बस्तर। मुर्गा लड़ाई देशभर में होती है, कई जगह ये ग्रामीण संस्कृति का हिस्सा भी है लेकिन बस्तर की मुर्गा लड़ाई की बात ही खास है। खास इसलिए क्योंकि यहां रोज मुर्गा लड़ाई में करोड़ों के दांव लग रहे हैं। मनोरंजन का यह खेल बस्तर से आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा में भी लोकप्रिय है। वहां से बड़ी संख्या में कारोबारी यहां आकर दांव लगा रहे हैं।
बस्तर में अनोखी मुर्गा लड़ाई
वरिष्ठ वकील सतीश बताते हैं कि 30 साल पहले तोकापाल बाजार में मुर्गों की लड़ाई ने हिंसक रुप ले लिया और दोनों पक्षों के बीच जमकर मारपीट हुई जिसमें 18 लोगों की जान गई थी बस्तर में इस खेल का स्वरुप न केवल विकृत हुआ है, बल्कि इसमें जानें भी गई हैं।
आदिवासियों की परंपरा
बस्तर में इस खेल का स्वरुप न केवल विकृत हुआ है, बल्कि इसमें जानें भी गई हैं। लगातार बिगड़ रहे स्वरुप और हिंसक होने की वजह से अब इस पर प्रतिबंध लगाए जाने की मांग भी उठने लगी है। चूंकि यह आदिवासियों की परंपरा और मनोरंजन से जुड़ा है, इसलिए सरकारें भी कोई निर्णय लेने से बचती नजर आती हैं।
मुर्गा लड़ाई में लाखों लगाते है दांव
एक समय आदिवासियों के मनोरंजन का जरिया रहे मुर्गा लड़ाई ने अब पूरी तरह से जुए का रुप ले लिया है। बस्तर के साप्ताहिक हाटों में होने वाली मुर्गा लड़ाई में जुटने वाली लोगों की भीड़ लाखों का दांव लगाते हैं। दांव लगाने के तलबगार केवल बस्तरिया नहीं, बल्कि सीमाई प्रांत ओड़िशा, आंध्र, तेलंगाना और महाराष्ट्र से भी लोग बॉर्डर पार आकर दांव लगाते हैं।
वरिष्ठ वकील सतीश बताते हैं कि 30 साल पहले तोकापाल बाजार में मुर्गों की लड़ाई ने हिंसक रुप ले लिया और दोनों पक्षों के बीच जमकर मारपीट हुई, जिसमें 18 लोगों की जान गई थी। 10 साल बाद कोट ने इस मामले में फैसला देते 14 लोगों को उम्रकैद सुनाई। कहने का आशय यह कि बस्तर में इस खेल का स्वरुप न केवल विकृत हुआ है, बल्कि इसमें जानें भी गई हैं।
पड़ोसी राज्यों से आते हैं लोग
पुलिस वालों के संरक्षण में चलने वाले कुकड़ा घाली (मुर्गा लड़ाई) के खेल में कई बाजारों में लाखों-करोड़ों का दांव लगता है। दांव लगाने के शौकीन केवल बस्तर के आदिवासी नहीं होते, बल्कि इनमें पड़ोसी राज्यों के लोग भी शामिल होते हैं। कई बाजार तो बस्तर में ऐसे भरते हैं, जहां मुर्गा लड़ाई में एक करोड़ रुपए से अधिक का दांव भीड़ लगाती है।
विशेष प्रजाति के असील मुर्गों के पैरों में काती (धारदार छुरी) बांधी जाती है, जो जहर बुझी होती है। यह छुरी भी कइयों की जान ले लेती है। असील मुर्गे दूसरे मुर्गों की तुलना में 10 गुना अधिक कीमत पर बिकते हैं और इन्हें खरीदने के बाद लंबे समय तक ट्रेनिंग दी जाती है। यही वजह है कि विरोधी खेमे के मुर्गे पर यह टूट पड़ता है। कमजोर दिल वाले इस लड़ाई को नहीं देख पाते।
लगातार बिगड़ रहे स्वरुप और हिंसक होने की वजह से अब इस पर प्रतिबंध लगाए जाने की मांग भी उठने लगी है। चूंकि यह आदिवासियों की परंपरा और मनोरंजन से जुड़ा है, इसलिए सरकारें भी कोई निर्णय लेने से बचती नजर आती हैं।
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