प्रेमचंद होना कोई आसान बात नहीं : हिंदी साहित्य में धनपत राय श्रीवास्तव उर्फ मुंशी प्रेमचंद के योगदान को कोई भुला नहीं सकता है। प्रेमचंद ने ऐसी कालजयी रचनाओं को जन्म दिया जो आज भी ऐसी लगती है जैसी हमारे आसपास आज भी वो सब घटित हो रहा है। समय, काल, परस्थिति बदलने के बाद भी प्रेमचंद का लेखन आज तक नया सा जान पड़ता है।
जन्म 31 जुलाई 1880 को लमही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। वो हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक के रूप से जानें जाते है। उन्होंने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा आदि तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनमें से अधिकांश हिन्दी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुईं। हिंदी साहित्य में जो योगदान प्रेमचंद ने दिया है। उससे भुलाया नहीं जा सकता है।
देश आज कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की 142वीं जयंती मना रहा है इनकी रचनाएं हर बदलते कालखंड में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करती रही है और आगे भी कराती रहेंगी । प्रेमचंद हिंदी साहित्य के एक ऐसे प्रखर लेखक रहे जो अपनी कलम के दम से कहानियों की धारा को ही बदल कर रख दिया।