National Doctors Day 2024: दंत चिकित्सा मानव चिकित्सा का अभिन्न अंग है। यह तो हम सभी जानते हैं। इस विधा का उपयोग पुरातन काल से ही होता आया है।
नीम की दातुन, कंडे की राख से दांत साफ करना एवं सरसों के तेल और हल्दी के मिश्रण से मसूड़ों की मालिश करना हमारे देश और समाज में आदिकाल से होता आया है। दांत दर्द होने पर फिटकरी के पानी से कुल्ला करना या लोंग दबा लेना आज भी प्रचलित है।
देश 1920 में खुला था पहला डेंटल कॉलेज
दंत चिकित्सा का शरीर के लिए महत्व एवं दांतों की जटिलता को समझते हुए चिकित्सा विज्ञान ने सैकड़ों बरस पूर्व दंत चिकित्सा विज्ञान को अलग से पढ़ाए जाने एवं इलाज की व्यवस्था किया जाना उचित समझा। भारत में पहला डेंटल कॉलेज यानी दंत चिकित्सा महाविद्यालय 1920 में डॉक्टर रफीउद्दीन अहमद के अथक प्रयासों से कोलकाता में शुरू किया गया था। आज भारत में 323 दंत चिकित्सा महाविद्यालय (Dental Collage) हैं। आज से करीब 40 साल पहले भारत के कई राज्यों में एक भी डेंटल कॉलेज नहीं था।
मप्र में 15 में से 14 डेंटल कॉलेज प्राइवेट
मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) की बात करें तो यहां पहला सरकारी डेंटल कॉलेज 1961 में डॉक्टर एलएस मैंगी के अथक प्रयासों से इंदौर में खोला गया था। प्रदेश में 1999 से प्राइवेट डेंटल कॉलेज खुलना शुरू हुए। आज प्रदेश में 15 में से 14 डेंटल कॉलेज प्राइवेट हैं। इन डेंटल कॉलेज के माध्यम से प्रदेश में प्रतिवर्ष करीब 1460 दंत चिकित्सकों तैयार होते हैं। यदि सुपर स्पेशलिस्ट दंत चिकित्सकों को भी मिला ले तो यह संख्या करीब 2000 होती है।
10 हजार की आबादी पर एक डेंटल सर्जन का मापदंड
अंतरराष्ट्रीय मापदंडों के आधार पर हर 10 हजार व्यक्तियों पर एक डेंटल सर्जन होने का प्रावधान है। इन्हीं मापदंडों को आधार मानते हुए डेंटल काउंसिल आफ इंडिया (डीसीआई) ने विभन्न राज्यों में प्राइवेट डेंटल कॉलेज स्थापित करने में मदद की। यहां इस बात पर ध्यान दिया जाना जरूरी था एक स्थान या शहर में एक प्राइवेट डेंटल कॉलेज खोलने की अनुमति दी जानी चाहिए थी न कि बड़े शहरों में एक से ज्यादा डेंटल खोले जाने की मंजूरी दी जानी चाहिए थी। लेकिन इस पर ध्यान न दिए जाने का असर यह हुआ कि शहरों में तो हर गली- मोहल्लों में डेंटल क्लीनिक खुल गए लेकिन छोटे कस्बों और ग्रामीण बसाहट में आज भी डेंटल सर्जन का अभाव बना हुआ है। कायदे से शहरों के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी डेंटल सर्जन की उपलब्धता का ध्यान रखा जाना चाहिए।
शहरों में डेंटल सर्जन जरूरत से ज्यादा, गांवों में नहीं
हमारे गांव एवं कस्बों में आधुनिक दंत चिकित्सा का अभाव सोचनीय एवं चिंतनीय है। इसके उलट यदि हम प्रदेश की राजधानी भोपाल का ही उदाहरण लें तो यहां 6 डेंटल कॉलेज हैं। इन कॉलेजों से संबद्ध अस्पताल में थर्ड ईयर फाइनल ईयर के स्टूडेंट एवं इंटर्न्स तो दांतों की समस्या से पीड़ित लोगों को रोजाना सेवा देते ही हैं। यदि इसमें कॉलेज के टीचिंग स्टाफ को भी मिल लिया जाए तो यह संख्या बढ़कर करीब 2000 हो जाती है। लोग दंत चिकित्सा सेवा दे रहे हैं वह भी प्रतिदिन। यदि इसमें डेंटल के सुपर स्पेशलिस्ट और प्राइवेट क्लीनिक की संख्या भी जोड़ लें तो यह आंकड़ा करीब 3000 हो जाता है।
भोपाल में 6 डेंटल कॉलेज रीवा में एक भी नहीं
ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या 28 लाख की जनसंख्या को इतने दांत चिकित्सकों ( 3 हजार) की जरूरत है। जबकि आसपास के शहरों में स्थिति एकदम उलट है। जबकि भोपाल में 6, इंदौर में 5,ग्वालियर में 2, जबलपुर और बुरहानपुर में एक-एक डेंटल कॉलेज है। लेकिन रीवा जैसे संभागीय मुख्यालय पर अभी तक एक भी डेंटल कॉलेज नहीं खुल सका है।
कहीं डेंटल सर्जन का हाल भी इंजीनियरों जैसा न हो जाए ?
अतः सरकार को गंभीरता से देखना और विचार करना चाहिए कि क्या आज के समय में हमें और अधिक दंत चिकित्सकों की आवश्यकता है। कहीं ऐसा न हो कि संख्या जरूरत से ज्यादा होने के कारण कहीं डेंटल सर्जन का हाल भी इंजीनियरों की तरह न हो जाए।
( लेखक “डॉ.योगेश गुप्ता ” वरिष्ठ दंत चिकित्सक और RKDF डेंटल कॉलेज भोपाल में आर्थोडोंटिस्ट विभाग के प्रोफेसर एवं हेड हैं।)