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Parle-G: कभी बिस्किट हुआ करता था अंग्रेजों और अमीरों का शौक, पारले ने गरीबों को भी चखाया इसका स्वाद

Parle-G: कभी बिस्किट हुआ करता था अंग्रेजों और अमीरों का शौक, पारले ने गरीबों को भी चखाया इसका स्वादParle-G: British and the rich were once fond of biscuits,Parle tasted the poor as well

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Bansal Digital Desk
Parle-G: कभी बिस्किट हुआ करता था अंग्रेजों और अमीरों का शौक, पारले ने गरीबों को भी चखाया इसका स्वाद

Image source- @officialparleg

नई दिल्ली। किस्से-कहानियों के इस सेगमेंट में आज हम बात करने वाले हैं एक ऐसी कंपनी की जिसे भारत का बच्चा-बच्चा तक जानता है। नाम है पारले। वही पारले जिसका बिस्किट 'पारले-जी' हम बचपन में खूब खाया करते थे। आज भी इस बिस्किट का क्रेज बरकरार है। चाहे चाय के साथ इसका आनंद लेना हो या भूख लगने पर झटपट पेट भरने का प्रबंध करना, सब में पारले जी फिट बैठता है। लेकिन क्या आपको पता है कि कंपनी पहले बिस्किट नहीं बनाती थी। लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि वो बिस्किट बनाने लगी इसके पीछे एक दिलचस्प किस्सा है।

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पारले के मालिक पहले गारमेंट का धंधा करते थे
दरअसल, पारले के मालिक मोहन दयाल चौहान पहले से गारमेंट का बिजनेस करते थे। इसमें उन्हें फायदा भी खुब होता था। उन्होंने अपने बिजनेस में बेटों को भी शामिल कर लिया। बेटों ने भी पिता के बिजनेस को खूब आगे बढ़ाया। लेकिन एक समय आया जब बच्चों ने मोहन दयाल चौहान से कहा कि अब हमें कोई और बिजनेस करना चाहिए। सबने अलग-अलग विकल्प और मशवरे दिए। अंत में चौहान को कॉन्फेक्शनरी का धंधा करने का विचार आया। हालांकि भारत में उस वक्त इस धंधे के बारे में लोगों को ज्यादा पता नहीं था। इस कारण से मोहन दयाल चौहान ने जर्मनी जाने का फैसला किया। उन्होंने वहां जा कर पहले कॉन्फेक्शनरी की टेक्नोलॉजी और बिजनेस के नए-नए गुर सिखे।

1928 में 'हाउस ऑफ पारले' की स्थापना की गई
इसके बाद साल 1928 में 'हाउस ऑफ पारले' की स्थापना की गई। कंपनी का नाम पारले इसलिए रखा गया क्योंकि इसे बिले पारले में लगाया गया था। कंपनी ने एक साल बाद 1929 से काम करना शुरू कर दिया। दूध, चीन और ग्लूकोज जैसे कच्चे माल से मिठाई, पिपरमिंट, टॉफी आदि बनाए जाने लगे। उस वक्त इस कंपनी में 12 परिवार के लोग काम किया करते थे। मैन्युफेक्चरिंग से लेकर पैकेजिंग तक सारा काम यही लोग संभालते थे। कंपनी ने अपना पहला प्रोडक्ट 'ऑरेंज बाइट' बाजार में लॉन्च किया। देखते ही देखते लोगों की जुबान पर इस टॉफी नाम चढ़ गया।

विदेशी बिस्किट पर से निर्भरता खत्म कर दी
ये वो दौर था जब भारत में बिस्किट, बस अंग्रेज या अमीर खाया करते थे। तब इसे प्रीमियम प्रोडक्ट माना जाता था। उस समय ज्यादातर बिस्किट विदेश से ही आते थे। पारले भी तब 10 सालों का हो चला था। लोग कंपनी को नाम से जानने लगे थे। साल 1938 में कंपनी ने फैसला किया कि वह अब भारत में बिस्किट बनाएगी जिसे देश का हर नागरिक खरीद सकेगा। इसकी शुरूआत पारले ग्लूकोज बिस्किट से हुई। ऑरेंज बाइट की तरह ही इसने भी बाजार में आते ही धुम मचा दिया। कम वक्त में ही इसने घर-घर में अपनी पकड़ बना ली। बिस्किट के कारण पारले अब कंपनी नहीं बल्कि देश की निशानी बन गई थी। क्योंकि कंपनी ने विदेशी बिस्किट पर से निर्भरता खत्म कर दी थी। उस दौरान कंपनी के इस कदम को राष्ट्रवाद से जोड़ा गया था।

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देश विभाजन के बाद कंपनी को लगा झटका
पारले ग्लूको बिस्किट की सफलता के बाद कंपनी ने 1940 में पहला नमकीन बिस्किट सॉल्टेड क्रैकर-मोनाको को भी बनाना शुरू कर दिया। लेकिन तब झटका लगा जब देश का विभाजन हो गया। पारले को अपना उत्पादन रोकना पड़ा। क्योंकि विभाजन के बाद देश में गेहूं की कमी हो गई थी। कंपनी ने इस संकट से उबरने के लिए बार्ली से बने बिस्किट को बनाना शुरू किया। लेकिन लोगों को ये बिस्किट ज्यादा पसंद नहीं आता था। कंपनी भी चिंतित थी कि अब क्या किया जाए। हालांकि, देश की स्थिती में सुधार आने के बाद कंपनी ने एक बार फिर से गेंहूं से बिस्किट को बनना शुरू कर दिया। लेकिन तब तक कंपटीटर के तौर पर ब्रिटानिया भी मार्केट में आ चुकी थी। उसने पारले को टक्टर देने के लिए ग्लूकोज-डी बनाना शरू किया।

ग्लूको का नाम बदलकर पारले-जी किया गया
पारले को लगने लगा कि अब मार्केट मे बने रहना है तो कुछ अलग करना होगा। उसने 80 के दशक में ग्लूको का नाम बदलकर पारले-जी कर दिया। पैकेट का रंग भी बदल दिया गया। इस ट्रिक ने कंपनी को फिर से बाजारों में बढ़त दिला दी। इसके बाद आज तक पारले ने बिस्किट के पैकेट को नहीं बदला है। आज भी पारले जी का कवर पैकेट वही है। जिसपर पारले जी गर्ल की तस्वीर छपी है। देश में इस वक्त पारले-जी के पास 130 से ज्यादा फैक्ट्रियां हैं। हर महीने पारले-जी 1 अरब से ज्यादा पैकेट बिस्कुट का उत्पादन करती है। आप देश के किसी भी कोने में क्यों ना चले जाएं आपको पारले-जी बिस्किट जरूर देखने को मिल जाएगा।

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