parakram divas 2021: कभी पढ़ाई में डूबे रहने वाले सुभाष चंद्र बोस, आखिरकार कैसे बन गए क्रांतिकारी?

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नई दिल्ली। आजाद हिंद फौज का गठन करने वाले और तुम मुझे खून दो, मैं तूझे आजादी दूंगा का नारा देने वाले नेता जी सुभाष चंद्र बोस को लोग आज याद कर रहे हैं। बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओड़िशा के कटक में हुआ था। वे बचपन से ही पढ़ाई लिखाई में अच्छे थे। आगे की पढ़ाई के लिए जब वे कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में पहुंचे तो उन्हें मेघावी छात्रों की सूची में रखा जाता था। कुल मिलाकर कहें तो वो क्रांति से दूर रहने वाले और हमेशा पढ़ाई में डूबे रहने वाले छात्र थे। लेकिन ऐसा क्या हुआ कि वो क्रांतिकारी बनने के रास्ते पर चल पड़े।
पहली बार धरने पर बैठ गए थे बोस
बोस के साथ एक ऐसी घटना हुई जो उनके सोच को बदल कर उन्हें बिल्कुल उल्टा कर दिया। बोस उन दिनों अपने कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे। एक दिन जब वे लाइब्रेरी में बैठे थे, तभी उन्हें पता चला कि एक अंग्रेज प्रोफेसर ने उनके कुछ साथियों के साथ दुर्व्यवहार किया है और उन्हें धक्का देकर बाहर निकाल दिया है। इस बात से बोस इतने गुस्से में हो गए कि वो सीधे प्रिंसिपल के पास पहुंच गए। वहां पहुंच कर उन्होंने सारी बाते बताईं और कहा कि प्रोफेसर साहब को इस रैवैये के लिए छात्रों से माफी मांगनी चाहिए। लेकिन प्रिंसिपल ने उनकी बातों को सिरे से खारिज कर दिया। बात इतनी बढ़ गयी कि अगले दिन सुभाष चंद्र बोस समेत कुछ छात्र धरने पर चले गए। शहर के लोग भी उनके समर्थन में साथ में आकर बैठ गए। दवाब इतना बन गया कि प्रोफेसर साहब को झुकना ही पड़ा। तब जाकर दोनों पक्षों में समझौता हो पाया।
कॉलेज ने बोस को कर दिया था ब्लैक लिस्ट
लेकिन कुछ दिन बाद उसी प्रोफेसर ने फिर से यही हरकत कर दी। इस बार भारतीय छात्रों ने उसे पीट दिया। कॉलेज प्रशासन को जैसे ही इस बात की भनक लगी। इन लोगों के खिलाफ एक जांच कमेटी बना दी गई। कमेटी के सामने सभी छात्रों को पेश किया गया। छात्रों ने बोस को अपना अध्यक्ष नियुक्त किया था। इस कारण से कमेटी के सामने बोस ने ही छात्रों का पक्ष रखा। उन्होंने वहां ऐसे ऐसे तर्क दिए कि आखिरकार कमेटी के सदस्यों को ये मानना पड़ा कि वहां जो भी हुआ था वो परिस्थितिवश था। हालांकि कॉलेज के प्रिंसिपल इस बात से काफी नाराज हो गए और उन्होंने कुछ छात्रों के साथ बोस को ब्लैक लिस्टेड कर दिया। इन सभी बातों ने सुभाष चंद्र बोस को ये बता दिया कि अंग्रेज भारतीयों के साथ कितना खराब व्यवहार करते हैं।
कॉलेज से आने के बाद समाजसेवा में जुट गए
इन्हीं दो घटनाओं ने बोस को क्रांतिकारी बनने पर मजबूर कर दिया था। ब्लैक लिस्टेड होने पर बोस कॉलेज को छोड़कर अपने घर लौट गए। तब तक काफी लोगों को उनके बारे में पता चल गया था। लोग उनके प्रति सहानुभूति रखने लगे थे। वे जहां जाते उनका स्वागत और सम्मान किया जाता। उन्होंने पढ़ाई से भी एक साल तक दूरी बना ली थी वे दिन रात समाजसेवा में जुट गए थे। उन दिनों भारत में हैजा और चेचक जैसी बीमारियां काफी भयावह होती थीं। ऐेसे में बोस और उनके साथ गांव-गांव जाकर इलाज कर रहे डॉक्टरों का हाथ बंटाते थे। साथ ही युवाओं में राष्ट्र प्रेम की अलख भी जगाते थे।
निलंबन रद्द होने पर फिर से वापस कोलकाता पहुंचे
जैसे ही एक साल बाद उनका निलंबन रद्द हुआ वो वापस फिर से कोलकाता लौट गए। इस बार उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज में उन्होंने एडमिशन लिया। यही से वे इंडिया डिफेंस फोर्स यूनिवर्सिटी के यूनिट में शामिल हो गए। जहां रहकर उन्होंने युद्ध के तौर तरीके सीखे। उन्होंने यहां गौरिल्ला युद्द, बंदूक चलाना आदि सिखा था।