जगदलपुर से रजत वाजपेयी की रिपोर्ट।
जगदलपुर। बस्तर दशहरा में शामिल होने आई माई दंतेश्वरी के छत्र और डोली को श्रद्धालुओं ने नम आंखों से विदाई दी। इसके साथ ही विश्व में सबसे अधिक दिनों तक चलने वाले पर्व का आज समापन हो गया। इस बार दोहरा सावन होने की वजह से 75 की जगह बस्तर दशहरा पर्व की अवधि 107 दिनों की थी।
दंतेवाड़ा के लिए छत्र और डोली रवाना
राजमहल स्थित सिंहड्योढ़ी से राज परिवार के सदस्य माई की डोली लेकर पैदल जिया डेरा की तरफ रवाना हुए, जहां पूजा-पाठ संपन्न होने के बाद छत्र और डोली वापस दंतेवाड़ा के लिए रवाना हुई। इस दौरान बेटी की विदाई के जैसा माहौल दिखाई दिया।
आखिरी रस्म हुई पूरी
परंपरा के अनुसार दशहरा पर्व में माई का छत्र और डोली दंतेवाड़ा से पर्व में शामिल होने लाई जाती है। पर्व के सभी विधान संपन्न हो जाने के बाद माता के छत्र को विदाई दी जाती है।
इस बार 107 दिनों तक चला दशहरा पर्व
बता दें कि ऐतिहासिक बस्तर दहशरा इस बार 107 दिनों तक चला। उक्त बस्तर दशहरा में शामिल होने दंतेवाड़ा से मां दंतेश्वरी का छत्र और मावली माता की डोली पंचमी को निकली जो अष्टमी तिथि को बस्तर पहुंची थी। इस दौरान करीब 50 हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने मां दर्शन-पूजन किए। इसके बाद मावली परघाव की रस्मे निभाई गई।
मां की विदाई को लेकर की गईं तैयारियां
अब 31 अक्टूबर को मां की विदाई को लेकर तैयारी की गईं हैं। बताया गया है कि माता को 16 शृंगार के सभी सामान, साड़ी के साथ चावल, कच्चा नारियल, कला का घेर समेत अन्य सामग्री शामिल हैं। इसकी तैयारी को लेकर मंदिर परिसर में सभी सामग्री आ चुकी है। वहीं मां की डोली लेने आने वाले पांच पुजारी, चालकी का भी सम्मान किया जाएगा।
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