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हाइलाइट्स
पवित्र मिट्टी के साथ पांच तत्वों को मिलाकर बनाए शिवलिंग
निशिता काल में होगी भगवान भोलेनाथ की पूजा
शुक्र प्रदोष पर महाशिवरात्रि, व्रत रखना फलदायी
Maha Shivratri Mahotsav: इस बार महाशिवरात्रि पर्व 8 मार्च हो मनाई जाएगी। इसको लेकर भक्तों ने तैयारियां शुरू कर दी है। भोलेनाथ की आराधना के लिए भक्तों ने अभी से मंदिरों शिवालयों में यज्ञ हवन शुरू कर दिया है।
इसी के साथ धार्मिक स्थलों पर पार्थिव शिवलिंग निर्माण किया जा रहा है, लेकिन इस भाग-दौड़ भरी लाइफ में लोगों के पास समय बहुत कम है, लेकिन भगवान भोलेनाथ को भी खुश करने और अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए घर पर ही पूजा-अर्चना करना चाहते हैं।
यदि आप भी अपने घर पर शिव की पूजा करना चाहते हैं, पार्थिव शिवलिंग निर्माण करना चाहते हैं तो हम आपको सिलसिलेवार तरीके से महाशिवरात्रि पर्व की तैयारियां और पूजा विधि के साथ शिवलिंग निर्माण की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताते हैं...
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इसलिए मनाते हैं महाशिवरात्रि पर्व
इस बार महाशिवरात्रि पर्व (Maha Shivratri Mahotsav) 8 मार्च 2024 को मनाई जाएगी। शुक्रवार को श्रद्धालु भोलेनाथ की भक्ति में लीन रहेंगे। लेकिन ये पर्व क्यों मनाया जाता है, इसके बारे में लोग कम ही जानते हैं, यदि आप भी नहीं जानते हैं तो हम आपको बताते हैं कि क्यों महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है।
मान्यता के अनुसार फाल्गुन मास की शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है। ये पर्व फाल्गुन मास की चतुर्दशी के दिन मनाया जाता है।
पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान भोलेनाथ-और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इस कारण इस पर्व को महाशिवरात्रि को मनाने के साथ-साथ पवित्र पर्व भी माना जाता है।
मनोकामनाएं होती है पूरी
शिवभक्तों के लिए महाशिवरात्रि पर्व (Maha Shivratri Mahotsav) सबसे बड़ा पर्व होता है। शिवभक्त इस पर्व के आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। इस पर्व को लेकर मान्यता है कि इस तिथि पर भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था।
इस पर्व पर महादेव के लिए उपवास भी रखते हैं। मान्यता है कि इस दिन भक्त यदि सच्ची निष्ठा और भक्ति के साथ व्रत रखने वालों से महादेव अवश्य प्रसन्न होते हैं। और उनकी मनोकामनाएं पूरी होती है।
इस पावन और पवित्र दिन पर शुभ और मांगलिक कार्य करना अति उत्तम माना जाता है। इस बार की महाशिवरात्रि भी बेहद खास मानी जा रही है।
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प्रदोष व्रत है खास
8 मार्च दिन शुक्रवार को महाशिवरात्रि पड़ रही है। शुक्रवार का दिन बहुत ही खास है, इसलिए शुक्र प्रदोष व्रत भी इसी महाशिवरात्रि पर्व (Maha Shivratri Mahotsav) को पड़ रहा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रदोष व्रत रखने से भगवान शिव मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं और अपने भक्तों को खुश रखते हैं।
बता दें कि इसी दिन महाशिवरात्रि भी है, ऐसे में जातकों को इस शुभ संयोग से विशेष लाभ मिलेगा।
शिवरात्रि पर्व पर शुभ मुहूर्त
चतुर्दशी के दिन महाशिवरात्रि पर्व (Maha Shivratri Mahotsav) की शुरुआत 8 मार्च को रात 9.57 बजे होगी। तिथि का समापन शाम 6.17 बजे होगा। महाशिवरात्रि 8 मार्च को ही मनाई जाएगी। बता दें कि महाशिवरात्रि का पूजन निशिता काल में ही किया जाता है-
- निशिता काल- 8 मार्च रात 12.05 बजे से 9 मार्च रात 12.56 बजे तक।
- प्रथम पहर पूजन- 8 मार्च शाम 6.25 बजे से शुरू, समापन रात 9.28 बजे होगा।
- दूसरा पहर पूजन- 8 मार्च रात 9.28 बजे से शुरू, समापन 9 मार्च रात 12.31 बजे।
- तीसरा पहर पूजन- 8 मार्च को रात 12.31 बजे से शुरू, समापन सुबह 3.34 बजे।
- चौथा पहर पूजन- सुबह 3.34 बजे से सुबह 6.37 बजे तक।
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इस तरह से करें भोलेनाथ की पूजा
