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पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मौत 53 साल बाद भी एक रहस्य है, जानिए उनके संघर्ष की कहानी

पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मौत 53 साल बाद भी एक रहस्य है, जानिए उनके संघर्ष की कहानी pandit deendayal upadhyay death anniversary: Pandit Deendayal Upadhyay death remains a mystery even after 53 years, know his story

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Bansal Digital Desk
पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मौत 53 साल बाद भी एक रहस्य है, जानिए उनके संघर्ष की कहानी

Image source- @jitheshindia

नई दिल्ली। जनसंघ के सहसंस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय की आज पुण्यतिथि है। आज ही के दिन 11 फरवरी 1968 को दीनदयाल उपाध्याय चंदौली जिले के तत्कालीन मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर मृत पाए गए थे। आज तक उनकी मौत की गुत्थी नहीं सुलझ पाई है। आज भी लोग जानना चाहते हैं कि उनकी मौत प्राकृतिक थी या फिर उनकी हत्या की गई थी।

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बिहार जनसंघ कार्यकारिणी की बैठक में जा रहे थे
दरअसल, हुआ ये था कि 11 फरवरी 1968 को पंडित दिनदयाल उपाध्याय बिहार जनसंघ कार्यकारिणी की बैठक में हिस्सा लेने के लिए पटना जा रहे थे। लेकिन वो पटना नहीं पहुंच सके। बाद में उनका शव मुगलसराय स्टेशन के 1276 नंबर खंभे के पास संदिग्ध परिस्थितियों में मिला था। उनका जन्म 25 सितंबर 1916 को मथुरा के चंद्रबन में हुआ था। उन्हें बचपन में ही काफी तकलीफे झेलनी पड़ी, क्योंकि जब वे महज तीन साल के थे तभी उनकी मां ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। जब वह 8 साल के हुए तब उनके पिता का भी साया सिर से उठ गया।

वे एक सफल संगठनकर्ता थे
हालांकि, इतनी तकलीफें झेलने के बाद भी उन्होंने कभी हार नहीं माना। अभावों से जूझते हुए भी जिंदगी का हौसला बनाए रखा। उनको लेकर कहा जाता है कि वे एक सफल संगठनकर्ता थे। समय के वो इतने पक्के थे कि एक बार किसी कार्यक्रम से लौटते समय बारिश में भीग गए। उन्हें किसी दूसरे कार्यक्रम में दिल्ली भी जाना था। साथ में आए स्वंयसेवकों ने कहा-पंडित जी आप ऐसे भीगे हुए कपड़ो के साथ कैसे जाएंगे। उन्हें पास के एक संघ कार्यालय में ले जाया गया। वहां पंखे के निचे भीगे हुए कपड़ों को सुखाने की कोशिश की गई। उनकी धोती तो जैसे तैसे सूख गई पर कुर्ता नहीं सूख पाया।

भीगा हुआ कुर्ता पहनकर ही चल पड़े
उधर ट्रेन का भी समय हो चला था। ऐसे में उन्होंने भीगा हुआ कुर्ता ही पहन लिया और स्वयंसेवकों से बोले चलो स्टेशन, कुर्ता तो रास्ते में भी सूख जाएगा। स्वयंसेवकों ने कहा आप कुछ देर और रूक जाइए। दूसरी ट्रेन आएगी तब चले जाईएगा तब तक कुर्ता भी सुख जाएगा। उन्होंने तुरंत कहा- मैं समय का हमेशा ध्यान रखना हूं। अगर मैं समय से नहीं जाउंगा तो दूसरे कार्यक्रम भी प्रभावित होगें और वो भीगे कपड़े पहनकर ही चल दिए।

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सरकार का मानना था कि उनकी मौत प्राकृतिक है
जनसंघ की स्थापना के बाद पंडित दीनदयाल उपाध्याय, अलग-अलग जगहों पर जाकर कार्यक्रम को संबोधित करते थे। इससे संगठन की ताकत भी बढ़ रही थी। लेकिन अचानक से उनकी मौत ने सभी हैरान कर दिया। जनसंघ के लोगों को लग रहा था कि उनकी हत्या हुई है और तत्कालीन सरकार का मानना था कि उनकी मौत प्राकृतिक हुई है। तब इस मामले की जांच भी कराई गई थी मगर मौत का रहस्य आज तक नहीं खुला।

सुबह तकरीबन 3:30 पर मिला था उनका शव
मुगलसराय रेलवे पुलिस के रिकॉर्ड के मुताबिक 11 फरवरी 1968 को सुबह तकरीबन 3:30 पर उनका शव मिला था। इस मामले में तीन लोगों को गिरफ्तार भी किया गया था। हालांकि बाद में तीनों आरोपी कोर्ट से सबूतों के अभाव के कारण बरी हो गए थे। बतादें कि जब दीनदयाल उपाध्याय का शव मुलसराय रेलवे स्टेशन पर मिला था तब उनकी पहचान तक नहीं पाई थी। पुलिस ने उनके शव को 6 घंटों तक लावारिस स्थिति में ही छोड़ दिया था। 2018 में मोदी सरकार ने उनकी यादों को संजोने के लिए इस स्टेशन का नाम पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन कर दिया था।

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