नयी दिल्ली, छह जनवरी (भाषा) उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के अंतर-धार्मिक विवाहों में धर्मांतरण को नियंत्रित करने संबंधी विवादास्पद कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं में पक्षकार बनने के लिये एक मुस्लिम संगठन ने उच्चतम न्यायालय में बुधवार को आवेदन दायर किया।
शीर्ष अदालत ने इन कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दिन में दोनों राज्यों को नोटिस जारी किये थे, लेकिन उसने इनके प्रावधानों पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था।
अब जमीअत उलेमा-ए-हिन्द ने न्यायालय में एक आवेदन दायर कर इसमें पक्षकार बनने का अनुरोध किया है। इस आवेदन में कहा गया है कि कई अन्य राज्य भी इसी तरह का कानून बनाने की योजना तैयारी कर रहे हैं, जिन्हें असंवैधानिक घोषित करने की आवश्यकता है।
इस संगठन ने कहा है कि उप्र सरकार ने मुख्यमंत्री के उस बयान की पृष्ठभूमि में अध्यादेश जारी किया है जिसमें कहा गया था कि ‘लव जिहाद’ की घटनाओं पर अंकुश पाने के लिये सरकार एक कठोर कानून बनाने पर विचार कर रही है।
आवेदन के अनुसर मुख्यमंत्री के बयानों से स्पष्ट है कि यह अध्यादेश ‘लव जिहाद’ की घटनाओं पर अंकुश पाने के लिये लाया गया है। आवेदन में कहा गया है कि ‘लव जिहाद’ शब्दों का इस्तेमाल अंतर-धार्मिक विवाहों के संदर्भ में किया गया है जिनमें मुस्लिम युवक ने जबरन या छल से विवाह किया है।
अधिवक्ता एजाज मकबूल के माध्यम से दायर इस आवेदन में कहा गया है कि यह संगठन इन परिस्थतियों में मुस्लिम युवकों, जिन्हें निशाना बनाया जा रहा है, के मौलिक अधिकारों का मुद्दा उठाना चाहता है। आवेदन में अध्यादेश को असंवैधानिक बताते हुये कहा गया है कि इससे संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 का उल्लंघन होता है।
भाषा अनूप दिलीप
दिलीप