रिपोर्ट। दिलजीत सिंह मान
रतलाम। मां के अनेक रूप Navratri 2022 Mata Kavalka Mandir हैं और इन रूपों की आराधना के mp mandir तरीके भी अलग—अलग हैं। religion आज हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसे मंदिर के बारे में जहां मां को किसी दूध, खीर नहीं बल्कि मदिरा का भोग लगाया जाता है। जी हां जिला मुख्यालय से 32 किलोमीटर दूर देश—विदेशों में प्रख्यात मां कालका माता मंदिर के बारे में शायद आप जानते हैं। ये एक ऐसा मंदिर है जहाँ माता को प्रसाद के रूप में मदिरा चढ़ाई जाती है। ‘माता कवलका’ नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर रतलाम शहर से लगभग 32 किमी की दूरी पर ग्राम सातरूंडा की ऊँची टेकरी पर स्थित है।
माँ की यह चमत्कारी मूर्ति ग्राम सातरूंडा की ऊँची टेकरी पर ‘माँ कवलका’ के रूप में विराजमान हैं। सालों से यह मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र रहा है। दूर-दूर से श्रद्धालु यहाँ माँ के चमत्कारी रूप के दर्शन करने और माँ से अपनी मुरादें माँगने आते हैं। मंदिर में माँ कवलका, माँ काली, काल भैरव और भगवान भोलेनाथ की प्रतिमा विराजित हैं।
क्या कहते हैं पुजारी और भक्त —
यहाँ के पुजारी पंडित राजेशगिरी गोस्वामी का कहना है कि यह मंदिर लगभग 300 वर्ष पुराना है। यहाँ स्थित माता की मूर्ति बड़ी ही चमत्कारी है। पुजारी का दावा है कि यह मूर्ति मदिरापान करती है। दूर-दूर से श्रद्धालु यहाँ माँ के चमत्कारी रूप के दर्शन करने और माँ से अपनी मुराद माँगने आते हैं। पुत्र प्राप्ति होने पर देवी माँ के दर्शन करने आए रमेश ने बताया कि उन्होंने माता को प्रसन्न करने के लिए बकरे की बलि और बच्चे के बाल देकर उसकी मानता उतारी है।
मंदिर के ऊँची टेकरी पर स्थित होने के कारण यहाँ तक पहुँचने के लिए भक्तों को पैदल ही चढ़ाई करनी पड़ती है। भक्तों की सुविधा के लिए हाल ही में मंदिर मार्ग पर पक्की सीढ़ियाँ बनाई गई हैं, जिनके माध्यम से आसानी से चढ़ाई की जा सकती है।
इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ स्थित माँ कवलका, माँ काली और काल भैरव की मूर्तियाँ मदिरापान करती हैं। भक्तजन माँ को प्रसन्न करने के लिए मदिरा का भोग लगाते हैं। इन मूर्तियों के होठों से मदिरा का प्याला लगते ही प्याले में से मदिरा गायब हो जाती है और यह सब कुछ भक्तों के सामने ही होता है।
माता के प्रसाद के रूप में भक्तों को बोतल में शेष रह गई मदिरा दी जाती है। अपनी मनोवांछित मन्नत के पूरी होने पर कुछ भक्त माता की टेकरी पर नंगे पैर चढ़ाई करते हैं तो कुछ पशुबलि देते हैं। हरियाली अमावस्या और नवरात्रि में यहाँ भक्तों की अपार भीड़ माता के दर्शन के लिए जुट जाती है। कुछ लोग बाहरी हवा या भूत-प्रेत से छुटकारा पाने के लिए भी माता के दरबार पर अर्जी लगाते हैं।
मन्दिर के साथ में कई प्राचीन रोचक कहानियां भी है इसे पांडव कॉल में बनाया गया मंदिर भी कहा जाता है कहा जाता है कि भीम ने अपने हाथों से मिट्टी की चार डोंगे भर के रख दिए थे और उसके बाद में उस मिट्टी के टीले पर या मंदिर स्थापित किया गया पांडव अपने अज्ञातवास के दौरान कहा जाता है किसी क्षेत्र में आकर रुके थे वह भी गाय डोर चलाने का कार्य करा करता था समय के साथ-साथ यहां पर परंपराएं भी बदलती जा रही हैं जहां अब पशु बलि में कमी आई है वहीं दूसरी हो देश ही नहीं विदेशों से भी सैलानी या दर्शन करने आते हैं नवरात्रि के दिनों में 9 दिन ही माता के दर्शन हेतु भक्तों की भीड़ लगी रहती है वहीं भक्तों का मानना यह भी है कि माता दिन भर में तीन रूप में दर्शन देती है राधा बाल रूप में दोपहर में किशोर रूप में तपिश शास्त्र शाम को वृद्ध रूप में माता के दर्शन किए जा सकते हैं।