NOTA in Election: राष्ट्रीय स्तर और राज्य स्तर पर चुनावों का मौसम चल रहा है। देश के कई राज्यों में आगामी दिनों में मतदान होने वाला है। इस मतदान के मताधिकार से जनता अपने प्रतिनिधितित्व का चुनाव करती है।
मतदान में आपके पास कई पार्टियों को मतदान देने का विकल्प होता है। लेकिन आपको किसी भी नेता या उम्मीदवार को वोट नहीं देना है। तो वे नागरिक नोटा पर वोट देता है।
लेकिन क्या आप जानतें हैं कि नोटा वोट देने के कई मायने होते हैं। साथ ही नोटा को लेकर कई बातें आपके लिए जानना जरुरी है। जैसे नोटा क्या है?, कब शुरू किया गया नोटा?, क्यों शुरू किया गया नोटा?, नोटा की उपयोगिता क्या है? और क्या नोटा का हार-जीत पर पड़ता है असर ?
क्या है नोटा (NOTA) ?
नोटा शब्द का सीधा नाता किसी भी देश में होने वाले चुनावों से है। नोटा का इस्तेमाल नागरिक तब करता है जब वह किसी भी उम्मीदवार को अपना वोट नहीं डालना चाहता है।
अगर मतदान करते समय मतदाता को किसी भी पार्टी का उम्मीदवार काबिल नहीं लगता है। तो वह ईवीएम में दिए गए नोटा बटन से अपना मत किसी भी उम्मीदवार को ना देने का विकल्प चुन सकता है.
वोटों की गिनती के समय मतदाता द्वारा डाला गया वोट नोटा में गिना जाता है।
कब शुरू किया गया NOTA ?
सबसे पहले भारत में वर्ष 2003 के विधानसभा चुनावों में नोटा विकल्प की शुरुआत की गई थी। 4 राज्यों के विधानसभा में नोटा शामिल किया गया था। जिनमें मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम शामिल है।
बता दें ,पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) बनाम भारत सरकार मामले में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में नोटा के उपयोग के निर्देशन दिए गए थे।
जिसके बाद नोटा को 2009 में चुनावों में एक विकल्प के रूप रखा गया। लेकिन नोटा को चुनावी मूल्य नहीं दिया गया था। कुछ समय बाद नोटा ने कई चुनावों में अन्य उम्मीदवारों की तुलना में अधिक संख्या में वोट हासिल किए ।
सबसे पहले नोटा की शुरुआत 2014 में राज्यसभा चुनाव के लिए की गई थी।
क्यों शुरू किया गया NOTA ?
हमारे देश में कई बार अधिकांश नागरिक मतदान के समय किसी भी प्रतिनिधि/पार्टी को वोट देने में रुचि नहीं रखते हैं। वैसे तो वोट देने का अधिकार हमारे संविधान के अनुच्छेद-326 में दिया गया है।
NOTA विकल्प को लागू करने का मुख्य उद्देश्य है कि जिन्हे चुनाव में वोट देने की इच्छा नहीं होती हैं , उन लोगों के लिए नोटा का विकल्प प्रदान किया गया है।
क्या है NOTA की उपयोगिता ?
देश में जिस समय नोटा की व्यवस्था नहीं शुरू हुई थी। तब चुनाव में अगर मतदाता को कोई भी उम्मीदवार योग्य नहीं लगता था तो, ऐसे मतदाता मतदान न करके वोट जाया करते थे।
इस वजह से लोग मतदान के अधिकार से वंचित हो रहे थे। साथ ही लोगों में मतदान का महत्व काम हो रहा था। जिसके 2009 में चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष नोटा का विकल्प उपलब्ध कराने की बात रखी।
बता दें कि नोटा की फुल फॉर्म होती है None of the Above, मतलब इनमें से कोई भी नहीं।
क्या पड़ता है NOTA का हार-जीत पर असर ?
चुनावों में नोटा का कहीं न कही प्रभाव पड़ता है। लेकिन यह निश्चित नहीं कि हार पर पड़ेगा या जीत पर। कभी भी नोटा को अधिक वोट मिलने से चुनाव रद्द नहीं होता हैं।
क्योंकि भारत में नोटा को राइट टू रिजेक्ट का अधिकार नहीं दिया गया हैं। जिस वजह से नोटा का चुनावों पर ख़ास असर नहीं पड़ता है।
उदहारण के लिए अगर चुनावों में कुल 1000 वोट पड़ें। और अगर इनमे से नोटा को 999 वोट मिले और उमेदवार को 1 वोट मिलता है तो 1 वोट वाला प्रत्याशी ही विजय का हक़दार होगा।
नोटा के लागू होने के बाद 2013 में चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया था कि नोटा के मतों को केवल गिना जायेगा। लेकिन इन्हे रद्द मतों की श्रेणी में ही रखा जाएगा। इस प्रकार से नोटा का चुनावों के नतीजों पर कोई असर नही पड़ता है।
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