हाइलाइट्स
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हसदेव बचाव समिति के आंदोलन स्थल पर लगी आग, कई पंडाल जले
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755 दिनों से समिति और ग्रामीण जंगल बचाने के लिए कर रहे प्रदर्शन
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आंदोलनकारियों ने अज्ञात लोगों द्वारा आग लगाने की आशंका जताई
Hasdeo Forest: सरगुजा जिले के हसदेव अरण्य के जंगलों को बचाने के लिए 755 दिन से लोग विरोध कर रहे हैं. बचाव आंदोलन (Hasdeo Forest Protest) के धरना स्थल पर लोग अस्थाई झोपड़ी बनाकर रह रहे थे.
रविवार को धरना स्थल पर पंडाल और झोपड़ियों में देर रात अचानक आग लग गई. प्रदर्शन कारियों का कहना है कि धरना रुकवाने के लिए यह आग लगाई गई है.
आग लगने की इस घटना में आंदोलनकारियों के अस्थाई पंडाल जलकर खाक हो गए हैं.
जांच में पहुंचे पुलिस अधिकारी
रविवार को हसदेव अरण्य बचाव समिति के धरना स्थल पर आग कैसे लगी और किसने लगाई यह अभी स्पष्ट नहीं हुआ है. समिति ने इसकी शिकायत उदयपुर थाने में दर्ज कराई है.
शिकायत मिलने पर उदयपुर थाना प्रभारी कुमारी चंद्राकर के नेतृत्व में जांच दल मौके पर पहुंचा. मामले की फॉरेंसिक एक्सपर्ट से जांच कराई जा रही है. वहीं समिति ने कहा कि नए कोयला खदानों की स्वीकृति के विरोध में यह आंदोलन चलता रहेगा.
जारी रहेगा आंदोलन
हसदेव बचाव आंदोलन समिति के आलोक शुक्ला ने कहा कि हसदेव अरण्य (Hasdeo Arand) में न्याय और अधिकार नहीं दिया जा रहा है. उल्टा आंदोलन स्थल को ही जला दिया गया है.
यह अनुचित है. जंगलों (Hasdeo Forest) को उजाड़ने के लिए प्रशासन ने फर्जी ग्राम सभा प्रस्ताव पारित कराया है. हमारी यह लड़ाई उसके खिलाफ है. धरना जारी रहेगा. आंदोलन स्थल जलाने से आंदोलन को नहीं रोका जा सकता.
क्या है हसदेव बचाव आंदोलन
हसदेव अरण्य (Hasdeo Forest Movement) क्षेत्र के नीचे कोयले का भंडार पाया गया है. जिसके चलते यहां परसा ईस्ट कांता बासन (पीकेईबी) कोयला खदान बनाए जाने का फैसला सरकार ने किया है.
सरकार ने यह क्षेत्र निजी कंपनियों को कोयला निकालने के लिए दिया हुआ है. यहां पर करोबारी अडानी की कंपनी कोयला निकालने के काम करती है.
इसके लिए पहले ही लाखों पेड़ काटे जा चुके हैं. अब कंपनी और पेड़ों की कटाई कर खदान एरिया को बढ़ाना चाहती है. जिसका आसपास के गांव के लोग विराध कर रहे हैं.
9 लाख पेड़ काटेगी कंपनी
कंपनी ने 1 लाख 70 हजार हेक्टेयर में से 137 एकड़ जंगल (Hasdeo Aranya) के क्षेत्र के पेड़ों की कटाई कर दी है. अब कंपनी और जंगल काटना चाहती है.
ऐसे में ग्रामीण इस जंगल को काटे जाने का विरोध कर रहे हैं. यहां लगभग 9 लाख पेड़ों की कटाई कंपनी करना चाहती है. जो न सिर्फ पर्यावरण के लिए घातक साबित होगा बल्कि जंगली जीवों से उनका घर भी छिन जाएगा.
2 साल से आंदोलन जारी किसी ने नहीं ली सुध
पेड़ों की कटाई के विरोध में ग्रामीणों का आंदोलन 2 साल से जारी है. लेकिन सरकार की तरफ से कोई अब तक राहत की खबर नहीं आई है.
इस आंदोलन की तुलना 1970 में उत्तराखंड के चमोली में हुए चिपको आंदोलन से की जा रही है. हसदेव जंगल (Hasdeo Forest) को बचाने के लिए ग्रामीण हर संभव प्रयास कर रहे हैं.
ग्रामीण सरकार और कोयला निकालने वाली कंपनी दोनों के खिलाफ 755 दिनों से डटे हुए हैं.
वनस्पतियों का भंडार है हसदेव
वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया ने साल 2021 में एक रिपोर्ट पेश की थी. इसमें बताया गया था कि हसदेव अरण्य (Hasdeo Forest) में गोंड, लोहार और ओरांव जैसी आदिवासी जातियों के 10 हजार से ज्यादा लोग निवास कर रहे हैं.
यहां 82 तरह के पक्षी, दुर्लभ प्रजाति की तितलियां और 167 प्रकार की वनस्पतियां मौजूद हैं. जंगल कटने से ये सब नष्ट हो जाएंगे. 18 वनस्पतियां तो ऐसी हैं जो पूरे भारत में लुप्त होने की कगार पर हैं.
यहां हसदेव नदी भी बहती है जो हसदेव जंगल इसी के कैचमेंट एरिया में स्थित है. इस जंगल (Hasdeo Aranya) को मध्य भारत का फेफड़ा भी कहा जाता है.
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विधानसभा में पारित है अशासकीय संकल्प
कांग्रेस की भूपेश सरकार के कार्यकाल में परसा कोल खदान की स्वीकृति के लिए NOC दी गई थी. इसमें खदान स्वीकृत हो गया था.
हसदेव क्षेत्र (Hasdeo Forest) में 17 कोल ब्लॉक प्रस्तावित हैं. इसके एक बड़े क्षेत्र को भूपेश सरकार ने लेमरु एलिफेंट रिजर्व में प्रस्तावित कर दिया था.
हसदेव अरण्य इलाके में कोई नया उत्खनन न करने, नए कोल ब्लॉक की स्वीकृति न देने, को लेकर विधानसभा में अशासकीय संकल्प भी सर्वसम्मति से पारित किया गया है.
नए कोल ब्लॉक की स्वीकृति और पेड़ों की कटाई का विरोध स्थानीय ग्रामीण कर रहे है.