Nagaland Firing Incident: 14 नागरिकों की फायरिंग में मौत के बाद आज नागालैंड बंद है। इस बंद को अलग-अलग कई संगठनों ने बुलाया है। हालांकि प्रशासन सबसे ज्यादा मोन जिले Mon District में मुस्तैद है और वहां कर्फ्यू भी लगा दिया गया है। लेकिन यहां सवाल उठता है कि आखिर वहां ऐसा क्या हुआ कि एक जवान समेत 15 लोगों की मौत हो गई?
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, ये घटना शनिवार शाम को मोन जिले में ही घटी थी। यहां पर तिरू और ओटिंग गांव के कुछ लोग कोयला खदान (Coal Mine) में काम करने के लिए जाते थे। रोजाना शाम से पहले तक ये लोग काम से वापस लौट आते थे। लेकिन शनिवार शाम तक 6 लोग कोयला खदान से काम करके नहीं लौटे, ऐसे में गांव के कुछ लोग और उनके परिजन उन्हें खोजने के लिए निकले। खदान के पास पहुंचने पर उन्होंने देखा कि एक पिकअप वैन में 6 युवकों के शव लथपथ पड़े हैं।
लोग उग्र हो गए थे
इस घटना के बाद स्थानीय लोग उग्र हो गए। पहले तो उन्हें कुछ समझ में नहीं आया कि हुआ क्या है, लेकिन बाद में कुछ लोगों ने बताया क सुरक्षाबलों ने फायरिंग की थी। जैसे ही इस घटना की जानकारी और लोगों को लगी, बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हो गए और देखते ही देखते भीड़ बेबाकू हो गई। गुस्से में ग्रामीणों ने सुरक्षाबलों की गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया। सुरक्षाबल के लोगों ने हर संभव कोशिश की किसी प्रकार से भीड़ को शांत किया जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ऐसे में सुरक्षाबलों ने एक बार फिर से फायरिंग की जिसमें कुछ और लोगों की जान चली गई।
सेना के जवान उन्हें नागा उग्रावादी समझ बैठे थे
जानकारी के अनुसार, फायरिंग की पहली घटना में जिन 6 लोगों की मौत हुई थी, उन्हें सुरक्षाबलों ने गलती से नागा उग्रवादी Naga militant समझ बैठे थे। ये लोग शनिवार शाम को कोयला खदान से काम कर पिक अप वैन से लौट रहे थे। सेना को जानकारी मिली थी कि कुछ लोग प्रतिबंधित संगठन NSCN (K) के Yung Aung फैक्शन से जुड़े हैं और इनका मूवमेंट है। सेना को लगा कि ये वही लोग है। मालूम हो कि मोन जिले की सीमाएं म्यांमार से लगती हैं और यहीं से उग्रवादी संगठन NSCN (K) ऑपरेट होता है।
सेना ने घटना को लेकर क्या कहा?
पहली घटना के बाद सुरक्षाबलों के सामने जैसे ही ग्रामीण इक्कठे हुए वे उग्र हो गए थे। इस घटना में एक सुरक्षाकर्मी की मौत हो गई। इसके बाद सुरक्षाबलों ने अपनी आत्मरक्षा में दोबारा फायरिंग की इस फायरिंग में 7 और नागरिकों की मौत हो गई। सेना ने अपने बयान में कहा कि हमें उग्रवादियों की गतिविधियों की पुख्ता जानकारी थी। इसके बाद ही हमने ऑपरेशन प्लान किया था। इसी दौरान ये घटना घटी है। हम इस घटना के लिए बेहद दुखी हैं। हालांकि स्थानीय लोग नागालैंड से AFSPA हटाने की मांग कर रहे हैं और इसी मांग को लेकर सोमवार को बंद का ऐलान किया गया है। आइए जानते हैं क्या है AFSPA?
क्या है AFSPA?
AFSPA यानी सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून। Armed Forces (Special Powers) Act इस कानून को 11 सितंबर 1958 को पारित किया गया था, ताकि पूर्वोत्तर में उग्रवाद के खिलाफ सेना को कार्यवाही में मदद मिल सके। सितंबर 1958 में इसे अरूणाचल प्रदेश, असम, त्रिपुरा, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड सहित पूरे पूर्वोत्तर भारत में लागू कर दिया गया था। पूर्वोत्तर में इसे हिंसा को रोकने के लिए लागू किया गया था। पूर्वोत्तर के बाद इस कानून साल 1990 में जम्मू-कश्मीर में भी लागू कर दिया गया।
AFSPA को कब लागू किया जाता है?
किसी क्षेत्र विशेष में AFSPA तभी लागू किया जाता है जब राज्य या केंद्र सरकार उस क्षेत्र को अशांत क्षेत्र Disturbed Area घोषित कर दे। इस कानून के लागू होते ही वहां सेना या सशस्त्र बल को शांति स्थापित करने के लिए भेजा जाता है। एक बार किसी क्षेत्र को डिस्टर्ब घोषित किए जाने के बाद कम से कम 3 महीने तक वहां स्पेशल फोर्स की तैनाती रहती है। अगर राज्य सरकार घोषणा कर दे की राज्य में अब शांति है तो अपने आप ये कानून 3 महीने बाद वापस हो जाता है और सेना को वहां से हटा लिया जाता है।
इस कानून के तहत सुरक्षाबलों को क्या-क्या शक्तियां मिलती है?
इस कानून के तहत सेना, किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को बिना किसी वारंट के गिरफ्तार कर सकती है। इसके अलावा बिना किसी वारंट के किसी भी घर की तलाशी ली जा सकती है और इसके लिए जरूरी बल का इस्तेमाल किया जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति इश दौरान अशांति फैलाता है और बार-बार कानून तोड़ता है तो उसे मुत्यु तक का दंड दिया जा सकता है। अगर सुरक्षाबल को अंदेशा कि उपद्रवी किसी घर या अन्य बिल्डिंग में छुपे हुए हैं जहां से हथियार बंद हमले का अंदेशा हो ते वे उस घर को तबाह कर सकते हैं। इसके अलावा वे वाहन को रोक कर उसकी तलाशी ले सकते है। अगर सुरक्षाबलों के द्वारा कोई गलत कार्यवाही की जाती है, तो इस कानून के तहत उनके उपर कोई कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती है।