Mulayam Singh Yadav : इस वक्त की बड़ी खबर उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) से सामने आ रही है उत्तरप्रदेश की राजनीति के भीष्म पितामहा और समाजवादी पार्टी के संरक्षक पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह का आज सोमवार को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल (Medanta Hospital) में निधन हो गया। हाल ही में उनके बेहद नाजुक तबीयत होने की खबर सामने आई थी। इस खबर से समाजवादी परिवार में शोक की लहर डूब गई। राजनीति के क्षेत्र में उनका अंदाज देश के अन्य नेताओं से निराला रहा है। मुलायम वो देश की राजनीति के वो नेता थे जिन्होंने जो चाहा वह पाया। कितनी भी तकलीफे आई लेकिन कांटों से भर रास्ते उनको उनके मुकाम तक जाने से रोक नहीं पाई। मुलामय सिंह से जुड़ा ऐसा ही एक किस्सा याद आता है।
मुलायम सिंह यादव का यह किस्सा एक क्रांति रथ यात्रा से जुड़ा है। जब वह बीजेपी और वीएचपी के खिलाफ अपनी जीद पर अड़ गए थे। लेकिन उन्होंने जो ठाना था वो करके भी दिखाया। उनकी जिद 1987 में बांदा में भी देखने को मिली थी, जब वह क्रांति रथ यात्रा निकाल रहे थे। मुलायम की इस यात्रा को रोकने के लिए बीजेपी और वीएचपी समेत कई हिंदू संगठनों ने रोकने का प्रयास किया है। लेकिन मुुलायम नेक इरादों के पक्के थे, कोई भी ताकत उनको रोक नहीं पाई। इतना ही नहीं प्रशासन ने भी उनका रास्ता बदलने की लाख कोशिशे की, लेकिन मुलायम तो मुलायम थे। मन से तन से भले ही वह मुलायम हो लेकिन अपने इरादों के बड़े पक्के थे। वह अपनी जिद पर अड़े रहे कि उनकी यात्रा उसी रूट से जाएगी, जहां पहले से तय हुई थी। लेकिन जब उनका काफिला तय रूट से गुजरा तो, उनकी यात्रा पर पथराव हो गया।
मुलायम ने क्यों निकाली यात्रा
यह तब उस समय की है जब मुलायम सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिश और किसानों के हक के लिए अकबरपुर से क्रांति यात्रा की शुरुआत की थी। इसके लिए मुलायम सिंह ने सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था। आंदोलन के तहत मुलायम सिंह ने प्रदेश के कई जनपदों से रथ यात्रा निकालने का ऐलान किया और बांदा से यात्रा निकाली गई। वही मुलायम को यात्रा नही निकालने को लेकर बीजेपी और विश्व हिंदू परिषद ने चेतावनी दी। क्योंकि उस समय बीजेपी ने भी राम जानकी रथ यात्रा निकाली थी।
जिद पर अड़ गए थें मुलायम
मुलायम सिंह की यात्रा की जानकारी जब पुुलिस प्रशासन को लगी तो प्रशासन ने यात्रा का रूट बदलने की बात कही। लेकिन मुलायम मानते कहां.. वह जिद पर अड़ गए, उन्होंने प्रशासन को साफ तौर पर कह दिया की उनकी यात्रा अशोक स्तंभ के पास से ही गुजरेगी, और हुआ भी यही। मुलायम सिंह यादव क्रांति रथ लेकर बांदा पहुंचे और जहीर क्लब मैदान में जनसभा की। जनसभा के बाद जैसे ही उनका काफिला आगे बढ़ने लगा तभी ऐतिहासिक अशोक स्तंभ के पास उनके काफिले पर पथराव होने लगा। पथराव के दौरान मुलायम सिंह यादव और साथ में मौजूद कई नेताओं को भी चोटे आई थी, लेकिन मुलायम का जोश कम नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि ‘मुलायम सिंह जिंदा रहे या ना रहे क्रांति रथ का पहिया चलता रहेगा।’ नेताजी की इस हंकार के बाद यात्रा अपने रास्ते पर बढ़ती गई।
कुश्ती से चमकी थी मुलायम की राजनीति
मुलायम में दोस्त तोताराम यादव ने एक किस्सा सुनते हुए बताया कि उनकी और उनके मित्र मुलायम सिंह की उम्र में 5 महीने का ही अंतर है। इसलिए हमारी दोस्ती पक्की दोस्ती रही है। मुलायम ने ग्रेजुएशन के बाद शादी कर ली थी और उसके बाद वह पहलावानी करने लगे। वो एक कुशल पहलवान थे। एक बार मुलायम सिंह ने एक बड़े पहलवान को पहली बार में ही चित कर दिया था।
पहली बार बने विधायक
तोताराम यादव के अनुसार नत्थू सिंह मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक गुरु थे। नत्थू सिंह ही थे जो मुलायम को राजनीति में लेकर आए थे। उन दिनों नत्थू सिंह जसवंत नगर से विधायक थे। वह मुलायम की कुश्ती से इतने प्रभावित हुए की अगली बार उन्होंने मुलाकय सिंह को अपनी ही सीट से टिकट दे दिया। साल 1967 में मुलायम सिंह ने चुनाव जीत लिया और विधायक चुने गए।
मुलायम को बनाया था वारिस
चरण सिंह के बेहद करीबियों में शामिल थे नत्थू सिंह। नत्थू सिंह के जरिए चरण सिंह को मुलायम के बारे में पता चला और वह भी उनसे काफी प्रभावित हुए। यह इस हद तक था कि जब चरण सिंह को अपना उत्तराधिकारी चुनना था तो उन्होंने अपने बेटे अजीत सिंह की बजाय मुलायम सिंह यादव को चुना। तोताराम यादव बताते हैं, ये मेरे सामने की ही बात है जब चरण सिंह ने कहा था कि अजीत मेरा बेटा है और मुलायम किसान का बेटा है और वही मेरी विरासत का सही हकदार है।
जब मुख्यमंत्री बने मुलायम
सन् 1989 में जनता दल सरकार में मुलायम सिंह यादव पहली बार यूपी के मुख्यमंत्री बने। तोताराम यादव ने उस समय को याद करते हुए बताया कि जब मुलायम मुख्यमंत्री बनकर पहली बार सैफई आए तो लोगों ने उनकी पूजा की थी, लोगों ने उनका फूलों से स्वागत किया था। उस समय हर किसी की आंख में खुशी के आंसू थे।