National Doctors Day 2024: भारत में डेंटल केयर क्लिनिकों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है. यह वृद्धि कई कारणों से हुई है जैसे कि बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण, और लोगों में दंत स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का बढ़ना है. लोग अब अपने दांतों की देखभाल और इलाज के लिए डेंटल केयर क्लिनिक का सहारा लेने लगे हैं.
हालांकि, डेंटल केयर के क्षेत्र में बढ़ती मांग के बावजूद एक चौकानें कि पिछले पांच वर्षों से बीडीएस (बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी) और एमडीएस (मास्टर ऑफ डेंटल सर्जरी) की 10% से 55% सीटें खाली रह जाती हैं। इसमें भी महाराष्ट्र, कर्नाटक और पंजाब के निजी डेंटल कॉलेज सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं.
मिनिस्ट्री ऑफ़ हेल्थ एंड फॅमिली वेलफेयर के आकड़ों के मुताबिक 2014 से 2023 के बीच BDS की डिग्री में 14% और MDS की संख्या में 48% वृद्धि हुई है.
पिछले 5 सालों में इतने प्रतिशत सीटें खाली
केंद्र सरकार देश में भविष्य के लिए स्वास्थ सेवा बढ़ाने के लिए लगातार डेंटल कॉलेज की संख्या में विस्तार कर रही है. लेकिन अगर हम पिछले 5 सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले पांच वर्षों में खाली डेंटल क्लिनिक की सीटों का प्रतिशत इस तरह है.
जैसे 2017 में महाराष्ट्र में निजी डेंटल कॉलेजों में 1,760 में से 275 सीटें खाली रहीं, 2018 में महाराष्ट्र में निजी डेंटल कॉलेजों में 2,350 में से 622 सीटें खाली रहीं, 2019 में महाराष्ट्र में निजी डेंटल कॉलेजों में 2,350 में से 1,028 सीटें खाली रहीं, 2020-21 में महाराष्ट्र में 2,400 में से 852 सीटें खाली रहीं में 2021: महाराष्ट्र में 35% से 60%, 2021-22 में महाराष्ट्र में 2,675 में से 697 सीटें खाली रहीं, 2022 में एक राज्य के नौ निजी कॉलेजों में 42%, महाराष्ट्र में 35% से 60%, 2023 में 10% से 55% है.
अधिक डेंटल खुलने का कारण
दंत चिकित्सा देखभाल की बढ़ती मांग
डेंटल केयर देखभाल की बढ़ती मांग कई फैक्टर के कारण हो रही है, जिनमें प्रमुख हैं स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता, जीवनशैली में बदलाव, और दांत की समस्या की समय पर पहचान। आधुनिक युग में लोग अपने दांतों की देखभाल को लेकर अधिक संवेदनशील हो गए हैं.
जिससे नियमित डेंटल एग्जामिनेशन, सफाई, और ट्रीटमेंट की आवश्यकता बढ़ गई है. इसके अलावा, शहरीकरण और खान-पान आदतों में बदलाव के चलते भी दंत की समस्या बढ़ रही हैं. इन सभी कारणों से, डेंटल केयर सेवाओं की मांग में लगातार वृद्धि हो रही है, जिससे इस क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार और इनोवेशन की आवश्यकता बढ़ी है.
ओरल स्वास्थ्य के बारे में बढ़ती जागरूकता
हाल के वर्षों में ओरल स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ रही है। लोग अब मुंह की सफाई और स्वस्थ दांत केवल सौंदर्य के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए भी आवश्यक हैं. सही ब्रशिंग और फ्लॉसिंग तकनीकों, नियमित डेंटल चेक-अप, और संतुलित आहार के महत्व को अब पहले से कहीं अधिक जोर दिया जा रहा है.
इसके साथ ही, ओरल बीमारियों जैसे कि कैविटी, गम रोग और मुंह के कैंसर की रोकथाम के लिए भी लोगों में शिक्षा और जानकारी का प्रसार बढ़ा है. इस जागरूकता का परिणाम यह है कि लोग अपने ओरल स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देने लगे हैं.
डेंटल केयर टेक्नोलॉजी में प्रगति
डेंटल केयर में प्रगति ने हाल के वर्षों में ट्रीटमेंट की गुणवत्ता और एफिशिएंसी में सुधार किया है. डिजिटल इमेजिंग, 3डी प्रिंटिंग, और कंप्यूटर-एडेड डिजाइन (CAD) जैसी तकनीकों ने दांतों के इम्प्लांट्स, ब्रेसेस और अन्य प्रोस्थेटिक डिवाइस के निर्माण को अधिक सटीक और कस्टमाइज़्ड बना दिया है.
लेजर तकनीक का उपयोग अब न केवल कैविटीज़ का इलाज करने में, बल्कि मसूड़ों की बीमारियों और अन्य दंत समस्याओं के लिए भी किया जा रहा है, जिससे दर्द और रिकवरी का समय कम हो गया है. टेलीडेंटिस्ट्री ने दूरस्थ क्षेत्रों में लोगों को विशेषज्ञों से परामर्श प्राप्त करने की सुविधा दी है.
इतनी आबादी पर एक डेंटल क्लिनिक जरूरी
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट के अनुसार, प्रत्येक 7,500 लोगों पर कम से कम एक डेंटल क्लिनिक होना चाहिए. कम्युनिटी को पर्याप्त दंत चिकित्सा देखभाल और सेवाएं प्रदान करने के लिए यह रेश्यो होना जरुरी है.
भारत में, दंत चिकित्सक-से-जनसंख्या अनुपात वर्तमान में लगभग 1:10,000 है, जो WHO की सिफारिश से थोड़ा कम है. हालांकि यह अनुपात विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में भिन्न होता है, शहरी क्षेत्रों में आम तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में दंत चिकित्सकों की संख्या अधिक होती है.
शहरी क्षेत्र में 1 क्लिनिक 5,000 से 7,000 आबादी पर
ग्रामीण क्षेत्र: 1 क्लिनिक 10,000 से 20,000 आबादी पर
आदिवासी क्षेत्र: 1 क्लिनिक 20,000 से 50,000 आबादी पर