नयी दिल्ली। गंगा नदी को आस्था और आर्थिक गतिविधियों का केंद्र बनाने के लिए ‘राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन’ ने इस नदी के तट पर स्थित मंदिरों में स्थानीय उत्पादों को प्रसाद ‘गंगा भोग’ (Ganga Bhog) का हिस्सा बनाने की शुरूआत की है।
61 मंदिरों को अभियान से जोड़ा जा चुका है
अब तक 61 मंदिरों को इस अभियान से जोड़ा जा चुका है। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक जी अशोक कुमार ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘गंगा नदी हमेशा से आस्था व आर्थिक गतिविधियों का केंद्र रही है। अब इसे नया रूप प्रदान करते हुए मिशन ने ‘पांच म’ पहल की शुरूआत की है, जिसमें मां गंगा, मंदिर, महिला, मोटा अनाज और मधु का समावेश किया गया है।’’
उन्होंने बताया कि ‘राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन’ (एनएमसीजी) ने हिमालयी पर्यावरण अध्ययन एवं संरक्षण संगठन के सहयोग से गंगा नदी के किनारे स्थित मंदिरों से ‘गंगा भोग’ (Ganga Bhog) की शुरुआत की है।
स्थानीय उत्पाद को शामिल करने पर जोर दिया गया
कुमार ने बताया, ‘‘ इसका मकसद यह है कि गंगा नदी जिन इलाकों से गुजरती है, वहां तट के आसपास स्थित मंदिरों में स्थानीय उत्पाद को प्रसाद या गंगा भोग का हिस्सा बनाया जाए।’’
एनएमसीजी के महानिदेशक ने बताया कि इस प्रयास में गंगा नदी के तट पर स्थित मंदिरों में प्रसाद के रूप में लड्डू अथवा किसी अन्य स्थानीय उत्पाद को शामिल करने पर जोर दिया गया है।
कुमार ने बताया कि लड्डू तैयार करने में सेहत के लिये फायदेमंद होने के कारण मधु का इस्तेमाल करने पर जोर होगा।
‘वोकल फॉर लोकल’ को मदद मिलेगी
लड्डू को उस क्षेत्र की महिलाएं तैयार करेंगी, जिससे उनके लिये आजीविका का स्रोत तैयार हो सकेगा।
उन्होंने बताया कि इससे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘वोकल फॉर लोकल’ नारे को मूर्त रूप देने में भी मदद मिलेगी।
ऋषिकेश में गंगा तट से इसकी हुई शुरुआत
कुमार ने बताया कि प्रसाद को ‘गंगा भोग’ का नाम दिया गया है। इस उद्देश्य के लिए मंदिरों के आसपास के गांवों व महिला समूहों से संपर्क किया गया है, ताकि वहां के अनाज व स्थानीय उत्पाद मंदिरों में प्रसाद के रूप में चढ़ाए जा सकें।
उन्होंने बताया कि अप्रैल में ऋषिकेश में गंगा तट से इसकी शुरुआत की गई और इसका प्रसार गंगोत्री से गंगा सागर तक के तटों पर स्थित मंदिरों में करने की योजना है।
एनएमसीजी के महानिदेशक ने बताया कि अभी तक 61 मंदिरों को ‘गंगा भोग’ (Ganga Bhog) प्रसाद योजना से जोड़ा जा चुका है।
सभी मंदिरों के और आश्रमों को भी जोड़ा जाएगा।
उनका मानना है कि यदि गंगा से लगे सभी मंदिरों में प्रसाद का एक हिस्सा लड्डू बनता है, तो इसके लिए लाखों लड्डू की जरूरत होगी और इसे तैयार करने के लिये महिलाओं को रोजगार मिलने से उनकी आर्थिक स्थिति सशक्त होगी।
उन्होंने बताया कि ‘गंगा भोग’ प्रसाद से गंगा तट के पास स्थित सभी मंदिरों के अलावा आश्रमों को भी जोड़ा जाएगा।
उन्होंने कहा कि इसके लिए संबधित श्राइन बोर्ड व आश्रमों से भी बातचीत की जा रही है और यह भी प्रयास किया जाएगा कि मंदिर व आश्रमों में ‘गंगा भोग’ प्रसाद के स्टॉल लग सकें।
पूजा पद्धति में आएगी एकरूपता
कुमार ने बताया कि गंगा नदी के तट पर स्थित मंदिरों के पुजारियों के प्रशिक्षण की व्यवस्था पर भी काम किया जा रहा है, ताकि पूजा पद्धति में एकरूपता आ सके।
उन्होंने कहा कि इसके लिए परमार्थ निकेतन संस्थान से सहयोग लिया जा रहा है। और इन मंदिरों के पुजारियों के लिये पोशाक तैयार करने की भी व्यवस्था की जा रही है।
औषधीय गुणों का अध्ययन प्रारंभ
गंगा नदी के जल के औषधीय गुणों का पता लगाने के लिए किये गए अध्ययन के बारे में एक सवाल के जवाब में कुमार ने कहा, ‘‘ राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग शोध संस्थान (नीरी) ने गंगा नदी के जल के औषधीय गुणों का अध्ययन प्रारंभ किया था और पिछले महीने इसकी रिपोर्ट प्राप्त हो गई है।’’
उन्होंने बताया कि करीब दो वर्षों के अध्ययन के बाद तैयार इस रिपोर्ट में कहा गया है कि गंगा नदी के जल में कुछ मात्रा में बैक्टीरियोफेज (जीवाणुभोजी) है, जो जल में औषधीय गुणों का संकेत देते हैं।
एनएमसीजी के महानिदेशक ने बताया, ‘‘ अभी इस रिपोर्ट को प्रकाशित नहीं किया गया है। हम कुछ और वैज्ञानिक शोध एवं मूल्यांकन करने के बाद इसे प्रकाशित करेंगे।
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