NDA Government: आम चुनाव में एनडीए (NDA) को बहुमत के बाद शनिवार, 9 जून को मोदी सरकार तीसरी बार शपथ ग्रहण करेगी।
पीएम को तौर पर नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) का तीसरा कार्यकाल (3.0) काफी चुनौतीपूर्ण रहने वाला है।
इसकी वजह- बीजेपी की सीटें स्पष्ट बहुमत (272) से कम होना है। इस बार उसे सरकार बनाने और बचाने के लिए सहयोगी दलों पर निर्भर रहना पड़ेगा।
इस सब के बावजूद बीजेपी सभी बड़े मंत्रालय अपने पास रखना चाहती है यानी अपने (बीजेपी) सांसदों को देना चाह रही है। इसे लेकर खींचतान शुरू हो गई है।
बीजेपी के सहयोगी दल 4-1 के फॉर्मूले की कर रहे मांग
नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल में टीडीपी, जेडीयू, शिवसेना और लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) की अहम भूमिका रहने वाली है।
इन 4 पार्टियों में कुल मिलाकर 40 सांसद हैं। इनमें से टीडीपी (TDP) और जेडीयू (JDU) अपने लिए पसंद के मंत्रालय चाहती हैं और 4-1 के फॉर्मूला यानी हर चार सांसद पर एक मंत्री की मांग कर रही हैं।
इस लिहाज से टीडीपी (16) चार, जेडीयू (12) 3, शिवसेना (7) और चिराग पासवान (5) को दो-दो मंत्रालयों की उम्मीद है।
टीडीपी ने स्पीकर पद की भी मांग रखी है। हालांकि, बीजेपी इसके लिए कतई राजी नहीं है।
सूत्र बताते हैं कि ज्यादा जोर देने पर डिप्टी स्पीकर पद टीडीपी को मिल सकता है।
जेडीयू के पास पहले से ही राज्यसभा डिप्टी चेयरमैन का पद है।
मोदी मंत्रिमंडल में सहयोगियों की संख्या बढ़ेगी
जाहिर है, मोदी के पिछले दो कार्यकाल में सहयोगी दलों को कोई खास प्रतिनिधित्व नहीं मिला था।
सिर्फ सांकेतिक रूप में कुछ सांसदों को मंत्री बनाया गया था। हालांकि, जेडीयू ने 2019 में संख्या के हिसाब से नुमाइंदगी की मांग कर रही थी और ऐसा ना होने पर सरकार में शामिल नहीं हुई थी।
अब फिर जेडीयू के साथ टीडीपी ने भी संख्या के हिसाब से मंत्री बनाने की डिमांग कर दी है।
इससे लगता है कि मोदी मंत्रिमंडल में बीजेपी के मंत्रियों की संख्या कम होगी और सहयोगियों की संख्या बढ़ जाएगी। सूत्र बताते हैं, बीजेपी कुछ शर्तों पर समझौते को तैयार नहीं है।
ये चार मंत्रालय बीजेपी सहयोगी दलों को नहीं देगी!
जानकारी के मुताबिक केंद्र की नई सरकार सीसीएस (रक्षा, वित्त, गृह और विदेश) के चार मंत्रालयों में सहयोगी को जगह ना दे।
इंफ्रास्ट्रक्चर, गरीब कल्याण, युवाओं से जुड़े और कृषि मंत्रालयों को भी बीजेपी अपने पास ही रखना चाहेगी।
यह मोदी की बताई गईं चार जातियों- गरीब, महिला, युवा और किसान के लिए योजनाओं को लागू करने के लिए अहम हैं।
सरकार ने रेलवे, सड़क परिवहन आदि में बड़े सुधार किए गए हैं और बीजेपी इन्हें सहयोगियों को देकर सुधार की रफ्तार धीमी नहीं करना चाहेगी।
माना जा रहा है- रेलवे जिस किसी भी सरकार में सहयोगियों के पास रहा, तब लोकलुभावन नीतियों के चलते उसका बंटाधार हुआ है। बड़े प्रयास के बाद उसे पटरी पर लाया जा रहा है।
मोदी के दोनों कार्यकाल में सहयोगियों को सांकेतिक प्रतिनिधित्व
मोदी सरकार के पहले और दूसरे कार्यकाल देखें तो सहयोगी दलों को सांकेतिक प्रतिनिधित्व में नागरिक उड्डयन, भारी उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण, स्टील
और खाद्य, जन वितरण और उपभोक्ता मामले जैसे मंत्रालय दिए गए। खाद्य, जन वितरण एवं उपभोक्ता मामले (2014 में राम विलास पासवान के पास था)।
नागरिक उड्डयन (टीडीपी के पास रहा)। भारी उद्योग एवं पब्लिक एंटरप्राइज (शिवसेना के पास रहा)।
खाद्य प्रसंस्करण (अकाली दल और बाद में पशुपति पारस के पास रहा), स्टील (जेडीयू के पास रहा)।
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वाजपेयी सरकार में कई अहम मंत्रालय सहयोगियों के पास रहे
वाजपेयी सरकार की बात की जाए तो उस वक्त सहयोगियों को कई महत्वपूर्ण मंत्रालय दिए गए थे।
जिसमें उद्योग, पेट्रोलियम, रसायन एवं उर्वरक, कानून एवं विधि, स्वास्थ्य, सड़क परिवहन, वन एवं पर्यावरण, स्टील एंड माइन्स, रेलवे, वाणिज्य और यहां तक कि रक्षा मंत्रालय भी शामिल हैं।
अब फिर बीजेपी को सहयोगियों के आगे कुछ हद तक झुकना होगा।
ऐसा अनुमान है कि पंचायती राज्य और ग्रामीण विकास जैसे मंत्रालय जेडीयू को दिए जा सकते हैं।
वहीं नागरिक उड्डयन, स्टील जैसे मंत्रालय टीडीपी को मिल सकते हैं। भारी उद्योग शिवसेना के खाते में जा सकता है।