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नोबेल फिल्म मिथुन चक्रवर्ती
निर्देशक: सुमन घोष
राइटर: सुमन घोष
निर्माता: अश्वनी शर्मा
अभिनय: मिथुन चक्रवर्ती
सौमित्र चटर्जी
रूपा गांगुली
शाश्वत चटर्जी
शंकर देबनाथ
सुदीप्त चक्रवर्ती
अरिंदम सिल
हर्ष छाया
छायांकन: बरुण मुखर्जी
संगीत: बिक्रम घोष
रिलीज़ की तारीख
20 फरवरी 2012
फिल्म टाइम: 100 मिनट
देश: भारत
भाषा: बंगाली
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