महाशिवरात्रि पर्व (Maha Shivratri Mahotsav) के दिन भगवान भोलेनाथ की भक्ति में लीन भक्त कई तरह से आराधना करते हैं। विशेष अनुष्ठान करते हैं। वहीं मंदिरों, शिवालयों में भी विशेष पूजा की जाती है, लेकिन घर बैठे हम कैसे पूजा कर सकते हैं, यदि इस बारे में आप कम जानते हैं तो आइये हम आपको विस्तार से बताते हैं-
- सबसे पहले ॐ नमो भगवते रूद्राय, ॐ नमः शिवाय रूद्राय् शम्भवाय् भवानीपतये नमो नमः मंत्रों का जाप करें। इस दिन शिव पुराण का पाठ जरूर करें। महाशिवरात्रि के दिन रात्रि जागरण भी किया जाता है।
- भगवान शिव की प्रतिमा को सबसे पहले पंचामृत से स्नान कराएं। इसके बाद 8 लोटे, केसर जल चढ़ाएं। इसके साथ पूरी रात दीपक जलाएं। चंदन का तिलक लगाकर, बेलपत्र, भांग, धतूरा, गन्ने का रस, तुलसी, जायफल, कमल गट्टे, फल, मिष्ठान, मीठा पान, इत्र चढ़ाएं। इन सबके बाद केसर युक्त खीर का भोग लगाकर प्रसाद बांटें।
जीवन में ये करने से बढ़ेगा सुख
महाशिवरात्रि पर्व (Maha Shivratri Mahotsav) के दिन शिव जी को उनकी सबसे प्रिय वस्तुओं को उन्हें अर्पित किया जाए तो वे जल्द ही प्रसन्न होते हैं ऐसी मान्यता है। शिव जी को तीन पत्तों वाला बेलपत्र चढ़ाएं, भांग को दूध में मिलाकर शिवलिंग पर चढ़ाएं, धतुरा और गन्ने का रस भी शिव जी को अर्पित करें।
ये वस्तु शिव को अर्पित करने से जीवन में सुख बढ़ता है, जल में गंगाजल मिलाकर शिवलिंग पर चढ़ाएं, इससे मन की अशांति दूर होती है।
शिवलिंग का विशेष महत्व
शिवपुराण के अनुसार कलयुग में पार्थिव शिवलिंग का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि जो भी भक्त मिट्टी का शिवलिंग बनाकर पार्थिव शिवलिंग का पूजन और रुद्राभिषेक करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। शिवलिंग की आराधना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
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इन तत्वों से मिलकर बनता है पार्थिव शिवलिंग
मिट्टी के शिवलिंग को ही पार्थिव शिवलिंग कहा जाता है। मिट्टी के शिवलिंग निर्माण के लिए कई तत्वों की जरूरत होती है। इसके लिए विशेष तरह की सामग्री भी शिवभक्तों के द्वारा एकत्रित की जाती है।
मिट्टी के शिवलिंग निर्माण के लिए गाय के गोबर, गुड़, मक्खन, भस्म, मिट्टी और गंगा जल को लिया जाता है। इन सभी तत्वों को मिलाया जाता है।
इसके बाद शिवलिंग बनाते समय पवित्र मिट्टी का उपयोग करें। कोशिश हो कि बेल पत्र के पेड़ की मिट्टी या फिर चिकनी मिट्टी का इस्तेमाल करें।
शिवलिंग की इतनी हो ऊंचाई
शिवलिंग निर्माण के दौरान भक्तों को विशेष सावधानी रखना जरूरी है। यदि तय मानक के अनुरूप यदि शिवलिंग का निर्माण नहीं हुआ तो आपको रुद्राभिषेक करने या पूजा-अर्चना करने में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है।
इसलिए शिवलिंग बनाते समय ध्यान रहे कि यह 12 अंगुल से बड़ा नहीं हो, अंगुष्ट से छोटा भी नहीं हो। इससे आप विशेष रुद्राभिषेक भी करा सकते हैं।
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इसलिए शिवलिंग पूजा का महत्व
महाशिवरात्रि पर्व (Maha Shivratri Mahotsav) के मौके पर पार्थिव शिवलिंग की पूजा करने का विशेष महत्व है। पार्थिव शिवलिंग की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। कष्ट भी दूर होते हैं। इतना ही नहीं घर में सुख-समृद्धि आती है।
कलयुग में मोक्ष प्राप्ति के लिए और सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए मिट्टी के शिवलिंग को उत्तम बताया गया है।
राम ने की थी शिव पूजा
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव (Maha Shivratri Mahotsav) का पार्थिव पूजन सबसे पहले भगवान राम ने किया था, मान्यता है कि भगवान श्री राम ने लंका कूच करने से पहले भगवान शिव की पार्थिव पूजा की थी।
मान्यता है कि कलयुग में भगवान शिव का पार्थिव पूजन कूष्माण्ड ऋषि के पुत्र मंडप ने किया था। जिसके बाद से अभी तक शिव कृपा बरसाने वाली पार्थिव पूजन की परंपरा चली आ रही है।
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