Places of Worship Act Hearing Update: सुप्रीम कोर्ट में उपासना (पूजा) स्थल कानून (प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट- 1991) की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 12 दिसंबर को सुनवाई हुई। सुनवाई CJI संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की स्पेशल बेंच ने की।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले में केंद्र का जवाब जरुरी है। केंद्र इसके लिए हलफनामा दाखिल करे। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केंद्र का जवाब आने तक मामले में सुनवाई नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। 4 सप्ताह बाद मामले की अगली सुनवाई होगी।
अब कोई मंदिर-मस्जिद मुकदमा दायर नहीं होगा
सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा कि कई मुद्दे उठाए गए हैं, हम विचार करेंगे। राम जन्मभूमि का फैसला भी है। अगली तारीख तक कोई नया मंदिर-मस्जिद मुकदमा दायर नहीं किया जाएगा।
हलफनामे की एक प्रति याचिकाकर्ताओं को देने के निर्देश दिये गए हैं। दोनो पक्षों को नोडल ऑफिसर नियुक्त करने के लिए कहा है।
मामले में आज तक नहीं हो सकी बहस
याचिका 2020 में दाखिल की गई थी और 2021 में इस मामले को लेकर सरकार को नोटिस जारी किया गया था, लेकिन मामले में आज तक बहस नहीं हो सकी है।
पहले 5 दिसंबर को ही यह सुनवाई होनी थी। उस दिन CJI संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस मनमोहन की बेंच सुनवाई से पहले ही उठ गई थी। अब एक बार फिर केंद्र के जवाब के इंतजार में मामला टलता हुआ दिखाई दे रहा है।
कौन है याचिकाकर्ता
याचिका दायर करने वालों में बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी, कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर, भाजपा नेता और एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय समेत कई अन्य शामिल हैं।
मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और कर्नाटक जैसे राज्यों के 10 से ज़्यादा धार्मिक स्थलों और स्मारकों के मामले कोर्ट में लंबित हैं। इनमें उपासना स्थल क़ानून 1991 की भूमिका अहम हो जाती है।
क्या है उपासना स्थल कानून
साल 1991 में लाया गया उपासना स्थल कानून को ही पूजास्थल कानून कहा जाता है। उपासना स्थल कानून कहता है कि भारत में 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस स्वरूप में था, उसकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है।
ये कानून ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा की शाही ईदगाह समेत देश के सभी धार्मिक स्थलों पर लागू होता है। एक और अपवाद उन धार्मिक स्थलों का है, जो पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग (ASI) के अधीन आते हैं। इन स्थलों के रखरखाव और संरक्षण के काम पर कोई रोक नहीं है।
कानून के सेक्शन क्या कहते हैं?
उपासना स्थल कानून के सेक्शन 3 के तहत, कोई भी व्यक्ति किसी धार्मिक स्थल या किसी समुदाय के पूजास्थल के स्वरूप को बदलने की कोशिश नहीं कर सकता। सेक्शन 4(1) में यह साफ लिखा है कि 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस स्वरूप में था, वह उसी स्वरूप में बना रहेगा।
सेक्शन 4(2) के अनुसार अगर किसी धार्मिक स्थल के स्वरूप में बदलाव को लेकर कोई केस, अपील, या अन्य कार्रवाई 15 अगस्त 1947 के बाद किसी कोर्ट, ट्रिब्यूनल, या प्राधिकरण में लंबित है, तो वह केस रद्द कर दिया जाएगा। इसके अलावा, ऐसे किसी मामले में दोबारा केस या अपील दायर नहीं की जा सकती।
सेक्शन 5 में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को शामिल नहीं किया गया, क्योंकि यह मामला आज़ादी से पहले ही अदालत में लंबित था।
किन परिस्थितियों में आया कानून
साल 1990 में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद चरम था। पूरे देश में साम्प्रदायिक तनाव सुरसा की तरह मुंह खोल रहा था। इसी माहौल में 1991 में अयोध्या आंदोलन और उससे जुड़े विवाद अपने चरम पर थे।
पूजास्थल कानून पर सुप्रीम सुनवाई: 2021 में सरकार को नोटिस, आज तक नहीं हो सकी बहस, जानें क्या है पूरा विवाद?
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ऐसे समय में, 18 सितंबर 1991 को, केंद्र में नरसिम्हा राव सरकार ने उपासना स्थल क़ानून संसद से पारित कराया।
उमा भारती ने किया था विरोध
कानून लागू करने के वक्त उमा भारती सहित बीजेपी के कई नेताओं ने इस नए क़ानून का जमकर विरोध किया था।
उन्होंने कहा था कि इस तरह का क़ानून बनाकर हम ऐसे दूसरे विवादित मामलों की अनदेखी नहीं कर सकते।
याचिका और कानून को लेकर ये हैं दो तर्क
1. हिंदू पक्ष की तरफ से लगाई गई याचिकाओं में तर्क दिया गया है कि यह कानून हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख समुदाय के खिलाफ है। इस कानून के चलते वे अपने ही पूजा स्थलों और तीर्थ स्थलों को अपने अधिकार में नहीं ले पाते हैं।
2. जमीयत उलेमा-ए-हिंद, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और ज्ञानवापी मस्जिद का रखरखाव करने वाली अंजुमन इंतजामिया मस्जिद मैनेजमेंट कमेटी ने इन याचिकाओं के खिलाफ याचिका दायर की है। जमीयत का तर्क है कि एक्ट के खिलाफ याचिकाओं पर विचार करने से पूरे देश में मस्जिदों के खिलाफ मुकदमों की बाढ़ आ जाएगी।
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टिप्पणी के बाद सर्वे की मांग की लगी झड़ी
ज्ञानवापी मामले की सुनवाई के दौरान तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने एक मौखिक टिप्पणी की थी। इस टिप्पणी के बाद मस्जिदों के नीचे मंदिरों के अस्तित्व की जांच के लिए सर्वे कराए जाने की मांग की झड़ी सी लग गई है।
तत्कालीन सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि प्लेसेस ऑफ़ वर्शिप एक्ट 1991 (उपासना स्थल क़ानून) 15 अगस्त 1947 की स्थिति के अनुसार, किसी भी संरचना के धार्मिक चरित्र की “जांच करने” पर रोक नहीं लगाता है।
इस मौखिक टिप्पणी को ट्रायल कोर्ट और बाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने क़ानूनी अधिकार के तौर पर लिया। इसके बाद मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मामले में भी सुनवाई को जारी रखने की मंजूरी मिली।