हाइलाइट्स
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1051 ग्रंथों के लोकार्पण समारोह की खास बातें
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‘ज्ञान सागर में भोपाल के लेखकों के भी ग्रंथ शामिल’
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‘भारतीय ज्ञान परंपरा का व्यक्ति रचता है सार्थक सिनेमा’
भोपाल। National Education Policy भारत के पुनर्जागरण का ड्राफ्ट है. भारतीय शिक्षा व्यवस्था में ‘स्व’ की स्थापना करने की आवश्यकता है. ग्रंथों की रक्षा करना यानी देवों का काम करना.
हनुमान फिल्म के डॉयरेक्टर पढ़ते थे रामायण पुनरुत्थान विद्यापीठ के ज्ञान सागर प्रकल्प के 1051 ग्रंथों के लोकार्पण समारोह में ये बातें चर्चा का विषय रहीं.
राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख कार्यवाहिका सीताक्का ने कहीं. यह कार्यक्रम भोपाल के प्रज्ञा दीप संस्थान में आयोजित हुआ.
वेदों की रक्षा के लिए हुआ पहला अवतार
अपने संबोधन में सीताक्का ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में वेदों का महत्व सबसे ऊपर है. वेदों की रक्षा के लिए भगवान ने पहला अवतार लिया था.
यानी की वेदों और ग्रंथों की रक्षा करना दैवीय काम है. स्कूल, कॉलेजों और यूनिवर्सिटीज में इन संदर्भ ग्रंथों का उपयोग करने की हमारी जिम्मेदारी है.
जिस तरह तीर्थ यात्रा पर सब लोग नहीं जा पाते हैं. ऐसे में तीर्थ से लौटे हुए लोगों के दर्शन करके तीर्थ यात्रा का पुण्य प्राप्त करते हैं. वैसे ही सब तो ग्रंथ लिख नहीं सकते.
लेकिन समाज में इन्हें पहुंचाकर हम पुण्य ले सकते हैं.हमारी जिम्मेदारी है कि ज्ञान सागर के इन ग्रंथों को भी समाज में पहुंचने के प्रयास करें.
हनुमान फिल्म के डायरेक्टर पढ़ते थे रामायण
भारतीय ज्ञान परंपरा से निकला व्यक्ति सार्थक सिनेमा रचता है. इस बात को समझाते हुए सीताक्का ने हनुमान फिल्म का जिक्र किया.
उन्होंने कहा कि हनुमान फिल्म के निर्माता ने बताया कि मैंने विद्या भारती के स्कूल में पढ़ते हुए रामायण और भारतीय ग्रंथों का अध्ययन किया. इसलिए हनुमान जैसी फिल्म के निर्माण का विचार आया.
मनसा, वाचा, कर्मणा हमारा व्यवहार एक जैसा हो: अशोक सोहनी
इस समारोह की अध्यक्षता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मध्य क्षेत्र के संघचालक अशोक सोहनी ने की. उन्होंने कहा कि ग्रंथों को समझना, उनके आधार पर जीवन मूल्यों का निर्माण करना और आत्मसात करना ही ग्रंथों की सार्थकता है.
उन्होंने कहा कि हमारा दर्शन कृति रूप में आना चाहिए. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि संघ में काम करने वाले तो ये जानते हैं कि संघ क्या है और क्या करता है.
लेकिन आम लोगों को इसकी जानकारी कैसे हो, इसके लिए संघ का विचार ‘कृतिरूप संघदर्शन’ के रूप में प्रकाशित किया गया था. इसलिए हमारे यहां कहा गया है कि मनसा, वाचा, कर्मणा हमारा व्यवहार एक जैसा होना चाहिए.
आक्रांताओं ने किया सब कुछ नष्ट
सीताक्का ने बताया कि आक्रांताओं ने तलवार के बल पर बहुत कुछ नष्ट किया, देश को लूटा लेकिन हमारी परंपरा ने ज्ञान सागर के बिंदुओं को बचाकर रखा है.
आज भी देश में बड़ी संख्या में गुरुकुल संचालित हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि पश्चिम की शिक्षा के प्रभाव में हमारे परिवार जा रहे हैं.
स्थिति ऐसी हो गई कि मां बचपन से ही बच्चों को मातृभाषा से दूर करने लगती हैं. उन्हें अंग्रेजी की कविताएं याद कराती हैं.
शिक्षा नीति–2020 ( National Education Policy) भारत के पुनर्जागरण का ड्राफ्ट
लोकार्पण कार्यक्रम में विद्याभारती के अखिल भारतीय उपाध्यक्ष प्रो. रविन्द्र कान्हेरे ने कहा कि जब हमने पश्चिम की शिक्षा प्रणाली अपनाई तो शिक्षा का हमारा मूल उद्देश्य खो गया था. मातृभाषा की जगह विदेशी भाषा ने ली थी.
पश्चिम की शिक्षा प्रणाली ने भारत की ज्ञान परंपरा को नकारा. राष्ट्रीय शिक्षा नीति–2020 ( National Education Policy) ने भारतीय शिक्षा के मूल आग्रह को समाहित किया है. यह नीति भारत के पुनर्जागरण का ड्राफ्ट है.
अध्यात्म, स्वास्थ्य, विज्ञान विषय के ग्रंथों को संस्था ने संरक्षित किया
पुनरुत्थान विद्यापीठ के संयोजक विपुल रावल ने कहा कि ग्रंथो को बचाने की चुनौती को हमने स्वीकार किया है. विद्यापीठ के संदर्भ ग्रंथों में अध्यात्म, स्वास्थ्य, आर्थिक, राजनीति, संचार, विज्ञान, समाज विज्ञान एवं भाषा विज्ञान सहित प्रमुख विषयों पर ग्रंथों का लेखन एवं पुराने ग्रंथों का पुनर्प्रकाशन कराया है.
ज्ञान सागर प्रकल्प में ये ग्रंथ होंगे शामिल
पुनरुत्थान विद्यापीठ के ज्ञान सागर प्रकल्प के अंतर्गत 1051 ग्रंथ प्रकाशित हो रहे हैं. भोपाल के लेखक लोकेंद्र सिंह की पुस्तक ‘डॉ. भीमराव अंबेडकर– पत्रकारिता एवं विचार’ और रंजना चितले की पुस्तकें सिपाही बहादुर, टंट्या भील, झलकारी बाई और भीमा नायक भी इसमें शामिल हैं.
राजेंद्र परमार की ज्ञानार्जन के करणों का विकास, भागीरथ कुमरावत, रामेश्वर पंकज मिश्र, प्रो. कुसुमलता केडिया, डॉ. कपिल तिवारी और रघुवीर गोस्वामी सहित अन्य लेखकों की पुस्तकें भी शामिल हैं.
विद्वत गोष्ठी का आयोजन
लोकार्पण कार्यक्रम के बाद तीन सत्रों में ‘पश्चिमीकरण से भारतीय शिक्षा की मुक्ति’ विषय पर विद्वत गोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें विभिन्न शिक्षक संस्थानों के शिक्षक सहभागी हुए।
पुनरुत्थान विद्यापीठ की कुलपति इंदुमती काटदरे ने कहा कि यह विचार करने की आवश्यकता है कि यह समाज और राष्ट्र कैसे चलेगा? यह जिम्मेदारी भारतीय समाज की है, सरकार की नहीं.
भारत की शिक्षा व्यवस्था कैसी हो, यह भारतीय समाज को विचार करना चाहिए। 18वीं शताब्दी तक भारत में शिक्षा व्यवस्था शासन आधारित नहीं थी। गुरुकुल और विश्वविद्यालय समाज पोषित थे.