जगदलपुर। पिछले सात सप्ताह से बंद केके रेलमार्ग पर आज फिर से बहाल हो गया है। इस मार्ग से अब ट्रेनों का आवागमन शुरू हो चुका है।
आज पूरे 7 सप्ताह के बाद नाईट एक्सप्रेस और समलेश्वरी जगदलपुर तक पहुंची। इस खबर से आम लोगों ने राहत की सांस ली।
लैंड स्लाइड मार्ग हुआ अवरुद्ध
पिछले 24 सितंबर को भूमार्ग अवरुद्ध स्खलन (लैंड स्लाइड) के वजह से यह मार्ग अवरुद्ध हो गया था। जिसे लगातार ही ठीक किया जा रहा था।
बता दें कि पिछले माह 24 सितंबर को पड़ोसी प्रदेश ओड़िशा के जरती और मनाबार रेलवे स्टेशन के बीच पहाड़ से मिट्टी और चट्टान गिरने की घटना के बाद से यात्री ट्रेनों का परिचालन तत्काल प्रभाव से रोक दिया गया। मार्ग के अवरूद्ध होने के रेलवे को बहुत से यात्री समेत माल गाड़ियों को रद्द भी करना पड़ा था।
ये ट्रेनें थी रद्द
रेल मार्ग बंद होने की वजह से किरंदुल से विशाखापट्टनम तक चलने वाली किरंदुल-विशाखापट्टनम पैसेंजर और नाइट एक्सप्रेस, समलेश्वरी एक्सप्रेस, राउरकेला-जगदलपुर एक्सप्रेस, हिराखंड एक्सप्रेस समेत अन्य ट्रेनें प्रभावित थी।
बता दें कि बस्तर सहित सीमाई प्रांत ओड़िशा के लोग बहुतायत में इन ट्रेनों से सफर करते हैं। इनमें से अधिकतर गरीब तबके के लोग हैं, जिन्हें रेल का रियायती सफर रास आता है।
21 नवंबर के बाद जाएगी किरंदुल
विशाखापट्टनम से चलकर किरंदुल तक जाने वाली दोनों यात्री ट्रेनों नाईट एक्सप्रेस और पैसेंजर 21 नवंबर तक दंतेवाड़ा में ही रोकी जाएगी। दरअसल 13 से 19 नवंबर तक नक्सली स्थापना सप्ताह मनाएंगे और रेलवे हमेशा से ही नक्सलियों का सॉफ्ट टारगेट रहा है।
ऐसे में एहतियात बरतते हुए रेलवे ने दोनों यात्री ट्रेनों का परिचालन दंतेवाड़ा तक ही करने का निर्णय लिया है ताकि ट्रेन यात्रियों को किसी भी तरह का नुकसान न पहुंचे।
इस बार सबसे लंबा अवरोध
वैसे तो किरंदुल-कोत्तवलसा रेलमार्ग पर भूस्खलन आम समस्या है, लेकिन इस बार सबसे लंबा अवरोध रहा। बैंगलुरु से भू-वैज्ञानिकों की स्पेशल टीम बुलवाई गई थी, जिसने लगातार हो रहे भूस्खलन के कारणों को समझने की कोशिश की। रेलवे के सारे प्रयास धरे के धरे रह गए।
किरंदुल-कोत्तावालसा रेलवे लाइन (केके) का निर्माण 1967 में 55 करोड़ रुपए की लागत से जापानी तकनीक के सहयोग से किया गया था।
रेलवे को अरबों का घाटा
मालगाड़ियों का परिचालन सामान्य दिनों की तरह न हो पाने के कारण अरबों का घाटा रेलवे को सहना पड़ा।
बैलाडीला से लौह अयस्क का परिवहन विशाखापट्टनम से इसी लाइन के जरिए रेलवे करता है, जिससे रेलवे को हर महीने करोड़ों की आमदनी होती है।
जैसा निर्देश, वैसा परिचालन
सीनियर एसएमआर एमआर नायक बताते हैं कि मंडल मुख्यालय विशाखापट्टनम से जैसे निर्देश प्राप्त हो रहे हैं, उसी के मुताबिक यात्री ट्रेनों का परिचालन किया जा रहा है। 21 नवंबर के बाद जो आदेश होगा, उसके मुताबिक ट्रेन चलाई जाएगी।
बस्तर में पहली रेल
बस्तर में 1967 में पहली बार यात्री ट्रेन चलाई गई थी। अंग्रेजों के समय में बनकर तैयार हुई केके रेललाइन का अधिकतर हिस्सा पहाड़ियों के बीच से होकर गुजरता है।
इसके बाद दशकों तक यहां रेल आवागमन माओवादियों की मर्जी से होता रहा। हालांकि पिछले कुछ समय में हालात में परिवर्तन आया। लेकिन अब प्राकृतिक आपदा की वजह से अड़चन पैदा हो रही हैं।
पहाड़ियों के बीच से गुजरती है रेललाइन
यूं तो यह सफर प्राकृतिक सौंदर्य का दर्शन करवाने के लिए उत्तम है, लेकिन बारिश के दिनों में यह मुसीबत भी साबित होता है। लैंड स्लाइड की वजह से कई बार यात्री ट्रेनें बीच में फंस जाती हैं और लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
दरअसल केके रेललाइन के दर्जनों स्टेशन शहर और कस्बों से काफी दूर हैं। ऐसे में यात्रियों को ट्रेन रद्द होने पर पैदल 3-4 किलोमीटर तक का सफर तय कर कस्बाई इलाकों तक पहुंचना पड़ता है, जिसके बाद उनके लिए दूसरे संसाधन उपलब्ध हो पाते हैं।
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