नई दिल्ली। Muscular Dystrophy आज कल कुछ ऐसी लाइलाज health बीमारियां लोगों को अपना शिकार बना रही हैं। healthy जिसकी वजह से लोगों का जीवन कष्टमय हो गया है। Muscular Dystrophy causes यहां तक की लोग आत्महत्या जैसा घातक कदम उठाने लगे हैं। इन्हीं लाइलाज बीमारियों में से एक है मस्कुलर डिस्ट्रॉफी। जी हां हाल ही में बीते दिन विदिशा में एक नेता ने परिवार समेत खुदकुशी कर ली। वो भी इसलिए क्योंकि उसका बेटा इसी लाइलाज बीमारी से ग्रसित था। जिससे वह परेशान हो चुका था। तो आप भी समय रहते सचेत हो जाएं और जान लें कि इस बीमारी के लक्षण क्या हैं। साथ ही इस बीमारी के खतरे को कम कैसे किया जा सकता है।
क्या है मस्कुलर डिस्ट्रॉफी
जानकारों की मानें तो जब व्यक्ति के शरीर में कई न्यूरोलॉजिकल समस्याओं के लक्षण एक साथ उपस्थित होते हैं, तो ऐसी शारीरिक स्थिति को मस्कुलर डिस्ट्रॉफी कहते हैं। ये एक आनुवंशिक बीमारी है। इस बीमारी में जन्म के बाद बच्चे की मांसपेशियां धीरे-धीरे कमजोर होने लगती हैं। और इस कंडीशन में होता ये है कि शारीरिक गतिविधियों के नियंत्रित करने वाली स्केलेटल मसल्स कमजोर होकर क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। आपको बता दें हेल्दी मसल्स के विकास के लिए शरीर में कुछ खास तरह के प्रोटीन का निर्माण होता है। लेकिन इस समस्या के होने पर कुछ म्यूटेशन (असामान्य जीन्स) इस प्रक्रिया में रूकावट पैदा करते हैं। हालांकि कुछ बच्चों में जन्म के समय ही इस बीमारी की पहचान की जा सकती है। लेकिन कई बार ऐसा भी होता है जब किशोरावस्था में प्रवेश करने के बाद बच्चों में इसके लक्षण दिखाई देते हैं।
आखिर क्यों होती है मस्कुलर डिस्ट्रॉफी
विशेषज्ञों की मानें तो जब कोशिकाओं (सेल्स) में मौजूद जीन्स की संरचना में गड़बड़ी हो जाती है तो मस्कुलर डिस्ट्रॉफी की समस्या होने लगती है। होता यूं है कि हमारी मांसपेशियों को आकार देने और उन्हें मजबूती को निर्धारित करने के लिए खास तरह के प्रोटीन की आवश्यकता होती है। इसमें हमारों जीन्स उपस्थित होते हैं। जो कोशिकाओं के लिए मदद करने के लिए मदद करते हैं।
1 विशेष गुणसूत्र की संरचना में गड़बड़ी से हो सकती है बीमारी —
विशेषज्ञों की मानें तो शरीर में 23 जोड़ें गुणसूत्र में से 22 में तो माता—पिता की बराबरी की हिस्सेदारी होती है। तो वहीं एक विशेष गुणसूत्र होता है जो बच्चे की संरचना तय करता है। इसी की संरचना में गड़बड़ी से शरीर में डायस्ट्रोफिन नामक जरूरी प्रोटीन की कमी हो सकती है। 23 जोड़े गुणसूत्रों में से हर जोड़े का आधा हिस्सा माता-पिता से विरासत में मिलता है। अगर सरल शब्दों में कहा जाए, तो इनमें से 22 जोड़े गुणसूत्र, जिन्हें ऑटोसोमल क्रोमोसोम कहा जाता है, ये ही जन्म के बाद शिशु में रंग-रूप, शारीरिक संरचना, दिमागी क्षमता का निर्धारण करते हैं। इन गुणसूत्रों का एक विशेष जोड़ा ऐसा होता है, जो गर्भस्थ शिशु के लिंग को निर्धारित करता है। इनकी संरचना में बदलाव से शरीर में डायस्ट्रोफिन नामक जरूरी प्रोटीन की कमी हो सकती है। आपको बता दें जब शिशु का शरीर पर्याप्त मात्रा में डायस्ट्रोफिन नहीं बना पाता, तो उसके शरीर में मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के लक्षण पनपने लगते हैं। आपको बता दें ये बीमारी अनुवांशिक होती है। क्योंकि इस रोग के संवाहक डीएमडी और बीएमडी एक्स क्रोमोसोम्स से जुड़े होते हैं, इस वजह से लड़कों में इस बीमारी की संभावना ज्यादा होती है क्योंकि गर्भस्थ शिशु का लड़का होना इसी क्रोमोसोम पर निर्भर करता है।
आखिर क्या हैं मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के लक्षण —
- कदमों में लड़खड़ाहट
- दौड़ने या कूदने में परेशानी
- बार-बार गिरना
- लेटने या बैठने में कठिनाई
- नजर में कमजोरी
- मांसपेशियों में जकड़न
- कद न बढ़ना
- तेज से वजन घटना
- बौद्धिक विकास में रूकावट आदि।
आखिर क्या है मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के उपचार —
वैसे तो ऐसा माना जाता है कि इस बीमारी का कोई स्थाई इलाज नहीं है। हालांकि इस बीमारी में मांसपेशियों में होने वाले खिंचाव और उससे होने वाले दर्द को कंट्रोल करने के लिए फिजियोथेरेपी का उपयोग किया जाता है। इतना ही नहीं मांसपेशियों को नुकसान से बचाने के लिए मरीजों को पैन किलर यानि दर्द निवारक दवाओं का भी उपयोग किया जाता है। हालांकि बीमारी बढ़ने पर कई बार सर्जरी की भी आवश्यकता भी पड़ती है।
महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में ज्यादा केस —
आपको बता दें ये लाइलाज बीमारी पुरुषों को ज्यादा घेरती है। बच्चों की बात करें तो इनमें दो साल की उम्र में इसके लक्षण दिखाई देने लगते हैं। लेकिन 4 साल के होते—होते इसके लक्षण से इस डिजीज के लक्षण दिखने लगते हैं। जिसके कारण बच्चे का विकास सही तरीके से नहीं हो पाता। समय के साथ—साथ बच्चे की हड्डियां कमजोर होने लगती है। हालांकि विशेषज्ञों की मानें तो ये एक हालांकि भारत में भी इसका कोई स्थाई इलाज नहीं है। इस पर रिसर्च जारी है। लेकिन अभी तक कोई सफलता हाथ नहीं लगी है।