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Naga Sadhu Death Ritual: नागा साधुओं के शव को क्यों नहीं जलाते, फिर कैसे होता है अंतिम संस्कार, जानिए

Naga Sadhu Death Ritual; महाकुंभ में नागा साधुओं का जमावड़ा देखा गया है। वे हमेशा से ही चर्चा का विषय रहे हैं।

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Kushagra valuskar
Naga Sadhu Death Ritual: नागा साधुओं के शव को क्यों नहीं जलाते, फिर कैसे होता है अंतिम संस्कार, जानिए

Naga Sadhu Death Ritual: प्रयागराज में महाकुंभ 2025 का आगाज हो चुका है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु संगम में डुबकी लगाने पहुंच रहे हैं। सबसे पहले मंगलवार (14 जनवरी) को अखाड़ों ने अमृत स्नान किया। इसके बाद साधु-संतों से लेकर आमजन स्नान कर चुके हैं।

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महाकुंभ में नागा साधुओं का जमावड़ा देखा गया है। वे हमेशा से ही चर्चा का विषय रहे हैं। नागा साधु हमेशा राख में लिपटे रहते हैं। उनके बाल उनकी लंबाई के बराबर होते हैं।

नागा साधु का जीवन धर्म के लिए समर्पित रहता है। यहां हम आपको नागा साधुओं के बारे में हैरान करने वाले तथ्य बता रहे हैं।

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नागा साधुओं का अंतिम संस्कार नहीं किया जाता

हिंदुओं में मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार करने की परंपरा है। नागा साधुओं के पास जीवन और अपने मानव शरीर को त्यागने का अलग तरीका होता है।

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ऐसा माना जाता है कि जब नागा साधु अपना जीवन त्यागने के लिए तैयार होते हैं, तो उन्हें ध्यान की मुद्रा में दफना दिया जाता है।

समाधि से पहले उनके शव को स्नान कराया जाता है। फिर मंत्रोच्चण के साथ भू-समाधि दी जाती है।

निधन के बाद नागा साधु के शव पर भगवा वस्त्र डाला जाता है और भस्म लगाया जाता है। उनके मुंह में गंगाजल और तुलसी की पत्तियां रखी जाती हैं। फिर समाधि दी जाती है।

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वे अपना पिंडदान करते हैं

पिंडदान हिंदू अपने पूर्वजों के सम्मान में करते हैं। यह उनकी मृत्यु के बाद किया जाता है, ताकि वे स्वर्ग में आसानी से जा सकेंगे।

नागा साधु जीवित रहते हुए अपना पिंडदान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि नागा साधु बनना व्यक्ति का बिल्कुल नया जन्म होता है। पिंडदान पृथ्वी पर उनके जीवन के अंत का प्रतीक है।

कपड़े पहनने से बचते हैं

नागा साधु कोई कपड़े नहीं पहनते हैं। नग्न रहना उनकी पहचान का हिस्सा है। यह नग्नता भौतिकता से उनकी अलगाव का प्रतीक है। वस्त्रों का त्याग करना भौतिक दुनिया को त्यागने का एक तरीका है। खुद को ठंड, हवा और गर्मी से बचाने के लिए शरीर पर भस्म लगाते हैं।

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नागा साधु बनने में कितना समय लगता है?

नागा साधु बनना कोई आकस्मिक निर्णय नहीं है। यह एक कठिन और चुनौतीपूर्ण यात्रा है। नागा साधु बनने में दस साल से ज्यादा का समय लग जाता है। ये दस वर्ष ब्रह्मचर्य, ध्यान और तपस्या में बिताए जाते हैं।

योद्धा और आध्यात्मिक साधक

नागा साधु ब्रह्मचर्य का जीवन जीते हैं और योद्धा भी होते हैं। उन्हें मंदिरों और पवित्र भूमि की रक्षा के लिए मार्शल आर्ट और हथियारों का प्रशिक्षण दिया जाता है।

प्रतिष्ठित मसान होली

होली रंगों और मौज-मस्ती का त्योहार है, लेकिन नागा साधु रंग से नहीं, बल्कि राख से खेलते हैं। मसान होली भस्म से खेली जाती है।

राख के साथ यह खेल भगवान शिवजी के लिए एक सम्मान है। मान्यता है कि महादेव ने सबसे पहले सांसारिक सुखों को त्यागने वाले तरस्वियों के साथ मसान होली खेली थी।

नागा साधुओं का इतिहास

आदि गुरु शंकराचार्य ने नागा योद्धाओं की सेना तैयार की थी। शंकराचार्य ने बाहरी आक्रमण से धार्मिक स्थलों और ग्रंथों की रक्षा करने की जिम्मेदारी नागा साधुओं को दी थी।

आदि गुरु भारत में यह संदेश देना चाहते थे कि धर्म की रक्षा के लिए एक हाथ में शास्त्र और दूसरे हाथ में शस्त्र होना चाहिए।

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